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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - २८ २७ २. रास- सार के पृ. ३ में रास में उल्लिखित कोचरसाह के सहयोगी साजणसी को शत्रुंजयोद्धारक सुप्रसिद्ध समरासाह का पुत्र सज्जनसिंह बतलाया गया है । इससे भी कोचरसाह का सोलहवीं शताब्दी में होना संभव नहीं, क्योंकि समरासाह ने सं. १३७१ में शत्रुंजय का उद्धार कराया । उसके पुत्र का सोलहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में विद्यमान रहना असंभव है। खरतरगच्छ पट्टावली के अनुसार १५वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध ही उसका समय विशेष संगत है! जो कि निम्नोक्त विचारणा से विशेष प्रमाणित हो जाता है। शत्रुंजय पर सं. १४१४ का एक लेख विद्यमान है, वह समरासाह और उसकी धर्मपत्नी की मूर्ति पर है जिसे उपर्युक्त सज्जनसिंह और उसके भाई सालिग ने बनवाया था, लेख इस प्रकार है : “संवत १४१४ वर्षे वैशाख सुदि १० दिने गुरौ संघपतिदेशलसुत सा० समरा समर श्रीयुग्मं सा० सालिग सा० सजनसिंहाभ्यां कारितं प्रतिष्ठितं श्रीकक्कसूरिशिष्यैः श्रीदेवगुप्तसूरिभिः शुभं भवतु " (जैन ऐतिहासिक गूर्जर काव्य संचय राससार पृ. १६६ ) इतना ही क्यों ? सज्जनसिंह की मृत्यु भी अन्य एक लेख से सं. १४६८ से पूर्व प्रमाणित होती है वह लेख इस प्रकार है : . “संवत् १४६८ वर्षे आषाढसुदि ३ रवौ उपकेशज्ञातौ वेसटावन्ये चिंचटगोत्रे सा. श्रीदेसल सुत साधु श्री समरसिंह नन्दन सा. श्री सज्जनसिंह सुत सा. श्री सगरेण पितृमातृश्रेयसे श्रीआदिनाथचतुर्विंशतिजिनपट्टकः कारितः श्रीउपकेश गच्छे ककुदाचार्यसंताने प्रतिष्ठितं श्री देवगुप्तसूरिभिः" ( जैन धातुप्रतिमा लेखसंग्रह भाग. २, ले. ५६०) ३. रासकार ने कवि देपाल को देसलहरा समरा सारंग के घर का याचक भी लिखा है, इससे हमारा कथन मान लेने पर कवि देपाल का सोलहवीं शताब्दी १. पृ. ८ में 'समरनो पुत्र सज्जनसिंह ए ज रासमां वर्णवेल साजणसिंह छे।' सूरिजी ने संवत् १५१६ लिखित स्वर्ण कल्पसूत्र की प्रशस्ति से साजनसी के वंशानुक्रम के ९ श्लोक और वंशवृक्ष देकर अच्छा प्रकाश डाला है, पर प्रशस्ति पूरी देकर यदि विचार किया जाता तो हमारे खयाल से यह भूल नहीं होती । यह प्रशस्ति अपूर्ण देने से दूसरे किसी को भी अद्यावधि इस स्खलना के सम्बन्ध में विचार करने का अवसर मिला ज्ञात नहीं होता। और हम भी सज्जनसिंह की कौनसी पीढी में शिवशंकर हुए जिनकी पत्नी देवलदे ने प्रस्तुत कल्पसूत्र वा वित्तसार को दोहराया, कह नहीं सकते For Private and Personal Use Only
SR No.525278
Book TitleShrutsagar Ank 2013 05 028
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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