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पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी भाचार्यपद प्रदान
महोत्सव विशेषांक
पुत्र एवं पदम-महापदम आदि १० राजकुमार पौत्रों ने परमात्मा के पास दीक्षा लेकर भिन्न भिन्न देवलोक में गए और मोक्ष में जाएँगे. उनके तप-त्याग संयम की साधना विस्तार से निरूपित की गई है. कल्पावतंसिका पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध हैं
कल्पावतंसिकासूत्र-टीका, आचार्य चंद्रसूरि
पुष्पिकासूत्र (पुल्फिआ) यह प्रश्नव्याकरण का उपांग है. श्रीवीरप्रभु के पास १० देव-देवी समुह अद्भुत समृद्धि के साथ वंदन करने पुष्पक विमान में बैठकर आता है. उनके पूर्वभव प्रभु श्रीगौतमस्वामी को फरमाते है. अन्य भी सूर्य-चन्द्र-शुक बहुपुत्रिका, देवी-पूर्णभद्र-माणिभद्र-दत्त-शील आदि के रोमांचक कथाएँ दी गई है. पुष्पिकासूत्र पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध हैं
पुष्पिकासूत्र-टीका, आचार्य चंद्रसूरि
पुष्पचूलिका (पुप्फचुलिया) यह विपाकसूत्र का उपांग माना जाता है. श्री, ह्री, धृति आदि १० देवियों के पूर्व भव सहित अनेक कथानक हैं. श्रीदेवी पूर्वभव में भूता नामक स्त्री थी. उसे श्रीपार्श्वनाथ ने निर्ग्रन्थ प्रवचन में श्रद्धा उत्पन्न कराया था. इत्यादि का सुंदर विवरण है. पुष्पचूलिकासूत्र पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध हैं
पुष्पचूलिकासूत्र-टीका, आचार्य चंद्रसूरि
वन्हिदशासूत्र (वृष्णिदशा) यह सूत्र दृष्टिवाद का उपांग रूप है. अंधक वृष्णि वंश के और वासुदेव श्रीकृष्ण के अग्रज बंधु बलदेव के निषध आदि १२ पुत्र अखंड ब्रह्मचारी बनकर प्रभु नेमनाथ के पास दीक्षा अंगीकार कर सर्वार्थसिद्ध देवलोक में जाते हैं. वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में जन्म पाकर मोक्ष में जायेंगे, इत्यादि हकीकत सुंदर शब्दों में कही गई है. वन्हिदशासूत्र पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध हैं
वृष्णिदशासूत्र-टीका, आचार्य चंद्रसूरि निरयावलिकासूत्र- ११०० श्लोक प्रमाण (उपांग ८ से १२)
निरयावलिका एक श्रुतस्कंध माना जाता है. जिसके अंतर्गत पांच वग्ग रूप कल्पिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका व वृष्णिदशा को पेटा विभाग माने जाते हैं. इन पांच उपांगसूत्रों का पांच वर्गों के रूप में समावेश है. समुदित ग्रंथाग्र ११०० है. अतः उपर्युक्त विवरण निरयावलिका का ही हैं. प्रकीर्णक
चतुःशरण पयन्ना-६३ श्लोक प्रमाण
इसमें आराधक भाव वर्धक अरिहंत-सिद्ध-साधु और धर्म रूप चार शरण की महत्ता, दुष्कृत की गर्दा एवं सुकृत की अनुमोदना खूब मार्मिक ढंग से कही गई है. १४ स्वप्न के नामोल्लेख हैं. यह सूत्र चित्त प्रसन्नता की चाबी समान है. त्रिकाल पाठ से चमत्कारिक लाभ होता है. दुसरा नाम कुशलानुबंधि भी है.
आतुरप्रत्याख्यान पयन्ना- ८० श्लोक प्रमाण
इस में अंतिम समय करने योग्य आराधना का स्वरूप, बाल मरण, पंडित मरण, बाल पंडित मरण, पंडित पंडित मरण का स्वरूप खूब स्पष्टता से किया गया है. दुर्ध्यान के प्रकार बताकर रोग अवस्था में किसका पच्चक्खाण करना, क्या वोसिराना, कैसी भावनाओं से आत्मा को भावित करना इत्यादि बातें अच्छी तरह समझायी गई हैं. इस पर पंचांगी में से मात्र एक ही अवचूर्णि पाई जाती है
* आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-अवचूर्णि, आचार्य गुणरत्नसूरि महाप्रत्याख्यान पयन्ना- १७६ श्लोक प्रमाण साधुओं को अन्त समय में करने लायक आराधना का वर्णन है. दुष्कृत्यों की निंदा, माया का त्याग, पंडित मरण की
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