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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी अाचार्यपढ़ प्रदान महोत्सव विशेषांक इस सूत्र में असमाधि के २० स्थान इत्यादि अध्ययन है, इसीका ८ वां पर्युषणा अध्ययन है, जिसे कल्पसूत्र कहते है, तुर्विध संघ समक्ष धूम-धाम से व्याखान किया जाता है.२१ शब्दकोष, गुरु की ३३ आशातना, साधु श्रावक की प्रतिमा व नियाणा आदि का वर्णन है दशाश्रुतस्कन्ध पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध है नियुक्ति, आचार्य भद्रबाहुस्वामी * नियुक्ति की चूर्णि, अज्ञात जैनश्रमण * जनहिताटीका, मुनि ब्रह्मर्षि. बृहत्कल्पसूत्र- ४७३ श्लोक प्रमाण श्री बृहत्कल्पसूत्र में साधु साध्वी के मूलगुण व उत्तर गुण संबंधी प्रायश्चित का अधिकार है. उत्सर्ग और अपवाद का सूक्ष्मग्राही वर्णन है. विहार आदि में नदी पार करने में किस रीति का आचरण करना चाहिए जिसमें छद्मस्थ के अनुपयोग जन्य दोषों का शोधन निरूपित है. इस सूत्र का संकलन प्रत्याख्यान प्रवाद नामक पूर्व से किया गया है. इस पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध हैं नियुक्ति, आचार्य भद्रबाहुस्वामी * नियुक्ति की चूर्णि, अज्ञात जैनश्रमण * नियुक्ति की टीका, आचार्य क्षेमकीर्तिसूरि * भाष्य की टीका, आचार्य मलयगिरिसूरि (अपूर्ण) । चूर्णि, अज्ञात जैनश्रमण. व्यवहारसूत्र- ३७३ श्लोक प्रमाण यह दण्डनीति शास्त्र है. प्रमादादि के कराण लगे दोषों के निवारण की प्रक्रिया बतलाई गई है. आलोचना सुनने वाला और करने वाला कैसा होना चाहिए, आलोचना कैसे भावों से करनी चाहिए, किसको कितना प्रायश्चित लगता है, किसको पदवी देनी किसको नहीं, कैसै आराधकों को अध्ययन कराना व पाँच प्रकार के व्यवहार इत्यादि का वर्णन किया गया है. इस पर निम्नलिखत विवरण उपलब्ध हैं नियुक्ति, आचार्य भद्रबाहुस्वामी * टीका, आचार्य मलयगिरिसूरि जीतकल्पसूत्र-२२५ श्लोक प्रमाण जीतकल्प गंभीर सूत्र है. साधु जीवन में संभवित अतिचारों, अनाचारों के १० और १९ प्रकार के प्रायश्चितों का विधान किया गया है. समर्थ गीतार्थ गुरु भगवन्त ही इसके अधिकारी माने जाते हैं. इस ग्रन्थ पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध चूर्णि, आचार्य सिद्धसेनसूरि * चूर्णि की विषमपदव्याख्या, आचार्य चंद्रसूरि * टीका, आचार्य तिलकाचार्य निशीथसूत्र- ८५० श्लोक प्रमाण इस सूत्र में साधु के आचारों का वर्णन है. प्रायश्चित और सामाचारी विषयक बातों का भंडार है, प्रमादादि से उन्मार्गगामी साधु को सन्मार्ग में लाता है. इसका दुसरा नाम आचार प्रकल्प है. निशीथ याने मध्यरात्रि में अधिकार प्राप्त शिष्य को एकान्त में पढाने योग्य महत्त्वपूर्ण आगम ग्रन्थ है. इस पर निम्नलिखित विवरण उपलब्ध हैं नियुक्ति, आचार्य भद्रबाहुस्वामी * नियुक्ति की चूर्णि, गणि जिनदास महत्तर * भाष्य की विशेष चूर्णि, गणि जिनदास महत्तर. महानिशीथसूत्र- ४५४८ श्लोक प्रमाण महानिशीथ सूत्र में वर्धमान विद्या तथा नवकार मंत्र की महिमा, उपधान तप का स्वरूप, विविध तप, गच्छ का स्वरूप, गुरूकुल वास का महत्त्व, प्रायश्चित का मार्मिक स्वरूप और ब्रह्मचर्य व्रत खंडन से होने वाले दुःखों की परंपरा बताकर कर्म सिद्धांत को सिद्ध किया है. संयमी जीवन की विशुद्धि पर खूब जोर दिया गया है. मूलसूत्र आवश्यकसूत्र- १३५ श्लोक प्रमाण आवश्यक सूत्र में साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका रूप चतुर्विध संघ को प्रतिदिन करने योग्य छ आवश्यक याने 89
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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