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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी 7चार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक अभिलाषा और प्रशंसा, पौद्गलिक आहार से अतृप्ति, पांच महाव्रतों का पालन और विशिष्ट आराधना इत्यादि का वर्णन किया गया है. भक्तपरिज्ञा पयन्ना- २१५ श्लोक प्रमाण इसमें चारों प्रकार के आहार का त्याग कर अनशन की पूर्ण तैयारी हेतु उपदेश है. पंडित मरण के तीन प्रकार है. १. भक्त परिज्ञा २ इंगित ३ पादपोपगमन. भक्त परिज्ञा मरण भी दो प्रकार से है. १. सविचार २ अविचार, चाणक्य के समाधि भी कही गई है. इस पयन्ना पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध हैं अवचूर्णि, अज्ञात जैनश्रमण * टीका, आचार्य गुणरत्नसूरि तंदुलवैचारिक पयन्ना- ५०० श्लोक प्रमाण यह पयन्ना वैराग्य रस का भंडार है. मनुष्य अपने १०० साल के आयुष्य के अन्दर ४,६०,८०,००००० चावल के दाने का एक वाह ऐसे साढे बाईस वाह प्रमाण आहार लेता है. उसी प्रकार दुसरी वस्तुओं का भी आहार करता है. फिर भी तृप्त नहीं होता. गर्भावस्था, जन्म की वेदना व आयु की १० प्रकार की दशाओं का वर्णन है. तंडुल-चावल खाने के विचार से इस सूत्र का नाम प्रसिद्ध हुआ है. तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक-अवचूर्णि विजयविमल गणि गणिविज्जा पयन्ना- १०५ श्लोक प्रमाण इसमें ज्योतिष संबंधी प्राथमिक ज्ञान आदि वर्णन है. दिवस, तिथि, ग्रह, मुहूर्त, शकुन, लग्न, होरा व निमित्त इत्यादि का निरूपण किया गया है. गच्छाचार पयन्न- २०० श्लोक प्रमाण इसमें राधावेध का वर्णन है. राधावेध की साधना की तरह स्थिर चित्त से आराधना का लक्ष्य रखकर सभी प्रकार की प्रवृत्ति में अध्यवसाय स्थिर करने पूर्वक मरण को सुधारने का उपदेश है. इस प्रकीर्णक पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध बृहट्टीका, गणि विजयविमल * गच्छाचार प्रकीर्णक-लघुटीका, गणि विजयविमल * टीका, वानर्षि, देवेन्द्रस्तव पयन्न- ३७५ श्लोक प्रमाण बत्तीस इन्द्रों द्वारा की गई परमात्मा की स्तवना का वर्णन है. तदुपरांत ३२ इन्द्रों के स्थान, आयुष्य, शरीर, आगम महिषी, रिद्धि, सिद्धि, पराक्रम इत्यादि का वर्णन व सूर्य-चन्द्र-ग्रह-नक्षत्र-सिद्धशिला स्वरूप सिद्धों का वर्णन इस पयन्ना में है. मरणसमाधि पयन्ना- ८३७ श्लोक प्रमाण इसमें समाधि-असमाधि मरण का विस्तृत विचार कर मरण सुधारने की आदर्श पद्धत्ति एवं मन की चंचलता, कषायों की उग्रता, वासना का प्राबल्य रोकने हेतु सफल उपाय तथा आराधक पुण्यात्माओं के अनेक दृष्टान्त हैं. संथारग पयन्ना- १५५ श्लोक प्रमाण इस पयन्ना में अंतिम संथारे का मार्मिक वर्णन है. अन्त समय की आदर्श क्षमापना विधि, पंडित मरण से प्राप्त होने वाली आत्मऋद्धि, द्रव्य और भाव संथारे का स्वरूप, एवं विषम स्थिति में भी पंडित मरण की आराधना करनेवाले महापुरुषों के चरित्र वर्णित है. संस्तारक प्रकीर्णक-टीका, आचार्य गुणरत्नसूरि छेदसूत्र दशाश्रुतस्कंध- २००० श्लोक प्रमाण 88
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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