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पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी अाचार्यपद प्रदान
महोत्सव विशेषांक
प्रभु महावीर की निर्वाण भूमि पावापुरी गाँव के सभी वर्गों के लोगों द्वारा मांस-मदिरा का पूर्णतः त्याग, जलमंदिर में मछली पकडने की हमेशा के लिए पाबन्दी एवं सरोवर की पवित्रता बनाए रखने का शुभ संकल्प,
गौतमस्वामी की जन्म स्थली कुण्डलपुर (नालन्दा) तीर्थ भूमि के मंदिर की महोत्सव पूर्वक प्रतिष्ठा, जो वर्षों से आपकी निश्रा की प्रतिक्षा कर रही थी.
भारत की राजधानी दिल्ली में शासन प्रभावक चातुर्मास कर विभिन्न धर्म समुदाय के लोगों को सन्मार्ग पर लाया. हरिद्वार में सर्वधर्म के धर्मगुरुओं द्वारा सार्वजनिक अभिनंदन का सन्मान प्राप्त किया. बोरीज तीर्थ के ऐतिहासिक जिनमंदिर का निर्माण करवाया.
श्री सिमंधर जिन मंदिर महेसाणा, श्री शान्तिनाथ जैन तीर्थ वटवा, श्री नेमिनाथ जैन बावन जिनालय प्राचीन तीर्थरांतेज, श्री संभवनाथ जैन आराधना केन्द्र, तारंगाजी आदि जैन तीर्थों के उद्धारक व सहयोगदाता. श्रुतोद्धार के कार्यः
एल. डी. इन्स्टीट्यूट, अहमदाबाद को साहित्यिक समृद्धि प्रदान करने में पूज्य श्री का बहुत बड़ा योगदान रहा है. आठ हजार बहुमूल्य हस्तलिखित ग्रन्थों का विशिष्ट योगदान करके आचार्यश्री ने संस्थान को गौरवान्वित किया और भारतीय संस्कृति की मूल्यवान निधि को नष्ट होने से बचाया.
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर में लगभग डेढ़ लाख पुस्तकों तथा दो लाख हस्तप्रतों का विशाल संग्रह संग्रहीत करवा के जैन समाज की विरासत को और आगे की पीढी को समर्पित करने का सफल योगदान किया.
अहमदाबाद (पालडी) में साधु-साध्वीजी प्रमुख वाचकों के लिए नवीन लायब्रेरी का निर्माण करवाया. अमर सृजन :श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र
गच्छाधिपति आचार्यदेव की सत्प्रेरणा से कोबा में २६ दिसम्बर १९८० को श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र की विधिवत् स्थापना हुई, जो आज जिनशासन की प्रतिनिधि संस्थाओं में प्रमुख स्थान प्राप्त कर चुकी है.
यहाँ भव्य जिनालय, ज्ञानभंडार, उपाश्रय, गुरुमंदिर, मुमुक्ष कुटीर आदि विविध विभागों के साथ विकसित होकर जिनशासन की प्रभावना करने में समर्थ है,
गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरि की पुण्य स्मृति में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर की स्थापना कराकर जैन धर्म-दर्शन व प्राच्यविद्या के क्षेत्र में अवगाहन करने वाले मनिषियों को अनुपम उपहार से उपकृत किया है.
इतने विशाल पैमाने पर जैन साहित्य की प्रभावना करने से आचार्यश्री का सम्मानित नाम सदियों तक जैन इतिहास की अग्र पंक्तियों में स्वर्णांकित रहेगा. देशी-विदेशी विद्वानों तथा संशोधकों के लिए यह ज्ञानमंदिर आशीर्वादरूप सिद्ध हुआ है..
भारतीय व जैन शिल्प कला स्थापत्य के नमूने, सैकड़ों मूर्तियाँ इत्यादि बहुमूल्य पुरातन सामग्री जैन शासन की अमूल्य निधि व धरोहर संगृहीत कर सम्राट् सम्प्रति संग्रहालय भी स्थापित किया गया, जिसका लाभ दर्शकों को निरंतर मिल रहा
प्रकार की ब्रह्मचर्य-गुप्ति के पालक, दस प्रकार के श्रमण-धर्म, ग्यारह प्रकार की उपासक प्रतिमा एवं ग्यारह प्रकार की ज्ञान संस्कार की विधि के ज्ञाता
आचार्यों को भावभरी वंदना.
सौजन्य वी टेक्ष वीवींग एण्ड मेन्युफेक्चरींग मील प्रा. लि., शान्तिलाल कवाड, मुंबई
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