SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra .व.सं. २०५८ चैत्र www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोडीजी पार्श्वनाथ जैन मंदिर की गौरव गाथा ૯ संकलन : डॉ. हेमंत कुमार आरंभकाल से ही भारतवर्ष अनेक तीर्थकरों अवतरित महापुरुषों, ऋषियों-मुनियों, तीर्थस्थलों एवं महानगरों . का देश रहा है. भारतवर्ष के महानगरों में मुंबई महानगर का अद्वितीय स्थान है. अनेक तीर्थस्थलों के रूप में प्रतिष्ठित व विशिष्ट शिल्पांकनों से आवेष्टित मंदिरों की महानगरी मुंबई में गोड़ीजी पार्श्वनाथ मंदिर का अग्रगण्य स्थान है. गोड़ी पार्श्वनाथजी का यह तीर्थ मुंबई के व्यस्त क्षेत्र पायधुनी में अवस्थित है. इस क्षेत्र में जैनों की जनसंख्या अत्यधिक है. यहाँ कई जिनालय, अनेक उपाश्रय, पाठशालाएँ, ज्ञानभंडार के साथ आयंबिलशाला की भी अधिकता है. गोडीजी महाराज की गौरवगाथा की बात करनी हो तो महानगर मुंबई एवं यहाँ बसे जैन श्रीमंतों की बात पहले करनी पड़ेगी. मुंबई महानगर इतिहास के झरोखे में आलीशान भवनों एवं राजमार्गों से सुसज्ज मुंबई आज ४०० किलोमीटर के विस्तृत क्षेत्रफल वाला महानगर है, जो कभी सात छोटे-छोटे टापुओं में विभाजित था. समय के प्रवाह में देशी एवं विदेशी प्रवासियों के आवागमन से इस महानगर का आकार-प्रकार बदलता गया और आज हमारे समक्ष संपूर्ण भारतवर्ष की शोभारूप विशाल महानगर का रूप ले चुका है. ईस्वी सन् की पन्द्रहवी शताब्दी के उत्तरार्ध में पुर्तगालियों का मुंबई में आगमन हुआ और वे धीरे-धीरे अपना अधिकार जमाते हुए संपूर्ण मुंबई पर शासन करने लगे. १७वी शताब्दी के प्रारम्भ में पुर्तगाली राजकुमारी का विवाह ब्रिटेन के राजकुमार के साथ सम्पन्न हुआ और मुंबई शहर को ब्रिटेन के राजकुमार को दहेजरवरूप प्रदान कर दिया गया और तबसे ब्रिटेन का शासन प्रारम्भ हुआ. मुंबई में जैन समाज का इतिहास ई. स. की १८वीं शताब्दी के आरम्भिक काल से प्राप्त है, जबसे यहाँ बड़ी संख्या में मुख्यतः गुजरात एवं राजस्थान से जैन श्रेष्ठियों का आगमन होने लगा और मुंबई व्यापार का मुख्य केन्द्र बनता गया. अपने धार्मिक संस्कारों के साथ आये श्रेष्ठिगणों ने अपने आराध्यदेव की पूजा-अर्चना हेतु गृह जिनालयों की स्थापना की. इसी श्रृंखला में ईस्वी सन् १७५८ में शेठ श्री मोतीशाह के पिता शेठ श्री अमीचंदभाई खंभात से परिवार सहित पधारे और गृह जिनालय की स्थापना की जो मुंबई महानगर के जैन इतिहास में नींव का पत्थर सिद्ध हुआ. मुंबई के जैन मंदिर एवं जैनसंघ For Private and Personal Use Only मुंबई महानगर में आज अनेक भव्य जैन मंदिर हैं. लगभग २५० वर्ष पूर्व यहाँ एक भी जैन मंदिर होने का कोई इतिहास प्राप्त नहीं होता है. प्राप्त इतिहास के अनुसार मुंबई फोर्ट में जैन मंदिरों के निर्माण की शृंखला में सर्वप्रथम गोडीजी जैन मंदिर का निर्माण हुआ था. ईस्वी सन् १८०३ में फोर्ट में भयंकर आग लगने के कारण वहाँ "से लोग स्थानांतरित कर पायधुनी-भूलेश्वर में आ बसे और अपने साथ अपने आराध्यदेव को भी फोर्ट से स्थानांतरित कर पायधुनी ले आये, जहाँ शेठ मोतीशाह परिवार ने गोडीजी पार्श्वनाथ के भव्य जिनालय के निर्माण का संकल्प लिया एवं तदनुसार मंदिर का निर्माण करवाया. समय के प्रवाह के साथ-साथ अनेक पूज्य साधुसाध्वीजी का आगमन व चातुर्मास होने लगा और जहाँ-जहाँ जैन बहुल बस्ती थी वहाँ जैन मंदिरों, उपाश्रयों, ज्ञानभंडारों आदि का निर्माण होने लगा. आज मुंबई महानगर में जैन समाज द्वारा संरक्षित संचालित अनेक संस्थाएँ हैं, जो समाज कल्याण हेतु अग्रणी भूमिका का निर्वहण कर रहे हैं. गोडीजी पार्श्वनाथ इतिहास के आईने में भगवान श्री गोडीजी पार्श्वनाथ का इतिहास भी बड़ा रोचक है. वटपद्र (बरोडा) के सेठ श्री कानाजी द्वारा
SR No.525265
Book TitleShrutsagar Ank 2012 04 015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2012
Total Pages28
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy