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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 'वि.सं. २०५८ - चैत्र ૧૭ कागज पर चित्रित पाण्डुलिपियाँ, लघुचित्र, लेखपट्ट, चित्रपट्ट विज्ञप्तिपत्र, काष्ट आदि से बनी प्राचीन एवं अर्वाचीन अद्वितीय कलाकृतियों तथा अन्यान्य पुरावस्तुओं को यहाँ बहुत ही प्रभावोत्पादक ढंग से धार्मिक व सांस्कृतिक गौरव के अनुरूप प्रदर्शित किया गया है. इस संग्रहालय का विशिष्ट आकर्षण परमार्हत कुमारपाल खंड है, जहाँ विशेष रूप से जैन श्रुत की श्रवण परम्परा से प्रारम्भ कर शिला, ताम्रपत्र, भूर्जपत्र, ताड़पत्र तदनन्तर हाथ से बने कागज पर लेखन कला के विकास की यात्रा दर्शाई गई है, जिसे देखकर हमें अपने पूर्वजों द्वारा उपलब्ध कराये गये आध्यात्मिक उत्कर्ष सांस्कृतिक गौरव एवं कला की श्रेष्ठता के दर्शन होते हैं. संग्रहालय को और भी समृद्ध करने के प्रयास किए जा रहे हैं. संग्रहालय शीघ्र ही नूतन भवन में स्थानान्तरित किया जाएगा. यहाँ समयसमय पर विशिष्ट प्रदर्शन भी आयोजित किये जाते हैं. श्रुत सरिता : कोबा तीर्थ में आने वाले दर्शनार्थियों एवं ज्ञान-पिपासुओं को यहाँ जैन धार्मिक व वैराग्यवर्द्धक साहित्य, आराधना सामग्री, धार्मिक उपकरण, सी. डी. कैसेट्स आदि उचित मूल्य पर उपलब्ध कराई जाती है. कोबातीर्थ से प्रकाशित जनोपयोगी साहित्य भी यहाँ उपलब्ध हैं. अंत में : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. की प्रबल भावना को मूर्तरूप प्रदान करते हुए उनके प्रशिष्य श्रुतोद्धारक आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. ने पूज्य गच्छाधिपति की पुण्य स्मृति में इस अद्वितीय एवं विशाल ज्ञानभंडार की स्थापना करवाई. आज यह ज्ञानभंडार भारतीय प्राच्यविद्या एवं जैन धर्मसंस्कृति के संशोधन- संपादन के क्षेत्र में कार्य करने वाले पूज्य साधु-साध्वीजी भगवंतों एवं संशोधकों विद्वानों को उनकी आवश्यकता की सूचनाएं शीघ्रातिशीघ्र उपलब्ध कराने में सदैव तत्पर है. यहाँ आने वाले विद्वान अपनी आवश्यकता की सूक्ष्म से सूक्ष्मतर सूचनाएँ भी अल्पावधि में प्राप्त होते देखकर आश्चर्य चकित हो जाते हैं. संशोधन-संपादन में सहायक जो सूचनाएँ कहीं से भी प्राप्त न हो, वह इस ज्ञानभंडार में प्राप्त होती है, ऐसी अवधारणा आज विद्वत्वर्ग में प्रचलित है जो इस ज्ञानभंडार की विशिष्टता का परिचायक है. आज यह ज्ञानतीर्थ जैन समाज का गौरव एवं पूज्य राष्ट्रसंत द्वारा प्रदत्त अनुपम आशीष है. દરેક વ્યક્તિ પાસેથી સદ્ભાવ પામવો છે ? તો ત્રણ કામ કરો. એક, હંમેશા બીજાનો વિચાર કરો जे हमेशा जीनो विश्वास छतो. ત્રણ, હંમેશા બીજાની સાથે સારો વ્યવહાર કરે. અને આ બે સ્કૂલ ક્યારેય ન કરતાં એક, બીજાનો અપલાપ ન કરશો બે, બીજાની નિંઢા ન કરશો For Private and Personal Use Only
SR No.525265
Book TitleShrutsagar Ank 2012 04 015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2012
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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