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पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक
विस्तृत सूचनाएँ विशेष प्रकार से विकसित प्रोग्राम द्वारा कम्प्यूटर में प्रविष्ट की जाती हैं. इस प्रणाली के द्वारा वाचक को यदि उसकी आवश्यकता की ग्रन्थ के सम्बन्ध में अल्पतम सूचना भी ज्ञात हों तो उनकी इच्छित सूचनाएँ सरलता से प्राप्त की जा सकती हैं. इस सूचना पद्धति का परम पूज्य साधु-भगवंतों, देशी-विदेशी विद्वानों तथा समग्र समाज ने भूरि-भूरि अनुमोदना की है.
प्राचीन लिपि को जानने व समझनेवाले बहुत कम विद्वान ही रह गये हैं. विद्वानों एवं अध्येताओं को प्राचीन हस्तलिखित साहित्य को पढने में सुगमता रहे, इस हेतु देवनागरी- खासकर प्राचीन जैनदेवनागरी लिपि के प्रत्येक अक्षर/जोडाक्षर में प्रत्येक शतक में क्या-क्या परिवर्तन आए और उनके कितने वैकल्पिक स्वरूप मिलते हैं, उनका संकलन करते हुए उनके चित्रों का कम्प्यूटर पर एक डेटाबेस में संग्रह किया जा रहा है.
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर की अहमदाबाद स्थित शाखा :
अहमदाबाद के विविध उपाश्रयों में स्थिरता कर रहे पूज्य साधु-भगवंतों तथा श्रावकों की सुविधा हेतु अहमदाबाद के जैन बहुसंख्यक क्षेत्र पालडी में एक कोबा की एक शहरशाखा की स्थापना का निर्णय लिया गया. १९ नवम्बर १९९९ को पूज्य आचार्य श्री पद्मसागरसूरिजी म.सा. की शुभ प्रेरणा व आशीर्वाद से कोठावाला फ्लैट के पास श्रीमान् विजयभाई हठीसिंह के द्वारा उपलब्ध किए गए स्थान (शाह एन्टरप्राईज ) में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का शाखा ग्रंथालय विधिवत् प्रारम्भ किया गया. जहाँ से लगभग छः वर्षों तक अहमदाबाद शहर में सथिरता कर रहे पूज्य साधु-साध्वीजी भगवंतों तथा अन्य वाचकों के ग्रन्थ सम्बन्धी आवश्यकता पूरी की जाती रही.
पूज्य साधु-साध्वीजी म. सा. तथा जैनधर्म व साहित्य के ऊपर अध्ययन, संशोधन कर रहे विशिष्ट अभ्यासियों के लिए टोलकनगर में स्थायी तौर पर नवनिर्मित भवन में ९ जनवरी २००६ को शहर शाखा का प्रारम्भ किया गया, जहाँ से वाचकों को उनके अपेक्षित ग्रन्थ नियमित रूप से उपलब्ध कराए जाते हैं, इसके अतिरिक्त कोबा स्थित ग्रंथालय की पुस्तकें भी नियमित रूप से मंगवा कर दी जाती हैं.
योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धि-कीर्ति कैलास-कल्याणसागरसूरीश्वरजी के पट्टधर श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी के शुभाशीर्वाद व मंगल प्रेरणा से यह तीर्थ भविष्य में ज्ञान, ध्यान तथा आराधना के लिये विद्यानगरी काशी के सदृश सिद्ध होगा.
जिनशासन को समर्पित धर्मतीर्थ, ज्ञानतीर्थ व कलातीर्थ का त्रिवेणी संगम श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबातीर्थ प्रगति के पथ पर निरंतर अग्रसर है. श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के परिसर में नवनिर्मित विशाल भोजनशाला, उपाश्रय, विश्रांति गृह आदि के साथ नवीन सम्राट संप्रति संग्रहालय बनाने की भी योजना है.
प्राकृतिक मनोहर वातावरण में अवस्थित रत्नत्रयी के त्रिवेणीसंगम तीर्थ पर दर्शन-वंदन के लिए सपरिवार, इष्ट मित्र एवं स्नेहीजनों के साथ एक बार अवश्य पधारें.
सकल मैथुन, क्रीडा एवं संसर्ग से रहित हैं, निर्मोही, निरहंकारी,
एवं किसी को भी पीडा नहीं पहुँचाने वाले
आचायों को भावभरी वंदना.
• सौजन्य
राम सन्स, मुंबई
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