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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૪ ફેબ્રુઆરી ૨૦૧૨ पुस्तक परिचय ग्रंथालय में संगृहीत अद्वितीय प्रकाशन )) सचित्र श्रीपालरास भाग १ से ५ समग्र जैन संघ में सुपरिचित नवपद माहात्म्य को प्रदर्शित करता श्रीपाल रास अपने निर्माण काल से ही जन-जन के लिये अति उपयोगी रहा है. पूज्य उपाध्याय श्रीविनयविजयजी एवं पूज्य महोपाध्याय श्रीयशोविजयजी द्वारा रचित इस सिद्धचक्र माहात्म्य काव्य में मयणा रानी एवं श्रीपाल राजा के व्यक्तित्व को विशेषरूप से प्रकाशित किया गया है. इस कथा के माध्यम से मुख्यरूप से महारानी मयणा के नारीत्व, सतीत्व, सत्व, ज्ञान, श्रद्धा, धैर्य, औदार्य आदि का वर्णन बड़ी ही कुशलतापूर्वक किया गया है. समग्र जैन संघ के लिये अति महत्त्वपूर्ण व सर्वोपयोगी इस पावन ग्रंथ को परम दानवीर श्रीमान प्रेमलभाई कापडिया ने विक्रम संवत २०६७ में सचित्र प्रकाशित किया है. गुजराती, हिन्दी एवं अंग्रेजी तीनों भाषाओं में ५५ भागों में ग्रंथ का प्रकाशन कर उन्होंने वस्तुतः एक ऐसा उत्कृष्ट कार्य किया है, जिससे विश्व में कहीं भी निवास करने वाले साधर्मिक जैनश्रावक इस ग्रंथ का यथोचित लाभ प्राप्त कर सकते हैं. मारुगुर्जर भाषा में लिखित श्रीपालरास की सभी गाथाओं को कलात्मक रूप से प्रस्तुत करते हुए दुर्लभ प्राचीन सचित्र हस्तलिखित ग्रंथों का आधार लिया गया है. बहुमूल्य ऐतिहासिक सचित्र हस्तप्रतों के अतिसुंदर किनारियों से प्रत्येक गाथाओं को सुशोभित किया गया है. इस ग्रंथ में जैन चित्रकला का अद्वितीय संकलन किया गया है. वाचक वर्ग के लिये ऐसी अनूठी कलाकृतियों का दर्शन भी दुर्लभ है. इस ग्रंथ के अवलोकन से यह पता चलता है कि जैन जगत की उत्कृष्ट, सुंदर एवं दुर्लभ चित्रकला को देशभर से एकत्र कर इस पावन ग्रंथ की शोभा में चार चांद लगा दिया गया है. यह कार्य सोने में सुहागा जैसा है. श्रीपालरास में वर्णित प्रत्येक मुख्य प्रसंगों को चित्रों में उतारकर हृदयंगम बनाने का प्रयास किया गया है. ग्रंथ में उद्धृत जयपुर मुगल शैली के चित्र अति सुंदर और उच्चस्तरीय हैं. संकलित उत्तम कलाकृतियाँ कथा प्रसंगों में प्राण का संचार करती हैं. प्रस्तुत ग्रंथ में वाचक वर्ग की जानकारी एवं सुविधा हेतु प्रत्येक विषयों की प्रस्तुति योग्य रूप से की गई है. सर्वग्राह्य एवं बहुप्रचलित मूलपाठ को प्राचीन लिपि में ही प्रकाशित कर वाचकों को प्राचीनलिपि का दर्शन कराने का अद्भुत कार्य किया है, मारुगुर्जर भाषा में लिखित टबार्थ को भी उसी रूप में प्रकाशित कर वाचकों के लिये अति उपयोगी बनाने का प्रयास किया गया है. पूर्वकालीन महात्माओं के द्वारा लिखित शब्द प्रायः गूढार्थयुक्त, विविध नयसापेक्ष वाले होते हैं. अतः उनके द्वारा रचित ग्रंथों को समझने में उपयोगी सिद्ध होनेवाले विषयों का योग्यरूप से समायोजन किया गया है. मूल ग्रंथ से संबंधित आवश्यक सामग्रियों को विविध परिशिष्टों में प्रकाशित कर इस प्रकाशन को और भी अधिक उपयोगी बनाया गया है. प्रस्तुत ग्रंथ में कुल ४०२ बहुमूल्य एवं हृदयंगम प्राचीन रंगीन चित्रों का संकलन करके जैन चित्रकला का अद्वितीय नमूना उपस्थापित किया गया है. सभी चित्र कथा प्रसंगों से संबंधित एवं हृदय में आह्लाद उत्पन्न करने वाले हैं. इस प्रकाशन में उपयोग किया जानेवाला कागज दीर्घायु है तथा मुद्रणकार्य भी अत्यंत सुंदर व आकर्षक है. परमादरणीय श्रावक श्रेष्ठ माननीय श्री प्रेमलभाई कापडिया ने प्रस्तुत पावन ग्रंथ को विविध उपयोगी सामग्रियों एवं चित्रों के साथ प्रकाशित कर जैनजगत के आकाश में एक देदीप्यमान नक्षत्र की भाँति प्रस्थापित कर दिया है. यह संपूर्ण ग्रंथ जैन समाज को गौरवान्वित करने वाला है तथा यह प्रकाशन साधकों, संशोधकों, जिज्ञासुओं ज्ञानियों, सामान्य वाचकों के लिये या यों कहें कि संपूर्ण मानवजाति के लिये उपयोगी है, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. वैसे तो श्रीपालरास में जैनधर्म-दर्शन का सार समाहित है ही, श्री कापडियाजी ने इस प्रकाशन में जैनशासन की समस्त विधाओं का समाविष्ट कर हर प्रकार के वाचकों का पूरा-पूरा ध्यान रखा है. इस ग्रंथ का अवलोकन मात्र ही कर्मनिर्जरा का कारण बन सकता है. यदि इसका वांचन-मनन किया जाए तो जीव अपना मानव जीवन सफल बनाने में अवश्य ही सक्षम होगा. For Private and Personal Use Only
SR No.525263
Book TitleShrutsagar Ank 2012 02 013
Original Sutra AuthorN/A
AuthorB Vijay Jain
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2012
Total Pages20
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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