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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक पर चातुर्मास करने के लिये आमंत्रण के साथ भेजे जाते थे. इस पत्र में निवेदन के साथ-साथ धार्मिक क्रिया-कलापों और नगर के प्रमुख स्मारकों का चित्रण भी होता था. १७वीं शताब्दी से इन विज्ञप्तिपत्रों में चित्रों का समावेश होने लगा. इसमें प्रायः चित्र आरम्भ में ही होते हैं. सबसे पहले अष्टमांगलिक चिह्न, चौदह स्वप्न और शय्या पर विश्राम करती तीर्थंकर की माता और उसके बाद नगरचित्रण होता है. नगरचित्र का प्रारम्भ जिनमंदिर, बाजार, किला, राजदरबार, प्रमुख स्मारक, देवालय आदि के चित्र होते हैं. चित्रों के बाद गद्यात्मक अथवा सुन्दर काव्यात्मक शैली में पत्र लिखा होता है और अन्त में समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों के हस्ताक्षर होते श्रेष्ठि विमलमंत्री एवं दशार्णभद्र परंपरागत खण्ड इस खण्ड में चन्दन, हाथीदाँत एवं चीनी-मिट्टी की बनी कलात्मक वस्तुएँ प्रदर्शित की गई हैं जो दर्शकों का मन मोह लेती है. साथ ही यहाँ परम्परागत कई पुरा वस्तुओं का प्रदर्शन भी किया गया है जो दर्शकों को अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाता है, साथ ही जैन धर्म एवं दर्शन के प्रति चिन्तन-मनन एवं इस सम्बन्ध में अध्ययन के लिये आकर्षित भी करती जैन संस्कृति की प्राचीनता एवं भव्यता से समाज के नई पीढी को परिचित कराना इस संग्रहालय का प्रमुख उद्देश्य है. इस समय इस संग्रहालय में बड़ी मर्यादित संख्या में ही कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है. शेष बहुसंख्यक दुर्लभ कलाकृतियाँ भंडार में सुरक्षित है. संग्रहालय का स्वतंत्र एवं विशाल भवन शीघ्र बनने वाला है जिसमें और अधिक कलाकृतियों को आकर्षक तरीके से प्रदर्शित करने की योजना है. अहमदाबाद और गाँधीनगर के निकट होने के कारण इस ज्ञानमंदिर का उपयोग सभी समुदायों के सन्त विद्वान व श्रद्धालु करते हैं. भारत के सुदूर क्षेत्रों के साथ ही विदेशी विद्वान भी इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं. દશ રૂયિ, બાર કાંગ, બાણ ઉપાંગ અoો હો શિalloળા ડાતા નવા છે મીણા ગુણોથી યુક્ત આથાને વંદન सोडलय. ડી. નવીનચંદ્ર એes કંપની, મુંબાઈ 46
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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