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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी भाचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक जैनधर्म में तालपत्र-अन्य धर्मग्रंथों के साथ-साथ जैनधर्म से सम्बन्धित ग्रंथ दक्षिण भारत में तालपत्र में लिखे गये है. कागज पर लिखने की पद्धति पश्चातवर्ती होने से अधिकतर लेखकों ने ताडपत्र पर लिखे हुए ग्रन्थों की पद्धति का अनुकरण किया है. क्योंकि प्राचीन तालपत्रीय ग्रन्थों में प्रत्येक पत्र के मध्य जहाँ डोरी डाली जाती थी, वह स्थान प्रायः रिक्त पाया जाता है. जब कागज के ग्रंथों में लिखने का प्रारंभ हुआ तो तालपत्र की तरह पत्रों के बीच में छेद करने का भी अनुकरण हुआ होगा ऐसा कागज की प्रतियों में देखने से ज्ञात होता है. जिसमें कहीं हिंगलू का वृत्त, चतुर्मुख वापी आदि के रंगीन या खाली चित्र मिलते है. इतना ही नहीं, ई. सन् १४ वीं शताब्दी में लिखे हुए ग्रन्थों में प्रत्येक पत्र के ऊपर व नीचे की पट्टियों में छेद किया हुआ देखने में आया है, यद्यपि उन छेदों की कोई आवश्यकता न थी. पन्नवणासूत्र, समवायांगसूत्र आदि ग्रन्थों में १८ लिपियों के नाम मिलते है, जिनमें सबसे पहला नाम बंभी (ब्राह्मी) लिपि का आता है. भगवतीसूत्र में ब्राह्मी लिपि को नमस्कार करके (नमो बंभीए लिविए) सूत्र का प्रारंभ किया है. ब्राह्मी लिपि वास्तव में नागरी (देवनागरी) का ही प्राचीन रुप है. विशेष ज्ञातव्य-तालपत्रों को अधिक समय तक खोलकर नहीं रखना चाहिए, इन्हें आर्द्रता तथा अति उष्णता से बचाना चाहिए, सफाई की प्रक्रिया को बार बार बदलना नहीं चाहिए, ग्रन्थ के दोनों ओर काष्ठ की उत्तम पट्टियों से कसकर बांध देना चाहिए. प्लास्टिक का प्रयोग नहीं करना चाहिए. क्योंकि अक्षर अपठनीय हो जाते हैं परंतु उपरोक्त पद्धति अपनाने से यह समस्या नहीं होती, केमिकल का प्रयोग ग्रन्थ को अल्पायु कर सकता है, अतः इसका उपयोग नहीं करना चाहिए. अधिक उष्ण हवा से हानि होती है. यही कारण है कि नेपाल आदि शीतप्रधान देशों में तालपत्रीय ग्रन्थों को दीर्घावधि तक संरक्षित किया जा सकता है. गवेषणा से यह जानकारी प्राप्त होती है कि तालपत्र का आयुष्य हजारों वर्षों से भी अधिक है. हमारे पास उपलब्ध १००० वर्ष प्राचीन तालपत्र ग्रंथ इसे प्रमाणित करते हैं. ये अभी भी सुंदर, सुदृढ तथा कमनीय लगते हैं. देश के भिन्न भिन्न संग्रहालयों में संग्रह, संशोधन आदि कार्य प्रगति पर है. सरकारी स्तर पर भी ताडपत्रों का संरक्षण, प्रशिक्षण कार्य जारी है. तालपत्रों की यह संरक्षण पद्धति प्राचीन विद्या के क्षेत्र में संशोधन करनेवाले संशोधकों हेतु अत्यन्त उपयोगी प्रतीत होती है. सातवासात अशाजियसाधना यद्यानधारावमल समामादावावधामा सध्याचार्यमाहिम मेयीमारिवल प्राचीन तालपत्र के कुछ विशिष्ट नमूने-चित्र संख्या-१, चित्र संख्या-२ કાઠઠાવીસ Clધે અને સાઠ પ્રભાdડની સ્વરૂ૫oll હાલ નાની ઉમીણ ગુણોથી યુક્ત આથાર્થોને વંદન सोन्य જિતેન શાહ C૮૧0C80ર0 , ajolઈ 63
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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