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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जुलाई २०१२ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर एक नजर में डॉ. हेमंत कुमार ० यत्र-तत्र बिखरी पड़ी श्रुतज्ञान विरासत रूप हस्तप्रतों का संकलन करते हैं. ० विश्वभर से अनेक विषयों एवं भाषाओं में निरंतर प्रकाशित हो रही पुस्तकों का संकलन करते हैं. ० दो लाख हस्तलिखित ग्रंथों का अभी तक संकलन किया गया है. ० डेढ़ लाख मुद्रित पुस्तकों का अभी तक संकलन किया गया है. ० बीस हजार से अधिक शोध परक लेख युक्त पत्र-पत्रिकाओं का संकलन है. ० जैनधर्म व प्राच्यविद्या से संबंधित विभिन्न विषयों व भाषाओं की पांडुलिपियाँ एवं पुस्तकें हमारे पास हैं. ० विभिन्न प्राचीन जैन ज्ञान भंडारों की माइक्रोफिल्म, जेरोक्स आदि सूचनाएँ हमारे पास हैं. ० जो पुस्तक कहीं न मिले वह कोबा में मिल जाएगी, ऐसी अवधारणा है पूज्य साधसाध्वीजी, विद्वानों संशोधकों की. ० संगृहीत साहित्य की सूक्ष्म व बृहद् सूचनाओं को कम्प्युटरीकृत प्रोग्राम में संकलित करते हैं जिससे अल्पावधि में ही वाचकों को अपेक्षित पुस्तकें उपलब्ध कराई जा सके. ० श्रमण भगवंतों के मार्गदर्शन में विभिन्न विषयों व भाषाओं के निष्णात विद्वानों की टीम सूचना संकलन कार्य में सतत कार्यरत है. ० संबंधित विषय की एकाध सूचना के आधार पर भी वाचकों को अपेक्षित पुस्तकें उपलब्ध कराई जाती है. ० वाचक पुस्तकों के पास नहीं जाते बल्कि पुस्तके वाचकों के पास पहुँचाई जाती हैं. ० पूज्य साधु-साध्वीजी भगवंतों को उनके चातुर्मास स्थल पर अपने खर्च से पुस्तकें भेजते हैं. ० उपलब्ध साहित्य एवं अन्य विविध सेवाओं के द्वारा आत्मार्थी, जिज्ञासुओं की ज्ञान पिपासा को शांत किया जाता है. ० उचित व्यक्ति को उचित अध्ययन सामग्री, उचित समय पर, उचित स्थल पर उपलब्ध कराई जाती है. ० जैन व आर्य साहित्य की धरोहरों को संशुद्ध कर लोकोपयोगी ढंग से प्रकाशन कर जैन साहित्य की गरिमा को विश्व के समक्ष प्रस्तुत करते हैं.. ० श्रमणवर्ग, विद्वज्जन एवं प्रत्येक जिज्ञासुओं की ज्ञान-पिपासा की तृप्ति में ही हम आनंद व संतोष का अनुभव करते हैं. ० प्राचीन व अर्वाचीन जैन साहित्य की सूचनाओं का ऐसा विशिष्ट संग्रह है कि यहाँ से जैन व प्राच्यविद्या से संबंधित साहित्य व सूचनाएँ प्राप्त करना हर किसी के लिए अपने आप में एक आह्लादक अनुभव बन जाता है. ० सांस्कृतिक-पुरातात्विक धरोहरों को यथारूप आने वाली पीढी को सौंप कर हम सुखद भविष्य का निर्माण करने में सक्षम सिद्ध होंगे. ० जैन एवं आर्य सांस्कृतिक-पुरातात्विक धरोहर रूप नमूनों और कलावशेषों को विशिष्ट आधुनिक तकनीक द्वारा संरक्षित कर हम अतीत को गौरव प्रदान कर रहे हैं. ० जैन व समग्र जगत मात्र के लिए हमारा अस्तित्व गौरवप्रद सिद्ध हो रहा है. ० जैन साहित्य व प्राच्यविद्या के अध्ययन-अध्यापन के क्षेत्र में हम सदा अग्रसर हैं. ० जैन साहित्य व प्राच्यविद्या के क्षेत्र में होने वाले प्रत्येक विशिष्ट कार्यों को हम हमेशा सहयोग करते हैं, ० जैन साहित्य व प्राच्यविद्या के अन्वेषण-संशोधन के क्षेत्र में आने वाली प्रत्येक समस्याओं के लिए हम समाधान रूप बने रहते हैं.. ० जैन साहित्य व प्राच्यविद्या के संग्रहण के क्षेत्र में श्रेष्ठता एवं निपुणता प्राप्त करना हमारा मुद्रालेख है. For Private and Personal Use Only
SR No.525268
Book TitleShrutsagar Ank 2012 07 018
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2012
Total Pages20
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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