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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक * कामदेव श्रावक जितनी ही संपत्ति थी. * भगवान की देशना सुनकर श्रावक के १२ व्रत अंगीकार करके श्रावक की ११ प्रतिमा वहन की थी. अंत कालमें समाधि मरण पा कर प्रथम देवलोक मे देव हुए. श्री कुंडकोलिक • कांपिल्यपुर नगर मे रहेते थे. पुष्पा नाम की पत्नी थी. * कामदेव श्रावक जितनी ही ऋद्धि और गोकुल थे. * भगवान के पास श्रावक के १२ व्रत लिए थे. श्रावक की ११ प्रतिमा वहन कर अंत में मृत्यु पा कर प्रथम देवलोक में देव हुए. श्री सद्दालपुत्र * जात से कुंभार और पोलासपुर नगर में रहते थे. * गोशाला के मतानुयायी थे. * एक बार भगवान की देशना सुनकर श्रावक के १२ व्रत अंगीकार कीए. * गोशालाने अपने मत में पुनः खींचने के लिए बहुत प्रयत्न कीए फिर भी वे अडग रहे. अंत में पौषधव्रत में समाधिमरण होकर देवलोक में गये. श्री महाशतक * राजगृही नगरी में रहेते थे, रेवती वगेरह १३ पत्नियां थी. * चुल्लनीपिती श्रावक जितनी ही संपत्ति थी. एवं श्वरसुर पक्ष का भी बहुत धन था. फिर भी भगवान के पास व्रत लेने के कारण उस धन का त्याग किया था. * अंत समय में धर्माराधना से अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ था. समाधि मरण पा कर देवलोक में गये, श्री नंदिनीपिता * श्रावस्ती नगरी में रहेते थे, अश्वीनी नामक पत्नी थी. * संपत्ति एवं गोकुल आनंद श्रावक जितने ही थे. * प्रभु की देशना सुनकर श्रावक के १२ व्रत लिये थे. * १४ वर्ष तक श्रावकधर्म का पालन कर के अंत समय में पौषधव्रत में ही मृत्यु पा कर देवगति मे गये. श्री तेतलीपिता श्रावस्ती नगरी के वासी थे, फाल्गुनी नामक पत्नी थी * समृद्धि आदि आनंद श्रावक जितनी ही थी. * भगवान के पास श्रावक के १२ व्रत स्वीकार के उसका निरतिचार पालन किया, अंत मे समाधि मरण पाकर देवलोक मे देव बने. 110
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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