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________________ पन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी) अाचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक से सज्ज है. वेब-साईट डिजाईनिंग व इन्टरनेट सुविधाएँ : १. श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ का विस्तार से परिचय कराने वाली वेब-साईट की सामग्री तैयार कर इसे यहां पर विकसित किया गया है. समय-समय पर इसे अपडेट भी किया जा रहा है. संस्था के साथ वाचक पत्र व्यवहार हेतु इ-मेल का उपयोग कर रहे हैं. २. पाइय सद्द महण्णवो शब्दकोश प्रायोगिक तौर पर इन्टरनेट पर उपलब्ध किया गया है. अर्धमागधी कोष तथा शब्दरत्नमहोदधि भी शीघ्र ही इंटरनेट पर उपलब्ध करा देने के प्रयास चल रहे हैं, १. प्राकृत, संस्कृत शब्दकोश कम्प्यूटरीकरण प्रोजेक्ट : इस प्रोजेक्ट में जैन परंपरा के निम्नलिखित कोशों को कम्प्यूटरीकरण हेतु चयन किया गया है- (१) पाईअसद्दमहण्णवो- (प्राकृत, संस्कृत, हिंदी), (२) अर्धमागधी कोश ५ भागों में (प्राकृत, संस्कृत, गुजराती, हिंदी, अंग्रेजी), (३) शब्दरत्न महोदधि ३ भागों में (संस्कृत-गुजराती). २. इन तीनों के अतिरिक्त हस्तप्रत लेखन वर्ष एवं कृति के रचनावर्ष को बतानेवाले सांकेतिक शब्दों हेतु संख्यावाचक शब्दकोश को भी कम्प्यूटर पर उपलब्ध किया गया है. यह कोश काफी उपयोगी सिद्ध हो रहा है, ३. प्रायोगिक तौर पर पाइअसद्दमहण्णवो को www.kobatirth.org/dic/dic.html वेब साईट पर भी रखा गया अक्षर (प्राचीन लिपि) प्रोजेक्ट : प्राचीन लिपि को जानने व समझनेवाले बहुत कम विद्वान ही रह गये हैं. सदियों की संचित हस्तप्रत, ताडपत्र, ताम्रपत्र, भोजपत्र, वस्त्रपटादि अपनी श्रुत धरोहर को सुरक्षित रखने, उनकी महत्ता, उपयोगिता से अगली पीढ़ी को परिचित कराने हेतु अक्षर प्रोजेक्ट का कार्य चल रहा है. विद्वानों एवं अध्येताओं को प्राचीन हस्तलिखित साहित्य को पढ़ने में सुगमता रहे, इस हेतु वि. सं. ९०० से वि.सं. २००० तक देवनागरी-खासकर प्राचीन जैनदेवनागरी लिपि के प्रत्येक अक्षर/जोडाक्षर, अंक व अन्य संकेतों में प्रत्येक शतक में क्या-क्या परिवर्तन आए और उनके कितने वैकल्पिक स्वरूप मिलते हैं, उनका संकलन करते हुए उनके चित्रों का कम्प्यूटर पर एक डेटाबेस में संग्रह किया गया है. ला. द. विद्यामंदिर के श्री लक्ष्मणभाई भोजक का भी इसमें सहयोग रहा है. वास्तव में तो कोबा तीर्थ एवं ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर दोनों के संयुक्त प्रोजेक्ट के रूप में इसे देखा जा सकता है. यह कार्य दो भागों में विभाजित है. अक्षर संकलन: अप्रकाशित कृतियों के प्रकाशनार्थ लिपि विषयक दुरूहता को ध्यान में रखकर खासकर साधु-भगवन्त, शोधार्थियों हेतु इस कार्य के अन्तर्गत विक्रम संवत् की १०वीं से २०वीं सदी तक के विभिन्न हस्तलिखित ताडपत्रीय आदि शास्त्रग्रन्थों को स्केनिंग करके अपेक्षित मूलाक्षर, जोडाक्षर, मात्राएँ, विविध लाक्षणिक चिह्नों, विशेषताओं, अंकों/अक्षरांकों आदि का व्यापक છે દીક્ષા અપાનની અઢાર દોષની જ્ઞાતી ને અઢાર પ્રકારના પાપસ્થM5ll Pવરૂપના નિરુપs આવા છત્રીસ ગુણોથી યુકત હતો આયાર્યોને વંદન सोय. થી શાબાdICI બાવકુભાઈ ઝવેરી શ્રીમતી s[cરીeણીબા શાબિતભાઈ ઝવેરી હસ્તે શ્રી હરેશભાઈ શાંતિલાલ ઝવેરી, મુંબઈ 55
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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