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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी भाचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक जीवाभिगमसूत्र- ४७०० श्लोक प्रमाण यह स्थानांगसूत्र का उपांग है. इसमें प्रश्नोत्तर शैली में जीव-अजीव, ढाई द्वीप, नरकावास तथा देवविमान संबंधी विशद विवेचन है. विजयदेव कृत जिनपूजा का वर्णन व अष्टप्रकारी पूजा का अधिकार अत्यंत रसप्रद है. जीवाभिगमसूत्र पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध है टीका, आचार्य मलयगिरिसूरि * लघुवृत्ति, आचार्य हरिभद्रसूरि प्रज्ञापनासूत्र- ७७८७ श्लोक प्रमाण यह समयवायांगसूत्र का उपांग है. प्रश्नोत्तर शैली के कारण इसे लघु भगवतीसूत्र भी कहा जाता है. जैन दर्शन के तात्त्विक पदार्थों का संक्षिप्त विश्वकोष माना जाता है. इसमें ९ तत्त्व की प्ररूपणा, ६ लेश्या स्वरूप, कर्म, संयम व समुद्धात आदि महत्त्वपूर्ण बातें विवेचित हैं. रत्नों का भंडार स्वरूप यह सूत्र उपांगों में सबसे बड़ा है. प्रज्ञापनासूत्र पर उपलब्ध विवरण निम्नलिखित हैं तृतीयपदसंग्रहणी की टीका, गणि कुलमंडन * टीका, आचार्य मलयगिरिसूरि * टीका, आचार्य हरिभद्रसूरि * टीका, अज्ञात जैनश्रमण. सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र- २२९३ श्लोक प्रमाण यह भगवतीसूत्र का उपांग है. खगोल विद्या की महत्त्वपूर्ण बातें इसमें संगृहित है. सूर्य-चन्द्र-ग्रह-नक्षत्र आदि की गति का वर्णन और दिन-रात-ऋतु आदि का वर्णन है. खगोल संबंधी सूक्ष्म गणित सूत्रों का खजाना है. सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध हैं सूर्यप्रज्ञप्ति-टीका, आचार्य मलयगिरिसूरि जम्बूद्वीप प्रज्ञप्तिसूत्र- ४४५६ श्लोक प्रमाण यह ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र का उपांग है. यह आगम मुख्य रूप से भूगोल विषयक है. कालचक्र और ६ आराओं का स्वरूप बहुत ही सुंदर ढंग से बताया गया है. उपरांत जम्बूद्वीप के शाश्वत पदार्थ, नवनिधि, मेरुपर्वत पर तीर्थंकरों के अभिषेक, कुलधर स्वरूप एवं श्रीऋषभदेव व भरत महाराजा का प्रासंगिक वर्णन है. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध टीका, उपाध्याय धर्मसागरगणि * टीका, मुनि ब्रह्मर्षि * टीका, उपाध्याय पुण्यसागर * टीका, अज्ञात जैनश्रमण * प्रमेयरत्नमंजूषा टीका, उपाध्याय शान्तिचंद्रगणि. चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र- २२०० श्लोक प्रमाण यह उपासकदशासूत्र का उपांग है. जैन खगोल संबंधी गणितानुयोग से भरपूर है. चन्द्र की गति, मांडला, शुक्ल पक्ष | व कृष्ण पक्ष में चन्द्र की वृद्धि तथा हानि होने के कारण व नक्षत्रों का वर्णन है. वर्तमान में चन्द्र का अधिपति चन्द्रदेव है, वह पूर्वजन्म में कौन था, कैसे इस पद को प्राप्त किया इत्यादि रसप्रद बातों का वर्णन प्रासंगिक रूप से किया गया है. चंद्रप्रज्ञप्ति पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध हैं चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-टीका, आचार्य मलयगिरिसूरि कल्पिकासूत्र (कप्पिआ) अन्तकृद्दशांगसूत्र का उपांग है. इसमें कोणिक राजा तथा चेड़ा राजा के साथ किए गए युद्ध का वर्णन है. जिसमें ८० करोड़ जनसंख्या की हानि हुई थी. सभी मरकर नरक गति में गए. अतः इस आगम का दुसरा नाम नरक आवली-श्रेणी पड़ा. कल्पिकासूत्र पर उपलब्ध विवरण इसप्रकार है कल्पिकासूत्र-टीका, आचार्य चंद्रसूरि कल्पावतंसिकासूत्र (कप्पवडंसिआ) यह अनुत्तरौपपातिकदशासूत्र का उपांग है. श्रेणिक महाराज के काल आदि १० 86
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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