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________________ पंन्यास प्रवरश्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान • महोत्सव विशेषांक उल्लेखनीय है. जोधपुर के महाराजा का संग्रह भी सुंदर है. श्री जौहरीमलजी पारख द्वारा संगृहीत सेवा मंदिर रावटी का संग्रह भी महत्वपूर्ण है. आत्मवल्लभ जैन स्मारक शिक्षण निधि, दिल्ली में भी हस्तलिखित ग्रन्थों का सुन्दर खजाना विद्यमान है. वर्तमान में आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी द्वारा स्थापित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा में कागज, ताडपत्र भोजपत्र आदि पर लिखित लाखों की संख्या में हस्तलिखित ग्रन्थ सुरक्षित हैं. इन भंडारों में प्राचीन ताडपत्रों पर सुन्दर मरोड़दार अक्षरों में विविध स्याही से लिखे हस्तिलिखित ग्रन्थ ग्रंथागार में संरक्षित हैं. इतना ही नहीं जैनेतर साहित्य को भी जैनाचार्यों द्वारा बड़े परिश्रम पूर्वक संजोये रखने का कार्य हुआ है. आज भी अन्यत्र अलभ्य वैदिक तथा बौद्ध प्राचीन साहित्य जैनज्ञानभंडारों से प्राप्त होते हैं. यह प्रत्यक्ष प्रमाण है कि जैनधर्म ने अन्य धर्मसाहित्य को भी इतना ही सम्मान पूर्वक आश्रय दिया है. भारत के विविध प्रान्तों के प्रमुख शहरों में यतियों और श्रीपूज्यों की गद्दीयाँ रहती थी. कुछेक जगहों पर तो आज भी गद्दियाँ विद्यमान हैं. जहां निजी ज्ञानशालाएँ होती थीं. एक सर्वेक्षण के अनुसार जैन साहित्य को सुरक्षित रखने और संवर्धित करने में श्रीपूज्यों, भट्टारकों, यतियों और कुलगुरुओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर हेतु पूज्य जिनविजयजी ने विश्वविख्यात सिंघी जैन सिरीज का सम्पादन व प्रकाशन का उल्लेखनीय कार्य किया था. शास्त्रभंडारों में दिगंबर संप्रदाय के ज्ञानभंडार भी उल्लेखनीय हैं, जिसमें उदयपुर के भट्टारक यशोकीर्ति जैन ग्रंथभंडार तथा दक्षिण भारत के भट्टारक चारुकीर्तिजी महाराज (मूडवद्री) श्रवणबेलगोला, वाराणसी, आरा तथा जयपुर के ग्रंथागार विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. हस्तलिखित ताडपत्रीय ग्रंथों की काफी संख्या दक्षिण भारत के तांजोर, त्रिवेन्द्रम, मैसूर, धर्मस्थल तथा मद्रास में अन्नामलाई के पास संरक्षित हैं. तिरूपति की संस्कृत युनिवर्सिटी में भी हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह है. महाराष्ट्र में भांडारकर ओरिएन्टल रिसर्च इन्स्टीट्युट, पूना, डेक्कन कोलेज, मुंबई के माधवबाग के पास लालबाग जैन पाठशाला में भी हस्तप्रतों का अच्छा संग्रह है. उत्तर भारत में वाराणसी के पास सरस्वती भवन तथा संपूर्णानंद संस्कृत युनिवर्सिटी, नागरी प्रचारिणी सभा; बिहार में जैन सिद्धान्त भवन आरा, नालंदा, दरभंगा आदि स्थलों में भी विशाल संख्या में हस्तप्रतों का संग्रह है. पटना यूनिवर्सिटी तथा बंगाल में कलकत्ता युनिवर्सिटी, रॉयल एशियाटिक सोसायटी तथा शांतिनिकेतन में भी हस्तप्रतों का अच्छा खासा संग्रह है. पंजाब के होशियारपुर में, लाहौर के पंजाब यूनिवर्सिटी में, तथा काश्मीर के जम्मू में भी शारदालिपिबद्ध हस्तप्रतों का विशाल संग्रह है. इस प्रकार श्रुतसंरक्षण-संवर्द्धन के महान कार्य में सदियों से जैनश्रमण श्रमणियों के साथ साथ श्रावकों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है जो आज हमारे लिए बहुमूल्य सिद्ध हो रहा है. वर्तमान में ज्ञानभंडारों को समृद्ध करने में जैनाचार्यों की देन जैनाचार्यों द्वारा नए ग्रंथों की रचना तथा प्राचीन ग्रंथों को हस्तलेखन द्वारा नवजीवन प्रदान कर ज्ञानभंडारों की जो समृद्धि की गई है, वह विश्व में अद्वितीय है. श्रुतज्ञान की इस परम्परा को जीवन्त रखते हुए आज भी अनेक जैनश्रमण इस कार्य में पूर्ण निष्ठा और लगन के साथ ज्ञानभंडारों की स्थापना तथा समृद्धि में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं. जेसलमेर, खंभात, पाटण, अहमदाबाद के ज्ञानभंडारों के विकास, सुरक्षा तथा मूल्यांकन के लिए पू. पुण्यविजयजी महाराज ने बहुत परिश्रम किया. पुराने ग्रंथों का वाचन-संशोधन किया. वर्तमान में विद्वान मुनिश्री जंबूविजयजी महाराज, आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज तथा अन्य अनेक जैनाचार्य इस कार्य में पूर्ण रूप से समर्पित है. 101
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
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