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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3८ श्रुत सागर, भाद्रपद २०५९ धर्मबिंदु ग्रंथ की रचना महान् जैनाचार्य श्रीमद् हरिभद्रसूरीश्वरजी ने की है. इसमें व्यवहारिक और अध्यात्मिक दृष्टि से संसार का और 'स्व' का परिचय दिया है. ___ आपको पेकिंग नहीं अन्दर का माल देखना चाहिए. बड़े मुल्ला बैंक के चोकीदार थे. एक दिन बेंक मेनेजर बाहर गाँव जा रहे थे. मेनेजर ने चौकीदार से कहा कि बेंक के ताले का ध्यान रखना. कोई भी ताला न तोड़े क्योंकि अंदर जोखम है. मुल्ला ने ताले का बराबर ध्यान रखा. चार दिन के बाद मेनेजर आये. __ ताला बराबर देख के होश उड़ गये. अंदर गये. तिजोरी खोल कर देखा तो माल गायब था. पिछली बाजु से व्हेंटीलेटर में से चोर अंदर आया था और चोरी कर के चला गया था. अपने जीवन की बात भी ऐसे ही हो रही है. पेंकिंग अच्छा और माल गायब. अंदर से आत्मा की नीतिमत्ता, प्रामाणिकता चली जा रही है. ऊपर से क्रिया दान तप-रूपी ताला कायम है. प्रेम से प्रवचन का श्रवण किया जाय तो श्रवण से पवित्रता आती है और ज्वालामय जीवन ज्योतिमय बन जाता है; और अंतिम, अनंत सुख का भोक्ता बन जाता है. जीवन में विचार के साथ आचरण होना चाहिये. आचरण से ही धर्म गतिमान बनता है. सिर्फ पढ़ने से या श्रवण करने से धर्म नहीं आएगा. विचारों को आचरण में लाना पड़ेगा. एक बार जेसलमेर की ओर हमारा विहार था. विहार लंबा लंबा था. गरमी का मौसम था. रास्ता रेतीला था. एक आदमी ने कहा- "मैं आपको शॉर्ट कट से ले चलूँगा" हम को प्रसन्नता हुई. सड़क कच्ची थी. रास्ते में कोई भी मील का पत्थर नहीं था. थोडी देर के बाद मैंने पूछा-"अभी कितने मील चलना है?" आदमी ने कहा- अभी २-३ कोस होगा. थोड़ी देरके बाद मैने फिर पूछा, "अभी कितना मील बाकी है?" आदमी ने कहा २-३ कोस होगा. बार-बार मैं पूछता और आदमी वही जवाब देता. मैंने आदमी से पूछा "हम चल रहे हैं या खडे हैं ?" आदमी तो बडा फिलॉसफर निकला. उसने कहा- महाराजजी आप बार-बार क्या पूछते हो? एक बार पूछो या पचास बार पूछो- गांव तो चलने से ही आयेगा, पूछने से नहीं. अगर हमे मोक्ष तक पहुंचना है तो चलने का प्रयास करना चाहिये. विचारो को आचरण में लाना चाहिये. सिर्फ जानने से या सुनने से कुछ नही होगा. * शीलनो सेवनार, तप करनार तथा भावना भवनार पोतानोज उदय करी शके छे, ज्यारे दान देनार स्वोपरनो उदय करी शके छे. * धर्म थाय एटलो करजो परन्तु ते करनाराओना मार्गमा अन्तरायरूपी कांटो तो कदी नांखशो नहि. * आशा अने तृष्णानी आग तो मनमा अशान्ति ज पेदा करशे. * धन सन्मार्गे वापरवाथी कदी खुटतुं नथी. * प्राणी मात्र साथे मैत्री तेज धर्म. For Private and Personal Use Only
SR No.525261
Book TitleShrutsagar Ank 2003 09 011
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain, Balaji Ganorkar
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2003
Total Pages44
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size1 MB
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