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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी भाचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक जैनागमों का परिचय मनोज र. जैन, कोबा शासननायक भगवान महावीर की वाणी सूत्र रूप में गणधरों को प्राप्त हुई थी. उन सूत्रों को गणधरों एवं चतुर्दशपूर्वधर श्रुतस्थविरों ने जनसामान्य के कल्याणार्थ नियुक्ति के रूप में प्रस्तुत किया. नियुक्ति सामान्यतः संक्षिप्त शैली से सूत्र की प्रस्तावनारूप या सूत्र को समझने के लिए आवश्यक पदार्थों/बातों की स्पष्टता/पूर्ति रूप होती है. वर्तमान में मात्र ८अ२ आगमों पर ही नियुक्ति मिलती हैं. परंपरा से नियुक्तियों के कर्ता श्री भद्रबाहुस्वामी कहे जाते हैं. नियुक्तियाँ पद्यबद्ध - गाथामय ही होती है व इनकी भाषा अर्धमागधी/प्राकृत होती है. परन्तु नियुक्ति प्रायः प्राकृत में श्लोकबद्ध तथा अत्यन्त संक्षिप्त होती हैं. नियुक्तियों के तुरंत बाद के काल में श्रुतस्थविरों द्वारा भाष्यों की रचना हुई. ये भी नियुक्तियों की ही तरह गाथाबद्ध प्राकृत में ही लिखे गए हैं. सामान्यतः इनकी गाथा संख्या नियुक्तियों से काफी कम होती हैं, ये भाष्य मूल व नियुक्ति पर नियुक्ति के अवशिष्ट विषयों को स्पष्ट करते हैं. वर्तमान में ९ आगमों पर भाष्य उपलब्ध है. जैनागमों व नियुक्तियों पर प्रायः संयुक्त रूप से कथंचित् विस्तारपूर्वक प्राकृत व संस्कृत मिश्रित भाषा में की गई व्याख्या चूर्णि कही जाती है. चूर्णि शब्द चूर्ण से आया है. जिस तरह मोटे (गरिष्ठ) दल का भोजन पचने में भारी होता है, परंतु उसे पीस कर उसका चूर्ण बनाकर दिया जाय तो छोटा बालक भी उसे अच्छी तरह पचा सकता है. उसी तरह विवेच्य कृति के दुरूह अंशों को चूर्ण कर 'बालानां सुखबोधाय' रची हुई कृति को चूर्णि से संबोधित किया गया है. मूल कृति पर सामान्यतः संस्कृत अथवा प्राकृत भाषा में रचित वृत्ति, व्याख्या, दीपिका, न्यास, लघुवृत्ति और बृहद्वृत्ति आदि रचनाओं को टीका कहा जाता है, जो कि सामान्यतः गद्यात्मक ही होती है. क्वचित् पद्यबद्ध टीकाएँ भी मिलती है. टीका अपनी उपरी कृति के प्रतिपाद्य विषय के सामान्य, मध्यम, विस्तृत या अतिविस्तृत विवरण के रूप में होती है. यह मूल, नियुक्ति, भाष्य, टीका या इनके किसी अंश/हिस्से मात्र पर रची जाती है. कई बार यह एक ही परिवार की मूलअनियुक्तिअभाष्य इन तीनों पर संयुक्त स्वरूप से भी होती है. खासकर आगमों पर इस तरह की टीकाएँ पाई जाती है. इसी तरह मूल व टीका पर भी अन्य संयुक्त टीकाएँ पाई जाती है. इस प्रकार आगम को समझने के लिए नियुक्ति, मूल व नियुक्ति को समझने के लिए भाष्य, मूल, नियुक्ति व भाष्य को समझने के लिए चूर्णि व टीका. इन्हें पंचांगी कहा जाता है. टीका के सिवाय आगमग्रंथों पर अवचूर्णि या अवचूरि, विषमपद व्याख्या और टिप्पनादि भी उपलब्ध होते हैं जो क्वचित मूलसूत्रादि के विशेष पदार्थों को और कभी टीकाओं के गंभीर रहस्यों को बालग्राह्य बनाते हैं. अंगसूत्र आचारांगसूत्र २५५४ श्लोक प्रमाण इसमें जीवन शुद्धि की उत्कृष्टता का उपदेश संगृहीत है. प्रत्येक प्राणी के साथ आत्मीयभाव जागृत करना व उसके लिए ६ प्रकार के जीवों की जयणा पूर्वक आचार की शुद्धि कैसे करना है, इत्यादि का मार्गदर्शन यह सूत्र देता हैं. आचारांगसूत्र पर उपलब्ध विवरण इस प्रकार है नियुक्ति, आचार्य भद्रबाहुस्वामी * चूर्णि, गणि जिनदास महत्तर * अवचूर्णि, अज्ञात जैनश्रमण * टीका, शीलांकाचार्य * प्रदीपिका टीका, गच्छाधिपति जिनहंससूरि * प्रथमश्रुतस्कंध-अवचूर्णि, अज्ञात जैनश्रमण * प्रथमश्रुतस्कंध-दीपिकाटीका, आचार्य अजितदेवसूरि 83
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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