SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ संयम और मर्यादा में बाँधकर रखा गया है। जिनका गृहस्थ उपासकों के लिए मर्यादानुकूल निष्ठापूर्वक सम्यक् उपभोग बताया गया है। योगशास्त्र में आचार्य चन्द्र कहते हैं कि गृहस्थ उपासक धर्म और काम पुरुषार्थों का इस प्रकार सेवन करें कि कोई किसी का बाधक न हो' फिर भी इतना तो मानना ही पडेगा कि जैन मूल्यों में अर्थ और काम को कुल मिलाकर हेय दृष्टि से देखा गया है और इनकी आवश्यकता पर बहुत ही कम बल दिया गया है। मई २०१३ For Private and Personal Use Only - अतः पूर्णतः निवृत्तिपरक होने के कारण जैनदर्शन में केवल दो ही पुरुषार्थोंमोक्ष और धर्म पर बल दिया गया है। मोक्ष परम पुरुषार्थ है और धर्म मोक्ष का राजमार्ग है। धर्म जीवों को संसार के दुःखों से निकालकर उन्हें उत्तम सुख धारण कराता है- ‘संसारदुःखतः सत्त्वान् यो धरत्युत्तमे सुखे' ।' यहाँ उत्तम सुख का तात्पर्य मोक्ष-सुख से है। क्योंकि मोक्ष प्राप्त होने पर ही जीव जन्म-जरा-मरण के दुःखों से बच सकता है। आचार्य महाप्रज्ञ 'आज्ञायां मामको धर्मः' सूत्र द्वारा अपने महाकाव्य सम्बोधि में धर्म को परिभाषित करते हैं। इस सूत्र का आगमिक स्त्रोत आयारो में देखा जा सकता है। आचारांग में स्पष्ट कहा गया है- 'आणाए मामगं धम्मं'।' अर्थात् आज्ञा में ही धर्म का गूढ तत्त्व छिपा हुआ है। इसके रहस्य को जाननेवाला ही उसे प्राप्त कर सकता है। इस तरह जैनाचार्यों ने धर्म की व्याख्या अनेक प्रकार से की है । कभी इसे 'वत्थुसहावो धम्मो' कहा गया है तो कभी इसे 'खमादिभावो य दसविहो धम्मो' कहा गया है। कभी ' चारित्रं खलु धम्मो' कह कर इसे परिभाषित किया गया है तो कभी 'जीवाणं रक्खणं धम्मो' कहकर इसके अहिंसा पक्ष पर बल दिया गया है । अन्ततः धर्म की ये सभी परिभाषाएँ 'वत्थुसहावो धम्मो' इस परिभाषा के विस्तार के ही विभिन्न रूप हैं । क्योंकि क्षमा आदि सारे धर्म आत्मा के ही स्वभाव हैं। इस स्वभाव की प्राप्ति में सहायक तत्त्वों का उपचार रूप से धर्म में ही समावेश हो जाता है। अतः हम यहाँ निर्बाधरूप से कह सकते हैं कि मोक्ष जैनदर्शन का केन्द्रबिन्दु है। जिसका आशय दुःख से आत्यन्तिक निवृत्ति और चरम सुख प्राप्त करना है। इसीलिए यहाँ मोक्ष को पुरुषार्थ में सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है, और क्योंकि इसकी प्राप्ति केवल धर्म-मार्ग से ही सम्भव है इसलिए धर्म भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। धर्म यद्यपि मोक्ष की अपेक्षा से केवल एक साधन-मूल्य है किन्तु साधन-मूल्य होने के नाते वह मोक्षमार्ग भी है । अतः उसका मूल्य मोक्ष से कतई कम नहीं है । धर्म और मोक्ष एक दूसरे से साधन-साध्य रूप में जुडे हुए हैं। एक मार्ग है तो
SR No.525278
Book TitleShrutsagar Ank 2013 05 028
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy