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पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक
विविध उपाधियाँ :
भूतपूर्व राष्ट्रपति महामहिम श्री नीलम संजीव रेड्डी के द्वारा 'राष्ट्रसन्त' की उपाधि से विभूषित. वालकेश्वर (मुम्बई) श्रीसंघ ने सम्मेतशिखर तीर्थोद्धारक के बिरूद से सम्मानित किया. राणकपुर - सादडी श्री संघ ने श्रुतोद्धारक पद से सम्मानित किया.
शासन प्रभावना :
तीर्थयात्राएँ :
विहार :
पदयात्राएँ :
प्रतिष्ठाएँ :
उपधान तप :
यात्रासंघ :
दीक्षाएँ : शिष्य-प्रशिष्य :
भारत के लगभग सभी छोटे-बड़े तीर्थ.
नेपाल (काठमांडू), राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश, तामिलनाडु, गोवा, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, उत्तरांचल, झारखंड.
एक लाख किलोमीटर से अधिक.
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लगभग २८ प्रकाशन- हिन्दी, गुजराती व अंग्रेजी में.
साहित्य प्रकाशन :
आपकी अमृतमयी वाणी
'मैं सभी का हूँ, सभी मेरे हैं. प्राणी मात्र का कल्याण मेरी हार्दिक भावना है. मैं किसी वर्ग, वर्ण, समाज या जाति के लिए नहीं, अपितु सबके लिए हूँ. व्यक्तिराग में मेरा विश्वास नहीं है. लोग वीतराग परमात्मा के बतलाये पथ पर चलकर अपना और दूसरों का भला करे, यही मेरी हार्दिक शुभेच्छा है.'
पूज्य पंन्यासश्री अमृतसागरजी महाराज के आचार्यपदवी महोत्सव के शुभ अवसर पर जैनश्रमण संस्कृति के गौरव आचार्य श्री पद्मसागरसूरिजी के चरणों में हमारी आपकी सबकी नतमस्तक कोटिशः वंदना.
तीन दण्ड, तीन गारव, तीन शल्य से रहित हैं, तीन गुप्ति से गुप्त हैं तथा त्रिकरण विशुद्ध आचार्यों को भावभरी वंदना.
सौजन्य
नगीनदास डुंगरसी चेरीटेबल ट्रस्ट, मुंबई
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