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________________ पन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी भाचार्यपद प्रदान •महोत्सव विशेषांक परोपकारी व्यक्ति की है जिसने मुझे जीवन जीने की कला सिखलाई थी. उसने उस समय जो मेरी मदद की, उसका बदला चुकाने का समय आ गया है. वह अपनी चेक बुक लेकर उस व्यक्ति के पास आफिस में गया, जाकर परिचय दिया -मैं आपको कुछ महीने पहले समुद्र तट पर मिला था और आपने कहा था कि मैं सहयोग करूँगा. सामने वाले व्यक्ति की वाणी में विनम्रता कितनी कि हाथ जोडकर बोला 'क्षमा कीजिए, इस समय मैं बहुत लाचार हूँ. स्थिति सुधरने दीजिये फिर मैं आपको अवश्य सहयोग करूँगा' चेक बुक लेकर आया वह व्यक्ति बोला- मैं आपसे कुछ मांगने नहीं आया वरन् देने आया हूँ. आपने मेरे ऊपर इतना महान उपकार किया है, जिसका किंचित् मात्र बदला देने आया हूँ. ताकि मेरी आत्मा कर्ज मुक्त बन जाये. उस दिन आपने मुझे गलत समझ लिया था. मैं तो अपने चित्त की शांति के लिए वहाँ गया था. मैं कई कम्पनियों का डायरेक्टर हूँ, कईयों का मेनेजिंग डायरेक्टर हूँ. बतलाइये मैं आपको क्या सहयोग दे सकता हूँ. मुझे आपकी मदद करते हुए अत्यन्त खुशी ही होगी. मुझे सेवा का अवसर दीजिए. जीवन की यह कला मैंने आप से ही सीखी है. उसने कहा -आप मेरे घाटे को पूरा नही कर सकते. पूरे पचास लाख डालर का नुकसान है. आने वाले व्यक्ति ने चेक बुक निकाल कर पचास लाख डालर का चेक काट कर उसे देते हुए कहा कि यह चेक मैं आपको दे रहा हूँ, और कुछ मेरे लायक सेवा हो तो निःसंकोच टेलीफोन करियेगा. उपकार का कैसा बदला ? पांच डालर के बदले पचास लाख डालर यह परिवर्तन सिर्फ दो मिनट के परिचय से आया. कोई घंटा आधा घंटा प्रवचन नहीं दिया था उसने मात्र ५ मिनट के अल्प परिचय से एक व्यक्ति के जीवन में इतना परिवर्तन आया कि उसने ५० लाख डालर का चेक कितने सहज और उदार भाव से दे दिया. जिसने जीवन जीने की कला सीख ली हो फिर उसके लिए पैसे का कोई महत्व नहीं रह जाता है. मानवता की सेवा करना उसके जीवन का उद्देश्य बन जाता है. जीवन रक्षण हमें समर्पण की भूमिका प्राप्त करनी है. हम समर्पण की साधना भी निष्काम भावना से नहीं करते. उसमें भी प्राप्ति की आकांक्षा रखते है. Give and Take. अर्थात् मैं तुझे देता हूँ, तू मुझे दे शान्ति की कामना हम शब्दों से करें और मन विषय की ओर लगा रहे. भगवान से अपने लाभ की प्रार्थना करते हैं. तो वहाँ भी हम भिखारी बन जाते है. प्रभु के द्वार पर जो निष्काम भाव से जायेगा वही भगवान् बनकर लौटेगा पुण्य की निधि लेकर लौटेगा. परमात्मा के द्वार पर अपराधी बन कर जाये कि हे भगवान् मैं तेरी शरण में आया हूँ और मुझे तेरे सिवाय कोई शरण नहीं दे सकता. तेरी शरण में आकर मैं निष्पाप बन जाऊँ यही मेरी कामना है. समर्पण का यह भाव ही आपको निर्भय कर देगा. सिंह जंगल का राजा है, उसे भय नहीं होता. सिंह के बालक ने जंगल में पहली ही बार अपने से कई गुना विशाल शरीर वाले हाथियों के झुण्ड का झुण्ड देखा तो भय से थर-थर कांपता हुआ सिंहनी की गोद में जा बैठा. माँ ने बालक को भयभीत देखकर कहा- अरे तूने मेरे दूध को भी लजा दिया. सिंह के बालक ने माँ की गोद में बैठकर करुण विलाप किया तो पास ही कहीं जंगल में घूम रहे सिंह के कानों में उसकी पुकार आई. भला सिंह अपने बालक को कैसे संकट में देख सकता? तुरन्त दौडा उसके रक्षण के लिये बालक के पास में आते ही सिंह को वस्तुस्थिति का पता चल गया कि मेरा बालक क्यों चिल्लाया है. सिंह ने तुरन्त ही जंगल को कपा देने वाली भयंकर गर्जना की. विशालकाय हाथियों का झुण्ड वहाँ से जान बचाकर भाग निकला. इसी तरह परम पिता परमात्मा भी आपका रक्षण करेगा, पर आपकी पुकार में वेदना होनी चाहिए. परमात्मा निश्चय ही आपका रक्षण करेगा. पंडित की परिभाषा: परमात्मा से जब यह पूछा गया कि भगवान्, इस संसार के अंदर सबसे अधिक विद्वान और पंडित किसे कहा जाय? इसकी व्याख्या क्या है. भगवान् महावीर ने बतलाया जो समय के मूल्य को समझे, वही पंडित समय का उपयोग करने वाला अप्रमादकर्ता साधना की सिद्धि प्राप्ति करता है. परन्तु प्रमाद अवस्था के अंदर मात्र विषय कषायों का पोषण होगा, संसार में आगमन होगा और वह व्यक्ति अपनी अज्ञान दशा में उन कार्यों को आमंत्रण देगा जो आत्मा को घायल करने वाले हैं. आत्मा को 164
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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