SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंन्यास प्रवर श्री अमृतसागरजी आचार्यपद प्रदान महोत्सव विशेषांक वस्तुपाल-तेजपाल, ओसवाल जातीय मंत्री पेथडशाह, महामंत्री मंडन आदि के नाम विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं. महामात्य वस्तुपाल-तेजपाल के हाथों लिखे ताडपत्रीय ग्रन्थ आज भी खंभात के ज्ञानभंडार में विद्यमान है तथा उनके स्वयं के द्वारा रचित ग्रन्थ आज भी मिलते हैं. उनके गुरु नागेंद्रगच्छीय आचार्य श्रीविजयसेनसूरिजी तथा उदयप्रभसूरिजी के उपदेश से ग्रन्थ लिखवाने का उल्लेख श्रीजिनहर्षकृत वस्तुपालचरित्र, उपदेशतरंगिणी आदि ग्रन्थों में देखा जा सकता है. मांडवगढ के मंत्री पेथडशाह तपागच्छीय आचार्य श्रीधर्मधोषसूरिजी के उपासक थे. उन्होंने जैन आगम सुनते हुए भगवतीसूत्र में गौतम शब्द का उल्लेख जितनी बार हुआ है उतनी स्वर्णमुद्राओं से पूजा की तथा उसी द्रव्य से ग्रन्थ लिखवाकर भरूच आदि सात नगरों में ज्ञानभंडार स्थापित करने का उल्लेख मिलता है. धनाढ्य जैन गृहस्थों के द्वारा श्रुतसंवर्द्धन राजाओं तथा मंत्रियों के अतिरिक्त ग्रन्थ लिखवाने वालों में धनाढ्य जैन गृहस्थों के नाम भी प्रशस्तियों में आते हैं. जिसप्रकार महामात्य वस्तुपाल आदि ने अपने-अपने धर्मगुरु के उपदेश से ग्रन्थ लिखवाए थे, उसी प्रकार खरतरगच्छीय आचार्य श्रीजिनभद्रसूरिजी के उपदेश से धरणाशाह ने, महोपाध्याय महीसमुद्रगणि के उपदेश से नंदुरबार निवासी प्राग्वाट जातीय भीम के पौत्र कालु ने, आचार्यश्री सोमसुंदरसूरि के उपदेश से मोढजातीय श्रावक पर्वत ने तथा आगमगच्छीय आचार्य श्रीसत्यसूरिजी, श्रीजयानंदसूरिजी, श्रीविवेकरत्नसूरिजी आदि के उपदेश से एक ही वंश में हुए प्राग्वाट जातीय पेथडशाह, मंडलीक तथा पर्वत-कान्हा ने ग्रंथ लिखवाकर ज्ञानभंडारों की स्थापना की थी. कुछ ऐसे गृहस्थ भी थे, जो किसी विद्वान जैनश्रमण के द्वारा रचित ग्रन्थों की एक साथ अनेकों नकल कराते थे. कुछ धनाढय गृहस्थ कल्पसूत्र की सचित्र प्रतियाँ लिखवाकर अपने गाँव में भेंट देते थे. डॉ. वुलर, डो. किर्व्हन, डो. पीटर्सन, श्रीयुत सी.डी. दलाल, प्रो. हीरालाल रसिकदास कापडीया आदि द्वारा संपादित प्राचीन ज्ञानभंडारों आदि का रीपोर्ट देखने से यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि धनाढय गृहस्थों ने जो ग्रन्थ लिखवाए थे, वे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा अमूल्य थे. ज्ञानभंडारों की रक्षा के लिए भी अनेक प्रकार के उपाय किये जाते थे. मुगलों की चढ़ाई के समय प्रतिमाओं की रक्षा __ के लिए जिस प्रकार मंदिर के अंदर गुप्त तथा अगम्य मार्गों वाले भूतल बनाए जाते थे, उसी प्रकार ज्ञानभंडारों की रक्षा के लिए भी विशेष प्रकार के स्थल बनाए जाते थे. उदाहरण रूप जैसलमेर का किला विद्यमान है, वहाँ पर ताडपत्रीय ज्ञानभंडार को सुरक्षित इस तरह रखा गया है कि आसानी से किसी को पता नहीं चल सकता है. इसके अतिरिक्त कई ऐसे उदाहरण है कि बाहर से सामान्य लगनेवाले मकानों में भी शास्त्रग्रंथों को रखा जाता था. आक्रमण के समय अपने प्राणों की परवाह किए बिना भी ग्रन्थों को सुरक्षित करने के अनेक उदाहरण मिलते हैं. वर्तमान में प्राचीन जैन ज्ञानभंडार की दृष्टि से जैनाचार्यों की मंगल प्रेरणा व प्रोत्साहन से जैनों के बाहल्यवाले स्थानों में छोटे मोटे ज्ञानभंडारों की स्थापना तो होते ही रही हैं, साथ ही प्रमुख नगरों में प्रसिद्ध ज्ञानभंडारों की स्थापना विभिन्न जैनाचार्यों की प्रेरणा से होती रही है एवं ज्ञानपिपासुओं को तृप्त करती रही है. उनमें प्रमुख ज्ञानभंडार निम्नलिखित हैं पाटण में अनेक प्राचीन ग्रन्थभंडारों के संकलनरूप स्थापित हेमचंद्राचार्य ज्ञानमंदिर और अन्य गच्छीय भंडार, सुरत __ में श्री हुकमजी मुनि का भंडार तथा जैन आनंद पुस्तकालय, डभोई में मुक्ताबाई जैन ज्ञानभंडार, छाणी में मुनिश्री ___ पुण्यविजयजी के दो विशाल भंडार, वडोदरा में प्राच्य विद्यामंदिर तथा हंसविजयजी के ग्रंथभंडारों में भी हस्तप्रतों का विशाल संग्रह है, खंभात में श्रीशांतिनाथजी का ज्ञानभंडार तथा श्री विजयनेमिसूरिजी का ज्ञानभंडार, अहमदाबाद के डेहला के उपाश्रय के ज्ञानभंडार में, एल.डी. इन्डोलोजी में, पालडी में जैन प्राच्य विद्यामंदिर में तथा गुजरात विद्यासभा में विपुल प्रमाण में हस्तप्रतों का संग्रह है. कच्छ-कोडाय और मांडवी में भी हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह है. राजस्थान में जेसलमेर का आचार्य जिनभद्रसूरि ज्ञानभंडार और यतियों के भंडार, बिकानेर में नाहटाजी का संग्रह तथा उदयपुर के जैन ग्रंथभंडार 100
SR No.525262
Book TitleShrutsagar Ank 2007 03 012
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2007
Total Pages175
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy