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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हिन्दूसूर्य महाराणा प्रताप ने आचार्य हीरविजयसूरि के व्यक्तित्व और कृतित्व से प्रभावित होकर उन्हें पत्र लिखा था और आगरा से लौटते वक्त मेवाड़ पधारने का अनुरोध किया था. मेवाड़ी भाषा में लिखे गए डेढ़ पष्ठ के पत्र के अन्त में प्रवानगी पचोली गोरो- समत १६३५ रा वर्षे आसोज सुद ५, गुरूवार आलेखित है. महाराणा के निवेदन पर हीरसूरि मेवाड़ की यात्रा पर आये थे. एक बार उन्होंने ससंघ खंभात से चित्तौड़गढ़ की यात्रा भी की थी. सिरोही स्टेट व उसके शासक महाराव सुरताण आचार्यश्री के विशेष प्रिय थे. १३ वर्ष की उम्र में ईस्वी सन् १५४० मे गुजरात के पाटण शहर में दीक्षित हुए हीरविजयजी को २७ वर्ष की युवावस्था में सन् १५५४ में सिरोही में ही आचार्य पद से विभूषित किया गया था. अपने गुरू के इस विशेष समारोह को सफल बनाने के लिए सिरोही दरबार ने कई प्रबंध किये थे. महाराव सुरताण हीरविजयसूरि को सिरोही का सुरक्षा-कवच मानते थे. सिरोही के साथ हुए दत्ताणी के ऐतिहासिक युद्ध में मुगलों का पराभव हुआ था तथापि हीरविजयसूरि के निर्देश पर अकबर ने अपने गुरू की इस विचरण-भूमि को शान्ति-क्षेत्र मानकर युद्ध, उत्पीड़न और प्रतिशोध से मुक्त कर दिया था. स्व-पराजय के दाह की उपेक्षा आचार्यश्री के प्रति अकबर के सम्मान की द्योतक है. युद्ध के बाद का शान्ति-काल सिरोही के लिए स्वर्णयुग सिद्ध हुआ. ६९ वर्ष की आयु में सन् १५९६ में गुजरात के 'ऊना' ग्राम में हीरविजयसूरि ने अन्तिम सांस ली. अकबर ने उनके अग्निसंस्कार हेतु १०० बीघा भूमि प्रदान कर संत की मिली सौभाग्यशाली सन्निधि को याद किया. व्यवहार-कुशल व मधुरभाषी आचार्यश्री को अपने जीवन में 'राजाओं के गुरू व लोकसंत' के रूप में अपार ख्याति मिली. उनका जीवन अनेक ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा. राजाओं और राजनीतिज्ञों के सन्निकट रहते हुए भी वे राजनीति से सदैव अलिप्त रहे. श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परंपरा के सबसे बड़े समुदाय 'तपागच्छ' के आप अकेले आचार्य थे. हजारों साधु-साध्वियों का आपने नेतृत्व किया. (एक गच्छ में एक आचार्य की परंपरा आपके जाने के बाद 'तपागच्छ' में अटूट नहीं रह सकी.) आचार्य हीरविजयसूरि पर विभिन्न रूपों में अनेक ग्रन्थों की रचना भी हुई. उद्गार Excellent pioneer work. For the new millenium Jain Shasan has lot to offer and this institution will surely be a measure contributor. Ms. Rashmi & Kusum R. Shah, 1401,P.V. Est Calif- 90274 "... its computerization is verygood opportunity for the research scholars." Mr. S. C. Choudhary, C.G.M., Gujarat Telecom Amazing collection and excellent upkeep of everything. The heritage will be handed down for generations for which Jains and Indians will be extreemely proud of and indebted to Parama Pujya Gurubhagwant Padmasagarasuriji Saheb Mr. Samveg Lalbhai, Shalimar, Shahibaugh, Ahmedabad Remarkable collection and thought for making Jainism widely known and inspirational to many generations. Mr. Siddharth Dudhoria, Azimganj House, Calcutta 17. Precious Experience. Miss. Kazako Tsunematsu, Osaka, Japan For Private and Personal Use Only
SR No.525260
Book TitleShrutsagar Ank 2000 01 010
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain, Balaji Ganorkar
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2000
Total Pages16
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size1 MB
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