SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी अाचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक सूत्रकृतांगसूत्र- २१०० श्लोक प्रमाण इसमें षड्दर्शन (विभिन्न धर्मो) एवं अन्यान्य धर्ममतों की अपूर्णता सिद्ध कर स्याद्वाद सिद्धान्त की स्थापना की है. साधु के आचार का व नरक के दुःखों का वर्णन किया गया है. इस आगम के अध्ययन से श्रद्धा मजबूत होती है. सूत्रकृतांगसूत्र पर उपलब्ध विवरण इस प्रकार है नियुक्ति, आचार्य भद्रबाहुस्वामी * चूर्णि, मुनि अज्ञात जैनश्रमण * दीपिका वृत्ति, मुनि हर्षकुल बृहद्वृत्ति, शीलांकाचार्य * सम्यक्त्वदीपिका टीका, उपाध्याय साधुरंग. स्थानांगसूत्र- ३७०० श्लोक प्रमाण इस आगम में जगत के भिन्न भिन्न पदार्थों का वर्गीकरण १ से १० प्रकार से किया है. आत्मतत्त्व को पहचानने हेतु उपयोगी पदार्थों का निरूपण करके चंचल वृत्ति का शमन होने पर तत्त्वज्ञान की भूमिका स्थिर होती है, यह कहा गया है. सैद्धान्तिक बातों का सम्यग्ज्ञान इस सूत्र से मिलता है. स्थानांगसूत्र पर उपलब्ध विवरण इस प्रकार है टीका, आचार्य अभयदेवसूरि * दीपिकाटीका, मुनि मेघराज * दीपिका वृत्ति, गणि नगर्षि समवायांगसूत्र- १६६७ श्लोक प्रमाण इस आगम में १ से १०० तक की गिनती में वस्तुओं का निरूपण करके कोडा-कोडी पर्यन्त की संख्या में पदार्थों का निर्देश किया गया है. सभी आगमों का संक्षिप्त परिचय, तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, व प्रतिवासुदेव इत्यादि का वर्णन किया गया है. समवायांगसूत्र पर उपलब्ध विवरण इस प्रकार है समवायांगसूत्र-वृत्ति, आचार्य अभयदेवसूरि भगवतीसूत्र- १५७५१ श्लोक प्रमाण श्रीगौतमस्वामी द्वारा पूछे गये ३६००० छत्तीस हजार प्रश्नों के भगवान महावीर द्वारा किये गये सुंदर समाधानों का संकलन. गणधरदेव श्रावक-श्राविका और जैनेतरों द्वारा किये गये अन्य प्रश्नोत्तरों का भी संकलन. अद्वितीय शैली में अनेक विषयों का गंभीर वर्णन गुरुमुख से सुनने लायक हैं. भगवतीसूत्र पर उपलब्ध विवरण इस प्रकार है चूर्णि, आचार्य अज्ञात जैनाचार्य * भगवतीसूत्र आलापक की अवचूर्णि, अज्ञात जैनश्रमण * अभयदेवीय टीका के हिस्से -निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण की टीका, आचार्य रत्नसिंहसूरि * अवचूर्णि, मुनि अज्ञात जैनश्रमण * टीका, आचार्य अभयदेवसूरि * लघुवृत्ति, आचार्य दानशेखरसूरि. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- ५४५० श्लोक प्रमाण यह आगम रूपक दृष्टान्त एवं महापुरुषों के जीवन चरित्रों से समृद्ध है. पूर्वकाल में इसमें २ अरब ४६ करोड ५० लाख कथा-उपकथाओं का निरूपण था, ऐसा निर्देश है. वर्तमान में मात्र १९ कथाएँ उपलब्ध होती है. बाल जीवों को धर्मानुरागी बनानेवाला धर्मकथानुयोग का सर्वोत्तम ग्रन्थ. इस ग्रन्थ पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध हैं टीका, आचार्य अभयदेवसूरि * ज्ञातानामुद्धार-टीका, अज्ञात जैनश्रमण. उपासकदशांगसूत्र- ८१२ श्लोक प्रमाण इस आगम में भगवान श्रीमहावीर प्रभु के १२ व्रतधारी प्रमुख दश श्रावकों की जीनवचर्या का वर्णन है. आदर्श श्रावक जीवन कैसा हो उसका सुंदर बोध होता है. गोशालक का नियतिवाद व उसके द्वारा परमात्मा को दी गई महामाहण, महागोप, महासार्थवाह, महाधर्मक और महानिर्यामिक की यथार्य उपमाओं का वर्णन किया गया है. उपासकदशांगसूत्र पर उपलब्ध विवरण इस प्रकार है उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आचार्य अभयदेवसूरि 84
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy