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पन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक
अस्त-व्यस्त स्थिति में प्राप्त हस्तप्रतों को देखकर उनका हृदय द्रवित हो गया. उन ग्रन्थों को यथास्थिति में प्राप्त कर यहाँ संग्रह तथा संरक्षण का कार्य प्रारम्भ कराया. इस प्रकार आगरा, इन्दौर, भावनगर, जोधपुर आदि स्थानों के श्रीसंघ को प्रेरणा देकर उन ग्रन्थों को अपने यहाँ मँगाया तथा अपने देश की अमूल्य ज्ञानसम्पदा को अपने देश में ही सुरक्षित व संरक्षित करने का अद्भुत प्रयास प्रारम्भ किया.
शास्त्रग्रंथों का भण्डारण :
हस्तलिखित शास्त्रग्रंथों को पूर्णतया सुरक्षित करने हेतु जंतु, तापमान व आर्द्रता ( भेज-नमी) से मुक्त सागवान लकड़ी की खास प्रकार से निर्मित मंजूषा (कबाटों) में रखा गया है. इन काष्ठनिर्मित मंजूषाओं जीव-जंतु, रजकण, वातावरण की आर्द्रता आदि से सुरक्षित कर स्टेनलेस स्टील की मोबाईल स्टोरेज सिस्टम में रखा गया है अस्त-व्यस्त हस्तलिखित शास्त्रों का मिलान व वर्गीकरण कार्य के प्रारम्भिक चरण में अस्तव्यस्त अवस्था में प्राप्त हुई लगभग ६५,००० हस्तप्रतों का वर्गीकरण प.पू. मुनिराज श्री निर्वाणसागरजी म.सा. व मुनिश्री अजयसागरजी म. सा. के कुशल मार्गदर्शन में हुआ. तत्पश्चात् इस कार्य को आगे बढ़ाते हुए ५ पंडितों ने अब तक संग्रहित लगभग आधे से ज्यादा हस्तप्रतों को मिलाने का कार्य पूर्ण कर लिया है. हजारों की संख्या में अधूरे दुर्लभ शास्त्रों को बिखरे पन्नों में से एकत्र कर पूर्ण किया जा सका है. इस कार्य के अंतर्गत प्रमुख रूप से (१) बिखरे पन्नों का विविध प्रक्रियाओं से मिलान कर ग्रंथों को पूर्ण करना (२) फ्यूमिगेशन की प्रक्रिया द्वारा ग्रंथों को जंतुमुक्त रखना (३) चिपके पत्रों को योग्य प्रक्रिया से अलग करना (४) जीर्ण पत्रों को पुनः मजबूती प्रदान करना व उनकी फोटोकोपी आदि प्रतिलिपि बनाना (५) वर्गीकरण (६) रबर स्टाम्प लगाने (७) नाप लेने (८) हस्तप्रत के पंक्ति-अक्षरादि की औसतन गणना (९) इनकी भौतिक दशा संबन्धी विस्तृत कोडिंग (१०) उन पर खादी भंडार के हस्तनिर्मित हानिरहित कागज के वेष्टन चढ़ाने (११) लाल कपड़े में पोथियों व ग्रंथों को बांधने आदि कार्य किये जाते हैं. ये सभी कार्य पर्याप्त श्रमसाध्य व अत्यन्त जटिल होते है. जिसे संपन्न करने के लिए काफी धैर्य, अनुभव व तर्कशक्ति की आवश्यकता होती है. हस्तलिखित शास्त्र सूचीकरण :
खास तौर पर विकसित विश्व की एक श्रेष्ठतम सूचीकरण प्रणाली के तहत विशिष्ट प्रशिक्षित पंडितों की टीम के द्वारा ग्रंथों के विषय में सूक्ष्मतम सूचनाओं को संस्था में ही विकसित कम्प्यूटर प्रोग्राम की मदद से सीधे ही कम्प्यूटर पर सूचीबद्ध करने का कार्य तीव्र गति से चल रहा है. उपर्युक्त कार्य सम्पन्न करने के लिए दूरंदेशी धरानेवाले पूज्य विद्वान गुरुभगवंतों की देखरेख में ५ पंडित, २ प्रोग्रामर व ७ सहायकों की टीम पूरी निष्ठा से लगी हुई है. इस विशालकाय संग्रह को समयानुसार लोकाभिमुख बनाने हेतु विविध प्रयासों के अंतर्गत निम्नलिखित प्रमुख कार्य विगत वर्षों में हुए :
१००७९६
९६७५५
१३६२३७
हस्तप्रतों को अनुक्रमांक दिया जा चुका है, जिसमें लगभग ४५० ताडपत्र भी शामिल हैं.. शेष हस्तप्रतों को मिलाने, वर्गीकरण कोडिंग आदि प्रक्रियाएँ चल रही हैं.
हस्तप्रतों की सम्पूर्ण सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट की गई. कृतियों के साथ प्रतों का संयोजन हुआ.
અગ્યારપાણઙપ્રતિમા, બાર વત અને તે ડિયાસ્થાનના જાણકાર આવા છત્રીસ ગુણોથી યુક્ત
આથાર્થોનો વંદની
- યોજન્ય -
શ્રીમતી તારાદેવી રમેશકુમાર ૐન, મુંબઈ શ્રીમતી પૂનમબેન જિતેન્દ્રકુમાર જૈન, મુંબઈ શ્રીમતી શીતલબેન જિનેન્દ્રકુમાર જૈન, મુંબઈ
શ્રી મેશભાઈયોથમલજી જૈન શ્રી જિતેન્દ્રકુમાર રમેશભાઈ જૈન શ્રી જિનેકુમાર રમેશભાઈ જૈન
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