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पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी अाचार्यपद प्रदान
महोत्सव विशेषांक
ज्ञानतीर्थ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर
_ प्रगति के सोपान
विश्व में जैनधर्म एवं भारतीय संस्कृति के विशालतम शोध संस्थान के रूप में अपना स्थान बना चुका यह ज्ञानतीर्थ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र की आत्मा है. ज्ञानतीर्थ स्वयं अपने आप में एक लब्धप्रतिष्ठ संस्था है. इस ज्ञानमंदिर के अन्तर्गत निम्नलिखित विभाग कार्यरत हैं : (१) देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण हस्तप्रत भांडागार (२,००,००० दो लाख प्रायः हस्तलिखित ग्रन्थों से समृद्ध, जिसमें ३००० ताडपत्र हैं तथा अगरपत्र पर लिखित कई अमूल्य ग्रन्थ हैं.) (२) आर्य सुधर्मास्वामी श्रुतागार (विविध विषयों से सम्बन्धित प्राचीन व नवीन १,५०,००० डेढ लाख मुद्रित पुस्तकों का संग्रह) (३) आर्यरक्षितसूरि शोधसागर - कम्प्यूटर केन्द्र (ग्रन्थों के इस विशाल संग्रह को आधुनिक तकनीक से सूचीबद्ध करने तथा अध्येताओं को किसी भी ग्रन्थ से सम्बन्धित कोई भी माहिती अल्पतम समय में उपलब्ध कराने के लिए सदा सक्रिय) (४) सम्राट सम्प्रति संग्रहालय (पाषाण व धातु मूर्तियों, ताड़पत्र व कागज पर चित्रित पाण्डुलिपियों, लघुचित्र, पट्ट, विज्ञप्तिपत्र, काष्ठ तथा हस्तिदंत से बनी प्राचीन एवं अर्वाचीन अद्वितीय कलाकृतियों व पुरावस्तुओं को अत्यन्त आकर्षक एवं प्रभावोत्पादक ढंग से धार्मिक व सांस्कृतिक गौरव के अनुरूप प्रदर्शित की गई है)
देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भांडागार : वीर संवत् ९८० (मतान्तर से ९९३) में एक शताब्दी में चार-चार अकाल की परिस्थिति में लुप्तप्राय हो रहे भगवान महावीर के उपदेशों को पुनः सुसंकलित करने के लिए भारतवर्ष के समस्त श्रमणसंघ को तृतीय वाचना हेतु गुजरात के वल्लभीपुर में एकत्रित करने वाले पूज्य श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण की अमर स्मृति में जैन आर्य संस्कृति की अमूल्य निधि-रूप इस हस्तप्रत अनुभाग का नामकरण किया गया है..
आगम, न्याय, दर्शन, योग, साहित्य, व्याकरण, ज्योतिष, आयुर्वेद, इतिहास-पुराण आदि विषयों से सम्बन्धित मुख्यतः जैन धर्म एवं साथ ही वैदिक व अन्य साहित्य से संबद्ध इस विशिष्ट संग्रह के रखरखाव तथा वाचकों को उनकी योग्यतानुसार उपलब्ध करने का कार्य परंपरागत पद्धति के अनुसार यहाँ संपन्न होता है. सभी अनमोल दुर्लभ शास्त्रग्रंथों को विशेष रूप से बने ऋतुजन्य दोषों से मुक्त कक्षों में पारम्परिक व वैज्ञानिक ढंग के संयोजन से विशिष्ट प्रकार की काष्ठमंजूषाओं में संरक्षित किये जाने का कार्य हो रहा है. क्षतिग्रस्त प्रतियों को रासायनिक प्रक्रिया से सुरक्षित करने की बृहद् योजना कार्यान्वित की जा रही है. विगत वर्षों में इस विभाग में सम्पन्न विविध कार्यों की एक झलक यहाँ प्रस्तुत है__ शास्त्रग्रंथों का संग्रहण : प. पू. राष्ट्रसन्त आचार्य भगवंत श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. ने अपने अबतक के लगभग ८०,००० कि. मी. विहार के दौरान भारतभर के गाँव-गाँव में पैदल विचरण करते हुए वर्षों से उपेक्षित ज्ञानभंडारों में
જાગ્યા ઉપાણs પ્રતિમા. બાર ddoો તેડિયાથા[ળી ઝાણકાર
પાવાગીણ ગુણોથી યુક્ત આચાર્યોને વંદન
જ સૌsoથમ લલિતાબેન તારાચંદ પોપટલાલ પરિવાર, સ્વાઈ
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