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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र का मुखपत्र श्रुत सागर आशीर्वाद : राष्ट्रसंत जैनाचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. अंक : ९ श्रावण वि. सं. २०५५ सप्टेम्बर १९९९ : संपादक : 3 मनोज जैन पर्युषण पर्व की सार्थकता www.kobatirth.org अशुभ से निवृत्ति और शुभ में प्रवृत्ति मुनि श्री विमलसागर 'कल्पसूत्र' जैन परंपरा का सर्वाधिक प्रसारित धर्मग्रन्थ है. पर्युषण पर्व की बुनियाद भी यही ग्रन्थ है. अंग्रेजों के शासन काल में इसी को जैनधर्म के प्रतिनिधि ग्रन्थ के रूप में अदालत में शपथ के लिए मान्य पुण्य का पोषण पाप का शोषण : - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किया गया था. मूलतः अर्द्धमागधी नामक प्राकृत की एक अवान्तर भाषा में निबद्ध यह ग्रन्थ भगवान महावीर की परंपरा के छठे आचार्य आर्य भद्रबाहु का संकलन है. अर्द्धमागधी भाषा में इस ग्रन्थ का नाम पज्जोवसणा कप्पो है. पर्युषण शब्द इसी पज्जोवसणा शब्द का भाषान्तरण है. इसके दो अर्थ होते हैं. पहला- एक स्थान पर रहकर वर्षाकाल व्यतीत करना. यह अर्थ साधु-साध्वियों को दृष्टिगत रखकर प्रयुक्त हुआ है. दूसरा अर्थ है- भाद्रपद माह के आठ दिनों का प्रसिद्ध पर्व. डॉ. बालाजी गणोरकर • भौतिक और आध्यात्मिक, दोनों स्तरों पर पर्युषण शब्द का लाक्षणिक अर्थ होता हैः समीप में निवास करना, चारों ओर से सीमित होकर निकट में बसना संस्कृत में 'परि' उपसर्ग पूर्वक वस् धातु में ल्युट् (अन्) प्रत्यय लगकर पर्युषण शब्द की व्युत्पत्ति हुई है. जहां तक पज्जोवसणा शब्द से भाद्रपद माह के आठ दिनों के प्रसिद्ध पर्व पर्युषण का संबंध है, यह जैन परंपरा का सबसे बड़ा और लोकप्रिय आध्यात्मिक पर्व है. दृश्यमान जगत् से इसका विशेष संबंध नहीं है. पर्युषण की सारी महत्ता मनुष्य के अन्तर्जगत से है. For Private and Personal Use Only क्रोध, अभिमान, कपट, लोभ, राग, द्वेष, ईर्ष्या इत्यादि घातक वृत्तियों का निर्मूलन करते हुए आत्मिक साधना की ओर अग्रसर होना ही पर्युषण की सार्थकता है. मनुष्य के पास गहरी सूझबूझ, अपार सामर्थ्य और अखूट शक्ति है, तथापि जीवन अपराधों से भरा पड़ा है. पग-पग पर पापकृत्य हो जाते हैं. कहीं मन द्वेषवश दुर्भावनाओं से भर जाता है तो कहीं ईर्ष्या की आग में जलने लगता है. कहीं अहं की तो कहीं कपट की चपेट में आकर हम पराजित हो जाते हैं. लोभ ने तो समग्र मनुष्य जाति को बुरी तरह जकड़ रखा है. इधर झूठे प्रेम और विषय-वासनाओं के जाल में उलझकर हम दुःखी हो रहे हैं. पापकृत्यों और अपराधों की इन बेड़ियों से मुक्त होने के लिए निमित्त और अवसर बहुत प्रभावी सिद्ध होते हैं. पर्युषण पर्व एक ऐसा ही आध्यात्मिक अवसर है जिसका पावन सान्निध्य हमें अपने मन की स्लेट को एक बार फिर कोरी कर लेने और विभिन्न धार्मिक-आध्यात्मिक क्रिया-कलापों के द्वारा जीवन-पथ को बुहार कर साफ-सुथरा बनाने का नया संदेश देता है. पर्युषण पर्व की समस्त गतिविधियों के मूल में पाप प्रक्षालन का ही भाव है. इसीलिए इसे
SR No.525259
Book TitleShrutsagar Ank 1999 09 009
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain, Balaji Ganorkar
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year1999
Total Pages16
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size1 MB
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