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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी अाचार्यपद प्रदान प.महोत्सव विशेषांक परन्तु आप अपने जीवन को दुर्गति तक पहुंचा रहे है. यह सद्गति और दुर्गति आप अपने वर्तमान में तैयार करते हैं और आपका विचार ही उसका निमित्त बन रहा है. विचार की अपवित्रता ही दुर्गति का कारण बनती है. विचार की पवित्रता आपको सद्गति तक पहुंचाती है. प्रसन्नचंद्र जैसे राजऋषि, जिन्होंने दीक्षा ग्रहण कर उत्कृष्ट चरित्र की आराधना की और जब सम्राट श्रेणिक ने आकर भगवान महावीर से पूछा, 'भगवान् ! इस समय आपके साधुओं में सबसे उत्कृष्ट साधना करने वाला कौन है? भगवान ने उत्तर दिया- 'वर्तमान में हमारे साधुओं में सबसे उत्कृष्ट साधना करने वाले साधक प्रसन्नचंद्र राजर्षि हैं. श्रेणिक ने पुनः पूछा- 'भगवान्, यदि वे परलोक पहुंचे तो उनकी गति क्या होगी? भगवान ने उत्तर दिया- 'इस समय मृत्यु हो तो मर कर सांतवी नर्क में जायेंगें'. इस पर राजा श्रेणिक ने जिज्ञासा से पूछा- 'भगवान् यह कैसे हो सकता है? कुछ ही देर बाद देव दुन्दुभी बजी. आकाश में देवताओं ने प्रसन्नचंद्र राजर्षि को केवल ज्ञान प्राप्त करने का महोत्सव किया. जब देव दुन्दुभी का नाद सुना तो श्रेणिक ने भगवान् से पूछा- यह देव दुन्दुभी का क्या रहस्य है? भगवान ने उत्तर दिया- यह प्रसन्नचंद्र राजर्षि को केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ, उसका नाद है. एक क्षण पहले तो कहाँ प्रसन्नचंद्र राजर्षि सांतवी नरक में जाने वाले थे और अब उन्हें एक क्षण बाद ही केवल ज्ञान की प्राप्ति हो गई. अंतर सिर्फ इतना ही कि उनके मन में तूफान था. मन के अंदर युद्ध चल रहा था. भयंकर संघर्ष था जिसकी वजह से कर्म दूषित बन गये थे. यदि उस समय वह काल कर जाये तो निश्चित ही दुर्गति में चले जायें. परन्तु जैसे ही उनका हाथ अपने मस्तक पर गया और जब उन्होने देखा कि अरे ! मैं साधु हूँ, राजा नहीं. मेरे मस्तक पर अब राज मुकुट नहीं है. वह सतर्क हुए. अंतर्मन में जागृति आयी. अंदर का पश्चाताप इतने सुन्दर भाव से प्रकट हुआ कि उसका यह चमत्कार कि एक क्षण के अंदर वे केवलज्ञान की स्थिति में पहुंच गये.. बुद्धि का दुरुपयोग : हर इंसान के पास बुद्धि तो है किन्तु आज व्यक्ति इसका उपयोग अनीति, अप्रमाणिकता के लिए करता है. पाप छिपाने के लिए करता है. यह बुद्धि का अतिरेक हमारे जीवन में अभिशाप बन गया. कलकत्ता के ग्रान्ट होटल के नीचे सेठ मफतलाल अपनी मर्सडीज गाडी लेकर आये और होटल के सामने खडी करके चले गये. वहाँ गाडी पार्किंग नहीं की जाती थी. परन्तु जैसे ही वापस लौटे, पुलिसवाले को खडा देखा. गाडी पार्क की हुई थी . पुलिस न ने गाडी देखी और सोचा-बड़ा आदमी दिखता है. चालान भरवा कर कोर्ट के चक्कर में नहीं पड़ना पसंद करेगा. अपनी भी कुछ आमदनी हो जायेगी. भष्टाचार, तो आप जानते ही है कि सभी जगह फैला हुआ है. एक हिन्दी कवि ने इस झूठ के साम्राज्य के बारे में अपनी कविता के माध्यम से परिचय दियाआज झूठ का ही प्रताप है, सच बोलना महापाप है. बाप गधा है बेमतलब का, मतलब है तो गधा बाप है. सेठ मफतलाल पुलिस मैन का इरादा भांप गये. एक अधेला खर्च किये बिना गाडी अपने कब्जे में करने का तुरन्त उपाय सोचा. टैक्सी ली और घर आ गये. घर से थाने मे फोन किया कि मेरी फलां कलर की, फलां मॉडल की और फलां नम्बर की गाडी चोरी हो गयी है. थाने में रिपोर्ट लिखवाकर वह निश्चित हो गये कि गाडी को तो कोई नुकसान होने वाला है नहीं. वह पुलिस वाला इधर खडा मालिक का इंतजार करता रहा. इधर वायरलेस से गाड़ी के बारे में सभी जगह सूचना भेज दी गयी. जैसे ही पुलिस की गाडी वहाँ पर आई, अधिकारी ने देखा कि गाडी तो वही है, जिसकी चोरी हो जाने की रिपोर्ट लिखी गयी है. पुलिस मैन से अधिकारी ने कहा- यह गाडी तो चोरी हो गयी थी. तुम यहाँ पर खडे हो चोर आयेगा कैसे. पुलिस मैन बेचारा बडा निराश हुआ कि एक घंटा मेरा यूं ही बेकार हो गया. आमदनी भी नहीं हुई. पुलिस गाडी के 166
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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