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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी अाचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक अधिक स्थिरता और प्रस्तुतीकरण में औपचारिकता थी. अजंता एलोरा की चित्रशैली गुजरात में १२वीं शताब्दी तक निरंतर रूप से प्रचलित रही. आगे चलकर उसने एक विकसित शैलीबद्ध स्थान ग्रहण किया, १३वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ताड़पत्रीय चित्रों में एक अन्य विशेषता का विकास हुआ. चित्रकारों ने ताड़पत्र में सीमित क्षेत्रफल के होते हुए भी विषयवस्तु के अनुरूप अधिक भावाभिव्यक्ति का प्रारम्भ किया, जिस सीमा तक पूर्ववर्ती चित्रकार कभी नहीं गये थे. अब तक सिर्फ तीर्थंकर, देवी-देवता एवं उनके सेवकों के चित्र बनाए जाते थे, उनके स्थान पर तीर्थंकरों के जीवन चरितों के दृश्य, चित्रों में चट्टानों, वृक्षों और अन्य पशु-पक्षियों के चित्र चित्रित किये गए. विभिन्न घटनाएँ एक क्रमबद्ध विवरणात्मक विधि से अंकित होने लगी थी. १४वीं शताब्दी के मध्यकाल तक ताड़पत्रों पर चित्रांकन प्रचलित था. तत्पश्चात् कागज की पाण्डुलियों का प्रचलन हुआ. प्रारम्भिक काल की पाण्डुलियों का क्षेत्रफल ताड़पत्र के नाप का था पर बाद में धीरेधीरे क्षेत्रफल बढता गया और उन पर अंकित चित्रों में भी विशेषताएँ स्पष्ट रूप से विकसित होने लगी. चित्रों में स्वर्ण और रौप्य का उपयोग संभवतः फारसी कला के प्रभाव के कारण होने लगा था. यहाँ तक कि प्रारम्भिक पाण्डुलियों में जहाँ चित्रों की संख्या कम थी बाद में वह भी बढती गई. चित्रकला के यह उपलब्ध प्रमाण गुजरात-राजस्थान के कई ज्ञानभंडारों में सुरक्षित हैं, कुछ सचित्र पाण्डुलिपियाँ इस संग्रहालय में भी प्रदर्शित हैं. गट्टाजी गट्टाजी एक प्राचीन परंपरा है. जैनधर्म में प्रातः सर्वप्रथम जिनदर्शन, पूजा एक नित्यक्रम माना गया है. प्राचीन काल में तीर्थयात्रा के दौरान जहाँ दूर-दूर तक जिनमंदिर दिखाई नहीं देते थे वैसी जगह पर भी रात्रि विश्राम करना पड़ता था. ऐसी परिस्थिति में गट्टाजी में अंकित तीर्थंकर के दर्शन-पूजा आदि करके अपने धर्म का पालन करते थे. रत्न जड़ित गटाजी इन गट्टाजी में तीर्थंकरों के चित्र, सिद्धचक्र, देवी-देवताओं के चित्र अंकित होते थे, जो सामान्य चित्रकारी से लेकर मूल्यवान रत्न व स्वर्ण जड़ित होते थे. यह परंपरा अन्य धर्मों में भी प्रचलित थी. राधा-कृष्ण, शंकर-पार्वती, राम-सीता एवं श्रीनाथजी आदि के चित्र अंकित किये गए गट्टाजी भी पाये गए हैं. विज्ञप्ति पत्र कुण्डलीनुमा पटों पर कथा-चित्रण एक प्राचीन परम्परा है. इसी परम्परा के तहत विज्ञप्ति अथवा विनती पत्र की रचना हुई. विज्ञप्ति पत्र वास्तव में एक विशेष प्रकार का पत्र है. जो जैन संघ की ओर से गुरु महाराज आचार्यश्री को अपने स्थान દાણા પૈયાલમે. દશા |વજયે !ાદો પાણ ધal oો દડો શSIB11 Bhપst| std] આચાર્યોને વંદન કેવલડિટણ લોથિંગલિ., મુંબઈ
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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