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ग्रंथालय-सूचना के क्षेत्र में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर की अद्वितीय उपलब्धियाँ
डॉ. बालाजी गणोरकर - राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्रीपदमसागरसूरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा से स्थापित श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र में स्थित आचार्यश्री कैलाससागरसरि ज्ञानमंदिर वर्तमानकाल के एक विशिष्ट एवं विलक्षण जैन ज्ञानभंडार के रूप में ख्याति प्राप्त कर रहा है. इस ज्ञानभंडार में २,५०,००० से ज्यादा प्राचीन हस्तप्रतें सुरक्षित हैं. इनमें ३००० से ज्यादा ताडपत्रीय ग्रंथ हैं. छोटे-छोटे गाँवों में अस्त-व्यस्त पड़े और नष्टप्राय स्थिति को प्राप्त इस दुर्लभ संग्रह को प. पू. राष्ट्रसंत शासन-प्रभावक आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. ने अपने अब तक के ८०,००० किलोमीटर से ज्यादा लम्बे विहार के दौरान एकत्रित करवा कर भारत में ही सुरक्षित एवं संरक्षित करने का अनुपम प्रयास किया है, जो समुचित ध्यान न दिये जाने पर नष्ट होने अथवा विदेशों में स्थानान्तरित होने का भय था. साथ ही यहाँ ८५,००० से ज्यादा मुद्रित पुस्तकें भी हैं.
आचार्य श्री कैलाससागरसरि ज्ञानमंदिर में एक सुन्दर व समृद्ध संग्रहालय भी है. जिसमें जैन एवं आर्य संस्कृति की बहुमूल्य निधिरूप प्राचीन प्रतिमायें, शिल्प, कला-हस्तकला से युक्त विविध वस्तुएँ एवं सचित्र हस्तप्रतें संगृहित की गईं हैं..
ज्ञानमन्दिर के इस विशिष्ट रूप से संगृहित जैन धर्म एवं भारतीय संस्कृति के इतने विशालकाय सुन्दर संग्रह का व्यवस्थापन वस्तुतः एक बहुत बड़ी चुनौती है. लेकिन कम्प्यूटर की सहायता से इस कार्य को बहुत ही आसान बना दिया गया है. यह उल्लेखनीय है कि इन सभी ग्रंथों की सूक्ष्मतम जानकारी खास विकसित की गई सूचीकरण प्रणाली के द्वारा सर्वप्रथम बार कम्प्यूटर में भरी जा रही है. जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश के अन्तर्गत शक्य सभी जैन ग्रंथों एवं उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटराइजेशन यहाँ का एक बहुत बड़ा महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है. इस कार्य को १९ कम्प्यूटरों के उपयोग से नौ पंडितों (जो कम्प्यूटर के उपयोग के लिये विशेष रूप से प्रशिक्षित किए गए हैं) एवं अन्य अनेक सह कर्मचारियों के सहयोग से किया जा रहा है. इस ग्रंथालय की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ पर ग्रंथों की सचना पद्धति कि जो अन्य सभी ग्रंथालयों में द्विस्तरीय पद्धति (यह प्रकाशन एवं पुस्तक इन दो पर ही आधारित होती है) के स्थान पर त्रिस्तरीय सूचना पद्धति (कृति, प्रकाशन एवं पुस्तक इन तीन भागों में विभक्त कर) बहुआयामी दिशाओं में विकसित की गई है. ग्रंथालय सूचना पद्धति में कृति की यह विभावना अपने-आपमें अनूठी एवं बहूपयोगी सिद्ध हुई है.
कम्प्यूटर की सहायता से हम किसी भी पुस्तक का प्रकाशन नाम, संपादक, संशेधक, ग्रंथमाला ब्लिकेशन सीरिज), प्रकाशक, प्रकाशन स्थल, प्रकाशन वर्ष आदि मुद्दों के आधार पर कुछ ही क्षणों में
ना प्राप्त कर सकते हैं जो रजिस्टरों अथवा कार्डों द्वारा प्राप्त नहीं हो सकती. इसकी अनुपम विशिष्टता यह है कि उपर्युक्त मुद्दों/मदों के अन्तर्गत आने वाले प्रारम्भिक अक्षरों पर कम्प्यूटर अनुक्रमणिका तैयार करता ही है साथ ही इन नामों के प्रारम्भिक अक्षर ज्ञात न होने पर भी नाम में कहीं भी आने वाले अक्षरों के छोटे से छोटे समूह (कम से कम दो अक्षर) की जानकारी होने पर पुरा ना जानकारी के साथ स्क्रीन पर प्रदर्शित हो जाता है. जैसे :
१. किसी वाचक को प्रकाशन नाम के अन्तर्गत दीक्षा शब्द ही याद है तो ऐसी स्थिति में एक विशेष प्रोग्राम के अन्तर्गत क्वेरी रन करने पर किसी भी प्रकाशन या कृति नाम में कहीं भी दीक्षा शब्द आया हो तो उनकी सम्पूर्ण सूची विस्तृत सूचनाओं के साथ उपलब्ध हो जाती है.
सम्पू
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