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श्रुत सागर, भाद्रपद २०५९ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ का
उदार दानदाताओं से नम्र निवेदन आपको विदित ही होगा कि राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्रीपद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा से स्थापित श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र में स्थित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर वर्तमानकाल के एक विशिष्ट एवं विलक्षण ज्ञानभंडार के रूप में ख्याति प्राप्त कर रहा है. इस ज्ञानभंडार में २,५०,००० से ज्यादा प्राचीन हस्तप्रतें संगृहीत हैं. इनमें ३००० से ज्यादा ताड़पत्रीय ग्रंथ भी है. ग्रंथालय में लगभग एक लाख दस हजार से ज्यादा मुद्रित पुस्तकें हैं. उल्लेखनीय है कि इन सभी ग्रंथों की सक्ष्मतम जानकारी खास विकसित की गई सूचीकरण प्रणाली के द्वारा दुनिया में सर्वप्रथम कम्प्यूटर में भरी जा रही है.
इस कार्य को २५ कम्प्यूटरों के उपयोग से ८ पंडितों (जो कम्प्यूटर के उपयोग के लिये विशेष रूप से प्रशिक्षित किए गए हैं) एवं अन्य अनेक सह कर्मचारियों के सहयोग से किया जा रहा है. इसी कार्य को आगे चल कर बृहत् जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश के रूप में विकसित करने की योजना है. आपकी सुविधा के लिए ही इस परिश्रम के फलस्वरूप हस्तलिखित ग्रंथों के केटलॉग का प्रथम खण्ड प्रकाशित किया गया है. इसी के तहत जैसलमेर, पाटण, खंभात एवं लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अहमदाबाद ताडपत्रीय व अन्य विशिष्ट ग्रंथों की विस्तृत सूची कम्प्यूटर पर ली जा चुकी है (हमारे लिये __ गौरव का विषय है कि यहाँ उपलब्ध जैसलमेर भंडार संबंधी सूचनाओं का उपयोग पूज्य मुनिराज श्री जंबूविजयजी ने भी इस भंडार को व्यवस्थित करते समय एवं स्केनिंग के कार्य के समय किया था) एवं अन्य विशिष्ट भंडारों की सूची कम्प्यूटर पर लेने का कार्य क्रमशः जारी है. साथ ही अनेक भंडारों के विशिष्ट ग्रंथों की माइक्रो-फिल्म एवं जेरॉक्स प्रतियाँ भी एकत्र की गई है. इस कार्य के पूरा होते ही प्रायः समग्र उपलब्ध जैन साहित्य एवं साहित्यकारों की सूचनाएँ एक ही जगह से उपलब्ध हो सकेंगी. __ वैसे आज भी जैन साहित्य एवं साहित्यकारों के विषय में इस संस्था में जितनी सूचनाएँ उपलब्ध हैं, वे अन्यत्र कहीं भी नहीं हैं. चूँकि यह ज्ञानमंदिर जैनों की नगरी अहमदाबाद के एकदम समीप स्थित हैं, अतः पूज्य साधु-साध्वीजी म. सा., विद्वद्वर्ग एवं सामान्य श्रद्धालुजन भी इन सूचनाओं का महत्तम मात्रा में उपयोग कर रहे हैं. साथ ही यह प्रयास भी किया जा रहा है कि अधिकतम लोग यहाँ की सूचनाओं/सुविधाओं का उपयोग करें.
अपनी इस प्राचीन धरोहर सुसंरक्षित करने का यह कार्य अत्यंत ही श्रमसाध्य है एवं इस कार्य के वर्षों तक जारी रहने की संभावना है. उदाहरण के लिए हस्तप्रत के अस्त-व्यस्त हो चुके बिखरे पन्नों वाले ग्रंथों के पत्रों का परस्पर मिलान करके उन्हें पुनः इकट्ठा करने का प्राथमिक कार्य ही पंडितों का बहुत सा समय एवं श्रम ले लेता है. इसके बाद संशुद्ध रूप से सूचीकरण हेतु हस्तप्रत संबद्ध लगभग आठ विविध प्रक्रियाएँ होती हैं. इतने विशाल पैमाने पर इस तरह का बहूपयोगी कार्य सर्वप्रथम हो रहा है. यह कार्य ज्यों-ज्यों आगे बढता जाएगा, त्यों-त्यों जैन साहित्य के संशोधन एवं अभ्यास के क्षेत्र में एक नए युग का उदय होता जाएगा. निःसंदेह यह भगीरथ कार्य समूचे श्रीसंघ एवं जैन समाज का अपना कार्य है. इसी से हमें अपने साहित्य की समृद्धि एवं अपने गौरवपूर्ण इतिहास का विशेष बोध होगा.
श्रुत निधि की श्री जैन संघों में संरक्षित एवं संवर्धित करने की विश्व में अद्वितीय एवं गौरवपूर्ण मिसाल रही है. सम्राट् कुमारपाल महाराज एवं वस्तुपाल व तेजपाल आदि के इस दिशा में कार्य एवं योगदान को इतिहास कभी भुला नहीं सकेगा. समस्त श्रीसंघ, जैन समाज एवं आर्य संस्कृति के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण इस ज्ञानयज्ञ में शक्यतम अधिक से अधिक सहकार करने हेतु हम आप से आग्रहपूर्वक अनुरोध करते हैं. हमें
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