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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक यह विशिष्ट तालपत्रीय ग्रन्थ ईस्वी सन् ११वीं शताब्दी में संस्कृत भाषा व जैनदेवनागरी लिपि में लिखित त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र के प्रथम पृष्ठ का है तालपत्र के ऊपर उत्कीर्णन पद्धति से रहित मात्र रंगों से बनाये गये इस चित्र में क्रमशः ग्रन्थकर्ता श्रीहेमचंद्राचार्यजी और कुमारपाल महाराजा चित्रित है. चित्र संख्या ३ यह बंगाली लिपि व संस्कृत भाषा में लिखित ईस्वी सन् १४वीं सदी का ग्रंथ है, ग्रंथ का नाम शिशुपालबध है. एक पत्र में ७ पंक्तियाँ हैं और एक पंक्ति में लगभग ६० से ७८ अक्षर हैं. पत्र में स्थित छेद ग्रंथ को बांधने के स्थल दर्शाता हैं चित्र संख्या-४ यह कन्नड लिपि तथा कन्नड भाषा में श्रीताल पत्र में लिखित विशिष्ट ग्रंथ है. ग्रंथ का नाम श्रावकाचार सार है, यह १७वीं शताब्दी का ग्रंथ है. इसमें १० पंक्तियाँ हैं, तथा प्रत्येक पंक्ति में लगभग ५४ अक्षर हैं. पृष्ठ संख्या बांई ओर छेद के ऊपर दर्शायी गई है, लेखन को दो भागों में विभक्त किया गया है.. ग्रंथ बांधने हेतु दो छेद किए गए हैं. इस ग्रन्थ के ऊपर मात्र सफाई की गई है. चित्र संख्या ५ यह श्रीताल पत्र के ऊपर संस्कृत भाषा में व तेलुगु लिपि में गद्य-पद्यबद्ध लिखित ग्रंथ है. ईस्वी सन् की १९वीं शताब्दी में लिखित ग्रंथ है. ग्रंथ का नाम सुंदरकाण्ड है. बांई ओर १ से ९ तक पंक्तियों के क्रमांक भी दिए गए हैं. लगभग एक पंक्ति में ४५ से ४९ अक्षर हैं, ग्रन्थ को बांधने हेतु दो छेद किए गए हैं. 65 adh ' Laxt 4 ferent r (a) on't 64 ad Has 196 any 5038601 684 ● सोन्य● પૃથ્વીરાજ કોઠારી ૯૮૯૨૨૪૦૨૧૬, મુંબઈ महाय EXTER ઓગણત્રીસ પાપત રૂપ અને સાત વિષ્ણુવિના ગુણોના સ્વરૂપના જાણકાર આવી છત્રીય ગુણોથી યુક્ત આચાર્યોને પં Hepala act MZ D 26550
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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