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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पू. राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रवचन प्रसादी आत्म-संतोष के उपाय जीवन के अनादि-अनन्त काल के इतिहास में जीव मात्र का यही प्रयत्न रहा कि सुख की प्राप्ति हो, परन्तु आज तक वह सुख मिला नहीं.प्राणी मात्र का यह प्रयास रहा कि दुःखों का नाश हो, परन्तु आज तक दुख नष्ट हुआ नहीं, सारा प्रयत्न निष्फल गया- सुख की प्राप्ति मृगतृष्णा ही। रही, दुःख को नष्ट करने का सारा प्रयास विफल रहा, कारण? विफलता के कारणों को हमने खोजा ही नहीं, कारण था- बिना आधारशिला का मकान बनाते रहे. बिना चिन्तन के हम आराधना करते रहे. लक्ष्य को भूल कर हम चलते रहे और इसी कारण आज तक हमारी सुख प्राप्ति की। साधना असफल रही.मानसिक अशान्ति से आज हमारा पूरा जीवन त्रस्त / है. हर व्यक्ति ने अपने क्लेशों से स्वयं को पीड़ित कर रखा है. / प्रभु ने सुख प्राप्ति का अत्यन्त सुन्दर मार्ग बताया. आत्म-संतोष के द्वारा उस परम वैभव को हम प्राप्त कर सकते हैं. यदि इच्छा और तृष्णा पर नियन्त्रण आ जाए तो मानसिक अशान्ति का नाश सहज हो सकता है. असन्तोष की अग्नि भयंकर है. चित्त की सारी प्रसन्नता उसमें जल कर राख हो सकती है. व्यक्ति हर क्रिया में प्रतिफल की कामना रखता है. यहाँ तक कि धर्मक्रिया में भी वह अपेक्षा रखता है कि कुछ मिल जाए. यही। असंतोष, विनाश का कारण है. अपने प्रारब्ध से जो सहज रूप में मिल जाए, उसी में संतोष होना चाहिये, हमारा सारा पुरुषार्थ अर्थ और काम पर ही केन्द्रित रहा. धर्म और मोक्ष का पुरुषार्थ गौण बन गया. सुख की प्राप्ति के जो साधन थे, उनको गौण बना दिया गृहस्थ जीवन में अर्थ और काम की प्राप्ति गौण विषय होना चाहिए था, उसे हमने मुख्य बना लिया. सारी समस्या, सारी विषमता यहीं से उत्पन्न हुई. सृष्टि में हर पदार्थ का मूल्य है परन्तु व्यक्ति ने स्वयं का मूल्यांकन नहीं किया. जन्म-जन्मान्तर की वर्षों की साधना के उपरान्त मनुष्य ने मानव-काया धारण कर मोक्ष का यह प्रवेश-द्वार प्राप्त किया है. इस मनुष्य जीवन की प्राप्ति के लिए भूतकाल में उसने बहुत से बलिदान किए और उसी की परिणति के रूप में वह मानव रूप में अवतरित हुआ.परन्तु इस वर्तमान में मानव शरीर से यदि उसने कुछ लाभ नहीं उठाया तो भविष्य में वह पुनः उसी अन्धकार के गहन गर्त में भटकता रहेगा. इस लोक में पदार्पण करने के अनन्तर वह अपने परिवार के भरण-पोषण करने जैसे सामान्य कर्त्तव्यों में ही उलझा रहा और उसने अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिये आत्म-दृष्टि विकसित नहीं की. उस व्यक्ति ने आज तक कभी नहीं सोचा कि मैं कितना मूल्यवान हूँ? एवम् किन महान कार्यों के परिणामस्वरूप ये साधन सुलभ हुए हैं? यदि वर्तमान शून्य रहा तो भविष्य में भी सृजन होने की कोई संभावना नहीं, विभिन्न धर्मों के सभी धर्माचार्यों ने सर्वप्रथम आत्मा के मूल्य को परखने का उपदेश दिया है. एक बार यदि आपका लक्ष्य आत्मा पर केन्द्रित हो गया और साधना के मूल्य को आप समझ गए तो मग्नता आ जाएगी और सारी साधना सफल हो जाएगी. सारी क्रिया सफल हो जाएगी, વિશેષાંક પ્રકાશન સૌજન્ય :. स्व. 6वनमा नवीनयंद्र शाह परिवार, सांतायुY, भुं ग रुवाणी' पुस्तक पेज-१९-२०)। આર્કેડિયા શિપીંગ લીમીટેડ તથા સુપ્રીમ ઑફશોર કન્સ્ટ્રક્શન એન્ડ ટેકનીકલ સર્વીસીસ લીમીટેડ, મુંબઈ , Book-Post NAVNEET PRI NAVNEET PRINTERS M.: 9825261177 For Private and Personal Use Only
SR No.525265
Book TitleShrutsagar Ank 2012 04 015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2012
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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