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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी भाचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक रुष्ट करने वाले हैं. यह अपनी अज्ञान दशा के लक्षण हैं. अज्ञान दशा में भी ज्ञान का प्रकाश पुंज प्राप्त करना हैं. प्रकाश के अंदर से प्रयत्न को उपस्थित करना है जिससे जीवन की अनादि कालीन वासना से मैं अपनी आत्मा को मुक्त करूँ और मेरी आत्मा जागृत प्रकाश के अंदर परमात्मा के आदेश का परिपूर्ण पालन करने वाली आत्मा बनें. 50 एक में शांति, अनेक में अशांति यदि आप आत्मचिंतन करते हैं तो चिंतन के लिये मात्र एक चिनगारी चाहिए. ध्यान की जरा सी भी अग्नि यदि प्रगट हो जाय तो बरसों का व अनादि अनंतकाल में जो कुछ कर्म किया, उपार्जन किया, वह जल कर भस्म हो जायेगा. वैराग्य की जागृति के लिए तो मात्र एक ही चिंतन चाहिए और एक ही चिंतन आपके अंदर यदि आ गया तो सारी चिंताओं को नष्ट कर देगा. मुनि राजऋषि मिथिला के बहुत बड़े राजा थे. एक बार एक ऐसी भयंकर व्याधि त्राणज्वर से वे ग्रस्त हुए कि उनके शरीर में भयंकर गर्मी उत्पन्न हो गई. सारा शरीर तपने लगा. बडी बेचैनी और अशांति रहने लगी. बडे-बडे वैद्य उपचार के लिए आए. एक अनुभवी वैद्य ने उपचार बताया- यदि आप शीतोपचार करें यानि चंदन का विलेपन सारे शरीर पर करें तो यह त्राण ज्वर मिट सकता है, राजा के आठ रानियाँ थी. आठों रानियाँ वैद्य के बताये अनुसार चंदन घिसने लगी. घिसते समय उनके हाथों में जो चूडियाँ पहनी हुई थी, उसकी आवाज आने लगी. आवाज आना स्वाभाविक था. आप जानते हैं कि बीमार आदमी का स्वभाव चिडचिडा होता है. राजा बहुत दिनों से बेचैन थे और काफी दिनों से नींद भी नहीं आई थी. चूडियों की आवाज ने उनकी शांति को और भंग कर दिया. सम्राट आवेश में आकर उत्तेजित हो गये और कहा- 'यह वज्रपात कहाँ हो रहा है?" इसे बंद करो. यह आवाज मुझे जरा भी पंसद नही. रानियों के पास विवेक था. उन्होने सोचा महाराज को आवाज जरा भी पसंद नहीं है. क्या किया जाय कि महाराज को चूडियों की आवाज भी सुनाई न दे और चंदन भी घिस कर तैयार हो जाये. ऐसी अवस्था में उन्होंने तुरंत चूडियाँ हाथों से निकाल ली. मात्र सुहाग की निशानी हेतु एक-एक चूडी ही अपने हाथ में रखी. दो मिनट बाद राजा ने पूछा- यह आवाज कैसे बंद हो गई? क्या चंदन घिसना ही बंद कर दिया ? रानियों ने नम्र निवेदन किया- राजन् ! दवा तो हम तैयार कर रही हैं, चंदन घिसा जा रहा है. चूकि यह आवाज आपको पसंद नहीं थी, अतः हमने हमारे हाथों की चूडियाँ निकाल दी है. मात्र एक चूडी रखी जो सुहाग की निशानी है. जैसे ही यह जवाब मिला राजा ने दार्शनिक दृष्टि से उसका चिंतन शुरु किया कि एक में शांति, अनेक में अशांति, मात्र एक चूडी हाथ में हो तो कहीं कोई संघर्ष नहीं, आवाज नहीं, कोई क्लेश नहीं, बल्कि परम शांति है. अनेक में संघर्ष था, क्लेश था. राजा ने तुरन्त आत्मचिंतन किया कि मैं संसार के संघर्षों से जकड़ा हुआ हूँ, यही मेरी अशांति का कारण है. यही भाव मेरे मन के द्वेष का है कि मेरे मनोभाव में यह क्लेश पैदा हो रहा है, अशांति हो रही है. कितनी उद्विग्नता लेकर मैं चल रहा हूँ? इसलिए इस रोग से यदि मैं मुक्त हो गया व इस बिमारी से मैं बच गया तो परमात्मा के चरणों में जाकर परम शांति प्राप्त करूँगा. यही शुद्ध एकत्व भाव उनके उपचार का कारण बना. विचार की पवित्रता: आप बाजार में जा रहे हैं. सामने से आपको डाक्टर आता दिखाई दे तो आपको हॉस्पिटल याद आ जाता है. वकील मिलने पर कोर्ट याद आ जाता है. पुलिस मिलने पर जेल याद हो आती है, विद्यार्थी मिलने पर कॉलेज याद आ जाता हैं. यदि मैं आपसे पूंछु कि साधु पुरुषों को देखकर आपके मन में क्या भाव आता है? उनको देखकर आपकी दृष्टि कहाँ तक पहुंच जायेगी, मुझे समझाइये ? परन्तु आपकी दृष्टि में गहराई नहीं है. कभी इस प्रकार से सोचने का प्रयास किया ही नही. परमात्मा को देखने से यदि दृष्टि मिल जाय तो यह दृष्टि का विकार निकल जायेगा. उसके परमाणुओं द्वारा इतना बडा परिवर्तन होता है. परन्तु यह स्थिति कहाँ ? साधु पुरुषों को देखकर आपकी दृष्टि परलोक तक पहुंचनी चाहिए. 165
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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