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पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी अाचार्यपद प्रदान
महोत्सव विशेषांक
गेलडा द्वारा १८वीं सदी में निर्मापित किये गये कसौटी मन्दिर के पुनरुद्धार स्वरूप है. वर्तमान में इसे जैनसंघ की ऐतिहासिक धरोहर माना जाता है. निस्संदेह इससे इस परिसर में पूर्व व पश्चिम के जैनशिल्प का अभूतपूर्व संगम होगा. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर :
जैनधर्म एवं भारतीय संस्कृति का विश्व में विशालतम संग्रहालय एवं शोध संस्थान के रूप में अपना स्थान बना चुका आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र की आत्मा है. अद्यतन संसाधनों से सुसज्ज ज्ञानमंदिर के अन्तर्गत निम्नलिखित विभाग कार्यरत हैं : (१) देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भांडागार, (२) आर्य सुधर्मास्वामी श्रुतागार, (३) आर्यरक्षितसूरि शोधसागर एवं (४) सम्राट सम्प्रति संग्रहालय. ज्ञानमंदिर की उपलब्धियाँ
आगम, न्याय, दर्शन, योग, साहित्य, व्याकरण, ज्योतिष, आयुर्वेद, इतिहास-पुराण आदि विषयों से सम्बन्धित मुख्यतः जैन धर्म एवं साथ ही वैदिक व अन्य साहित्य से संबद्ध इस विशिष्ट संग्रह के रखरखाव तथा वाचकों को उनकी योग्यतानुसार उपलब्ध करने का कार्य परंपरागत पद्धति के अनुसार यहाँ संपन्न किया जाता है. इन ग्रंथों की भाषा प्रायः संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी, ढुंढारी, मराठी, बंगाली, उड़िया, मैथिली, पंजाबी, तमिल, तेलगु, मलयालम, परशियन आदि के साथ-साथ अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, अरबिक, परशियन, तिब्बतन, भूटानी आदि विदेशी भाषाएँ भी है.
परिणामतः यह ज्ञानतीर्थ जैन एवं भारतीय विद्या का विश्व में अग्रणी केन्द्र बन गया है. इस संग्रह को अभी इतना अधिक समृद्ध करने की योजना है कि जैन धर्म से सम्बन्धित कोई भी जिज्ञासु यहाँ पर अपनी जिज्ञासा पूर्ति किए बिना वापस न जाय.
इस ज्ञानमन्दिर का मुख्य ध्येय जैन परम्परा के अनुरूप जैन साहित्य के संदर्भ में गीतार्थ निश्रित अध्ययन-संशोधन व अन्वेशन हेतु यथासम्भव सामग्री एवं सुविधाओं को उपलब्ध करवाकर उन्हें प्रोत्साहित करना व उनके कार्यों को सरल और सफल बनाना है.
वर्तमान में संस्था द्वारा एक विशिष्ट प्रकार का प्रोग्राम तैयार किया जा रहा है, जिसके तहत हस्तलिखित प्रतों को स्केन करके उस मैटर को टेक्स्ट के रूप में प्राप्त किया जा सके. जिससे एन्ट्री आदि का कार्य ही न करना पडे एवं अपेक्षित हस्तप्रत को क्षणमात्र में टेक्स्ट के रूप में प्राप्त किया जा सकेगा. जिसे ओ. सी. आर. नामक प्रोग्राम के रूप में जाना जाता है. __काल दोष से लुप्त हो रहे जैन साहित्य के मुद्रित एवं हस्तलिखित ग्रंथों में अन्तर्निहित विविध सूचनाओं की सूक्ष्मातिसूक्ष्म
उदार चित्तवाले, क्रोध के संचार को जीतने वाले, जितेन्द्रिय, जीवन-मृत्यु एवं अन्य भयों से मुक्त तथा परीपहजेता
आचार्यों को भावभरी वंदना.
एम. सुरेशकुमार एण्ड कंपनी, मुंबई