________________
पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी भाचार्यपद प्रदान
महोत्सव विशेषांक
पूज्य साधु-भगवन्तों तथा स्व-पर कल्याणक गीतार्थ निश्रित सुयोग्य मुमुक्षुओं को उनके अध्ययन-मनन के लिए यहाँ संग्रहीत सूचनाएँ, संदर्भ एवं पुस्तकें उपलब्ध करने के साथ ही दुर्लभ ग्रंथों की लगभग ११२०५ पन्नों की फोटोस्टेट प्रतियाँ भी निःशुल्क उपलब्ध करायी गई है.
विविध विषय जैसे प्राचीन भाषाएँ, शास्त्र, आयुर्वेद, गणित, ज्योतिष, वास्तु, शिल्प, विविध कलादि ज्ञान-विज्ञान, लुप्त हो रही ज्ञानसंपदा तथा नवीन सिद्धियाँ यथा कृति, प्रकाशन, पारम्परिक तकनीकी ज्ञान-विज्ञान आदि जिज्ञासु जनों को उपलब्ध कराया जाता है.
ग्रंथालय के वाचकों में प्रमुख रूप से सम्पूर्ण जैन समाज के साधु-साध्वीजी भगवन्त, मुमुक्षु वर्ग, श्रावक वर्ग, देशी-विदेशी संशोधक, विद्वान एवं आम जिज्ञासु सम्मिलित हैं. श्रमणवर्ग को उनके चातुर्मास स्थल तथा विहार में भी पुस्तकें उपलब्ध कराई जाती हैं. वाचकों हेतु अध्ययन की यहाँ पर सुन्दर व्यवस्था है. विगत पन्द्रह वर्षों में इस विभाग में हुई प्रगति का विवरण इस प्रकार है: पुस्तक संग्रहण : १२९९२५
पुस्तकें दाताओं की ओर से भेट में प्राप्त हुई हैं. ५३३४
पुस्तकें प्रकाशकों तथा पुस्तकविक्रेताओं से क्रय की गईं. १३९०८८
कुल पुस्तकें अब तक संग्रहित की गईं. १५२५००
पुस्तकों पर आवेष्टन चढ़ाकर ग्रंथनाम लिखने का कार्य हुआ. ५०७८०
पुरानी पुस्तकों का फ्यूमिगेशन किया गया. ग्रंथ परिक्रमण (वाचक सेवा) : १०२१
वाचक संस्था से पुस्तक आदि अध्ययन हेतु ले जाते है. इनमें १८० पूज्य साधुभगवन्त, १६०
पूज्य साध्वीजी, ७६ संशोधक एवं विद्वान आदि एवं ५५३ अन्य वाचक शामिल हैं. १२५००
करीब पुस्तकें संस्था में वाचकों द्वारा अध्ययन की गई ४०९१७
पुस्तके वाचकों को इश्यु की गईं. ३८८९२
पुस्तके वाचकों से वापस आईं. प्रत्यालेखन (फोटोकापी) विभाग :
दस्तावेजों व विविध सामग्री की प्रतिलिपि छापने के लिए यहाँ पर एक Ricoh Afficio 270 Digital Printer cum Copier तथा एक Canon 408 printer cum Copier मशीनें है. इन मशीनों का निम्नलिखित सदुपयोग किया गया. ६६.९०२
पन्नों की झेरोक्ष प्रतियाँ पूज्य साधु-साध्वीजी भगवंतों को निःशुल्क प्रदान की गई. १,३८.७६९
पन्नों की झेरोक्ष प्रतियाँ देश-विदेश के विद्वानों, संशोधकों तथा छात्रों को उपलब्ध की गईं.
ચૌદ ગુણસથાળ, થોર પ્રતિસ્પાદ અને આઠ કૃallી જ્ઞાતા
ગાવા છpણીeણ ગુણોથી યુક્ત આચાર્યોને વંદન
જ સૌsળ્યું કે શ્રી નિતીનભાઈ પ્રહાલ૮ શ્રી એન્થની સીકવેરા, મુંબઈ
50