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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक २,४६,६६९ पन्नों की झेरोक्ष प्रतियाँ ज्ञानमंदिर के उपयोगार्थ निकाली गईं. हस्तप्रत जेरोक्स सेवा का लाभ पूज्य आचार्य रामसूरिजी, मुनिश्री जम्बूविजयजी, आचार्य प्रेमसूरिजी, आचार्य श्री प्रद्युम्नसूरिजी, आचार्य श्री मुनिचंद्रसूरिजी, आचार्य श्री हेमप्रभसूरिजी, आचार्य श्री कलाप्रभसागरसूरिजी (अचलगच्छ) आ. श्री चंद्रोदयसूरिजी, आ. श्री धर्मधुरंधरसूरिजी, मुनिश्री भुवनचंद्रजी (पायचंदगच्छ) मुनिश्री सर्वोदयसागरजी (अचलगच्छ) आ. सा. विस्तीर्णाजी (स्थानकवासी) आ. महाप्रज्ञजी (तेरापंथ), डॉ. कुमारपाल देसाई.. पं. पार्श्वकुमार (अचलगच्छ) डॉ. इमरेबाघा (यु. एस. ए.) डॉ. कविन शाह, उपा. विनयसागर जी (खरतरगच्छ) एल. डी. इन्डोलोजी अहमदाबाद, डॉ. वैद्य हार्डिकरजी, डॉ.कलाबेन, डॉ. मौलिबाई महासती, डॉ. शीवमुनिजी (आ. स्थानकवासी) डॉ. अनिल जैन (दिगंबर) डॉ. आर. एस. लोकापुर, डॉ. बिन्दुबेन, डॉ. प्रभुरक्षित मुनि (स्वामीनारायण) डॉ. चंद्रकान्त कडिया, डॉ. रामैय्या श्रीनिवासन, डॉ. रामप्रियजी, महाजनम् संस्था, श्रुतलेखनम् संस्था, डॉ. अभय दोसी, डॉ. वेंकटाचार्य, श्री जयन्तभाई कोठारी, इत्यादि सैंकड़ों साधु साध्वीजी प्रमुख विद्वान. पत्र-पत्रिका विभाग: संस्था में लगभग २० हजार पुरानी तथा नवीन पत्रिकाएँ संग्रहित की गई हैं. इनमें से कुछ पत्रिकाओं तथा जर्नल्स के सेट दुर्लभ हैं. प्रतिमास औसतन ६०-६५ नवीन पत्र-पत्रिकाएँ खरीद तथा भेट में नियमित रूप से मँगाई जाती हैं. इन्हें वाचकों को पठनार्थ उपलब्ध कराया जाता है. पुस्तक वितरण : अन्य ज्ञानभंडारों अथवा सद्गृहस्थों से भेंटस्वरूप प्राप्त पुस्तकें यदि अत्यन्त जीर्ण-शीर्ण होती हैं तथा उसकी निर्धारित संख्या ज्ञानमन्दिर में पहले से ही उपलब्ध होती हैं अथवा उस पुस्तक की विषयवस्तु ज्ञानमन्दिर के स्तर के अनुरूप नहीं होती हैं. तो उन पुस्तकों को एक अलग विभाग में सुरक्षित रखा जाता है तथा समय-समय पर उन्हें अन्य ज्ञानभंडारों को भेंट स्वरूप दे दिया जाता है. अब तक लगभग २५,००० पुस्तकें समयोचित अन्य संस्थाओं/संघों को उनकी आवश्यकतानुसार भेंट स्वरूप दी गई. जिनके लाभार्थी हैं- श्रुतनिधि ट्रस्ट अहमदाबाद, शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च इन्स्टीच्यूट अहमदाबाद, प्राकृत भारती एकेडमी, जयपुर, प्राच्य विद्यामंदिर, शाजापुर, जैन सेन्टर, अमेरिका व यू. के, आंबावाडी जैनसंघ, अहमदाबाद, सिरोडी, राजस्थान, बुद्धिविहार, माउन्ट आबू, अजीमगंज, कलकत्ता, संभवनाथ जैन पेढ़ी, श्रीसंघ, वड़ोदरा व मोहित कोबावाला स्कूल. आर्यरक्षितसूरि शोधसागर : जैनागमों के अध्ययन हेतु मास्टर-की रूप अनुयोगद्वारसूत्र के रचयिता युग प्रधान श्री आर्यरक्षितसूरि को समर्पित इस अनुसन्धान का मुख्य ध्येय जैन परम्परा के अनुरूप जैन साहित्य के संदर्भ में गीतार्थ निश्रित शोध-खोल एवं अध्ययन-संशोधन हेतु यथासम्भव सामग्री एवं सुविधाओं को उपलब्ध करवाकर उसे प्रोत्साहित करना व सरल और सफल बनाना है. जैन साहित्य को भारतवर्ष में ही नहीं अपितु विश्व साहित्य में अपना एक अनोखा व विशिष्ट स्थान प्राप्त है. इसमें जैनधर्म के प्रवर्धक तथा . ચૌદ ગુણસ્થાન, પ્રતિપાદિ અને મૃaalolી શાતા આવા છplીસ ગુણોથી યુd થાર્યોને વંદol રા શ્રી શાબનીવાવ મોહનલાલ દોશી શ્રીની માયાબેof શાંતિelluદોણી હeતે નિતીનભાઈએણ.દોણી, સંબઈ
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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