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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक जैन धर्म की रूपरेखा परम करुणा व पूर्ण बोध से जन्मा जैन धर्म सदाकाल से सभी के लिए कल्याणकारी रहा है. जैन धर्म ने महान बातों के साथ वैसा ही महान जीवन व्यवहारिक धरातल पर सहजता से जीने का सुगम मार्ग भी बताया है जो इस धर्म की एक सबसे बडी विशेषता है. तीर्थंकर भगवंतों के द्वारा आचरित एवं उपदिष्ट 'सर्वसत्त्वानां हिताय च सुखाय ऐसी धर्म व्यवस्था का दूसरा नाम अर्थात् जैन धर्म. - मनोज र. जैन जैन धर्म के पास अपना स्वयं का अद्भूत तत्त्वज्ञान एवं उसके अनुरूप सांगोपांग आचार व्यवस्था है. जिससे दुनिया की समस्त दुखद समस्याओं का समाधान संभव है. इससे जैन धर्म को विश्व हितकारी और विश्वधर्म कहा जा सकता है. जैन धर्म इतिहास ऋषभदेव इस अवसर्पिणी काल के प्रथम राजा बने एवं उन्होंने अपने विशिष्ट ज्ञान बल से सर्वप्रथम संस्कृति (युग) प्रवर्तन के लिए असि (अस्त्र-शस्त्र), मसि (स्याही व्यापार), कृषि और ६४ कलाओं १०० शिल्पों इत्यादि व्यावहारिक नीतिओं का ज्ञान अपने पुत्र पुत्रियों को देकर आज तक चली आ रही कल्याणमय समाज रचना का उद्गम किया. दीक्षा ग्रहण कर केवलज्ञान की प्राप्ति के बाद वे जिन अर्थात् तीर्थंकर कहलाये. उन्होंने पूर्व के जिनेश्वरों द्वारा प्ररुपित जैन धर्म को इस काल में पुनः प्ररुपित किया. श्री ऋषभदेव ने सर्व प्रथम धर्मसभा में मोक्षमार्ग रूप साधुधर्म और गृहस्थधर्म की विधिवत् स्थापना चतुर्विध संघ के रूप में की. जैन धर्म वैसे अनादिकालीन होते हुए भी इस अवसर्पिणी काल की अपेक्षा से भगवान ऋषभदेव द्वारा सर्वप्रथम प्ररुपित कहा जाता है. भगवान आदिनाथ की भाँति ही बीच के २२ तीर्थंकरों ने तथा २६०० साल पूर्व में अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अपने गणधरों को ज्ञानत्रिपदी देकर श्रुतगंगा प्रवाहित की. आज हम उन्हीं के धर्मशासन में हैं. यथार्थ में जैन धर्म का कोई प्रारंभ नहीं है, कोई अंत नहीं है. यह समग्र विश्व की व्यवस्था मात्र को बताने वाला है। व विश्व की ही तरह शाश्वत है. जैन धर्म की विशिष्टताएँ १. जैन धर्म यानि सत्य की सभी विचारधाराओं (दृष्टियों) को स्व-स्व स्थान पर सम्मान देकर पूर्ण सत्य का स्वीकार करनेवाला धर्म दर्शन. २. विश्व की समस्त जीवसृष्टि के प्रति यथार्थ मैत्रीपूर्ण व्यवहार करने वाला जीवन्त धर्म. ३. जगत की वास्तविकता का यथार्थ गहराई से परिचय देनेवाला अनन्य धर्म दर्शन. ४. व्यवहार के सभी पहलुओं पर तर्क-संगत मार्गदर्शन कर मोक्ष मार्ग के साथ अनुसंधान करने वाला धर्म. ५. दृश्य अदृश्य जीवन शक्तियों और कुदरत की संपत्तियों का जतन करके पर्यावरण का संतुलन बनायें रखनेवाला धर्म. ६. स्व जीवन के साथ दूसरों के लिए भी हितकारी, कल्याणकारी आचारों एवं विचारों की श्रेष्ठतम मर्यादाओं को आचरण में लेने वाला धर्म. 102
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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