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प्रसंग परिमल
परमपूज्य गुरुदेवश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा.नी पावन निश्रामा ता. २६४-२०१३ना मुंबइ समीप लोढाधामनी प्रतिष्ठा थई, आनंद छवाई गयो. प्रभुनी पधरामणी थतां 'पगलां पड्याने आनंद छायो' जेवू वातावरण बन्यु, आ वातावरणना साक्षी बननार आजेय आनंदनी लागणी अनुभवी रह्यां छे.
लोढाधामना जिनालये दादा सीमंधरनी प्रतिष्ठा थई..
वर्षोथी लोढाधाम निर्माणना जे मनोरथो हृदयना कोक खूणे जाग्याता ए आ दिवसे पूरा थया.
'विषमकाळे भवियण कुं जिनबिंब जिनागम आधारा'
पूजानी आ पंक्तिना शब्दोने मंगलप्रभातजीए साकार कर्या. पूज्य गुरुदेवश्रीनी प्रेरणा अने पोतानी वर्षोथी सेवेली ईच्छा आजे लोढाधामना निर्माण रूपे साकार बनी. मंगलप्रभातजीए पूज्य गुरुदेवश्रीना हस्ते श्री सीमंधरस्वामी भगवाननी प्रतिष्ठा करावी, अने अत्याधिक प्राचीन जीतकल्पसूत्र विगेरे ताडपत्रीय आगम ग्रंथो वहोराव्या.
जिनागम बहुमान स्तवनमां उत्तमविजयजीए जिनबिंब अने जिनागमना महिमानी वात बहु सरस रीते रजु करी छे.
ते भव रण भमतां थकां, जिनवर मंडप दीठो रे, जिनशासन थंभ तेहमां, देखत लागो मीठो रे.
भव रणमां भटकता जीवो आ जिनबिंब अने जिनागमने पामी आनंदित बने छे. अन्यथा शरणं नास्तिनो अनुभव थया पछी जिनेश्वर अने जिनवाणी- शरण स्वीकारे छे,
जिनबिंब अने जिनागम आ कलिकालमा तरवा माटेनु श्रेष्ठतम आलंबन छे. आधार छे. प्रतिष्ठानो आ अवसर कायम माटे याद रही जाय एवो प्रसन्न रह्यो. एमर्नु आ विशिष्ट अने उमदा आलंबननुं सर्जन स्व-पर माटे आत्मश्रेयस्करी बन्यु छे, एमां कोई शंकाने स्थान नथी. एमना आ सर्जनने सो सो सलाम....
आ पावन प्रतिष्ठाना अवसरे आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तरफथी ज्ञानमंदिरमां संगृहीत हस्तप्रतोना सूचिपत्र भाग १४-१५नुं विमोचन थयुं, तेमज
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