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पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान
महोत्सव विशेषांक
अन्तकृदृशांगसूत्र- ९०० श्लोक प्रमाण
इसमें अन्तकृत् केवली भगवन्तों का वर्णन है. अन्त समय में केवलज्ञान पाकर अन्तर्मुहूर्त में मोक्ष में जाने वाले को अन्तकृत केवली कहा जाता है. द्वारिका नगरी के वर्णन से इस सत्र का प्रारंभ होता है. द्वैपायन ऋषि द्वारा द्वारिका नगरी का विनाश, अर्जुनमाली, अतिमुक्तक एवं शत्रुजय आदि के अधिकार प्ररूपित हैं. श्रेणिक राजा की २३ रानियों की तपश्चर्या का सुन्दर वर्णन है. अन्तकृद्दशांगसूत्र पर उपलब्ध विवरण इस प्रकार है
टीका, अज्ञात जैनश्रमण * टीका , आचार्य अभयदेवसूरि. अनुत्तरौपपातिकसूत्र- १३०० श्लोक प्रमाण
इस सूत्र में शुद्ध चारित्र के पालन से अनुत्तर देवविमान में उत्पन्न हुए एकावतारी ३३ उत्तम पुरुषों के जीवन चरित्र हैं. प्रभु श्रीमहावीर ने स्वयं जिनकी प्रशंसा की थी और जिनके शरीर का वर्णन किया था, उस धन्न कांकंदी महामुनि की कठोर तपस्या का रोमांचक वर्णन है. जिसके कारण उनकी काया हाडपिंजर हो गई थी. अनुत्तरौपपातिकदशासूत्र पर उपलब्ध विवरण निम्नलिखित हैं
अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टीका , आचार्य अभयदेवसूरि प्रश्नव्याकरणसूत्र- १२५० श्लोक प्रमाण
हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन व परिग्रह इन पांच महापापों का वर्णन और इन पापों के त्याग रूप पांच महाव्रतों का स्वरूप इस आगम में निरूपित है. पूर्वकाल में इसमें मन्त्र-तन्त्र विद्या, अतिशय संबंधी अनेक बातें और भवनपति आदि देवों के साथ बात करने व भूत भावी जानने की मान्त्रिक पद्धतियों का वर्णन है. प्रश्नव्याकरण सूत्र पर उपलब्ध विवरण इस प्रकार है
टीका, आचार्य अभयदेवसूरि * टीका, आचार्य ज्ञानविमलसूरि विपाकसूत्र - ११६७ श्लोक प्रमाण
इस सूत्र में अज्ञानावस्था में हिंसादि द्वारा भयंकर पाप कर्म के फलस्वरूप परभव में असह्य पीड़ा भोगने वाले महापापी आत्माओं के चरित्र का और धर्म की उत्तम आराधना से परभव में उत्कृष्ट सुख भोगने वाले १० धर्मी आत्माओं के चरित्र का वर्णन है. मृगापुत्र (लोढियो) तथा महामुनि सुबाहु के प्रसंग अद्भुत है. विपाकसूत्र पर उपलब्ध विवरण इसप्रकार है
विपाकसूत्र-टीका, आचार्य अभयदेवसूरि उपांगसूत्र
औपपातिकसूत्र- ११६७ श्लोक प्रमाण
यह आचारांगसूत्र का उपांग है. देव नारकी के उपपात-जन्म, मोक्ष-मन इत्यादि मुख्य विषय निरूपित हैं. श्रेणिक महाराज की प्रभु महावीर को वंदनार्थ जाने की अपूर्व तैयारियाँ, श्रेणिक द्वारा किया गया प्रभु का स्वागत (सामैया), अंबड तापस का ७०० शिष्यों सहित जीवन प्रसंग, केवली समुद्धात व मोक्ष का रोमांचक वर्णन इसमें संगृहित है. औपपातिकसूत्र पर उपलब्ध विवरण इस प्रकार है
औपपातिकसूत्र-टीका, आचार्य अभयदेवसूरि राजप्रश्नीयसूत्र-२१२० श्लोक प्रमाण
यह सूत्रकृतांगसूत्र का उपांग है. प्रदेशी राजाने जीवन संबंधी की गई शोध-परीक्षा, केशी गणधर द्वारा धर्मबोध, उनका समाधिमय मृत्यु, सूर्याभदेव के रूप में उत्पति, समवसरण में किये गये ३२ नाटक, भगवान महावीर को पूछे गये नास्तिकवाद के ६ गूढ प्रश्नों का तार्किक निराकरण इत्यादि इस आगम में वर्णित है. सिद्धायतनी १०८ जिन प्रतिमाओं का वर्णन भी मिलता है. राजप्रश्नीयसूत्र पर उपलब्ध विवरण इस प्रकार है
हिस्सा आद्यपद की आद्यपदभंजिका टीका, उपाध्याय पद्मसुंदर ' टीका, आचार्य मलयगिरिसूरि
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