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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ૬ www.kobatirth.org संस्था को मिला आत्मीय स्पर्श Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुत सागर, चैत्र २०५४ संघ सेवक धर्मनिष्ठ श्री सोहनलालजी चौधरी राजस्थान व गुजरात के उद्योगपतियों एवं जैन समाज के अग्रणी कर्णधारों में श्री सोहनलालजी चौधरी का नाम आज महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है. आपके पूर्वज कई पीढ़ियों से सिवानसी समाज के मुखिया रहे हैं इस कारण चौधरी आपके परिवार का उपनाम होने के साथ ही आज भी यह परंपरा चल रही है. आपका जन्म सिवाणा ( राजस्थान) निवासी श्री लालचंदजी पूनमचंदजी चौधरी के यहाँ १९ जनवरी १९३७ को मातृश्री भूरिदेवी की कुक्षि से हुआ बचपन से ही आप में धर्म के प्रति प्रगाढ रूचि रही है. पिताश्री के परम्परागत व्यवसाय को सीखने समझने के साथ ही आप की जैन धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में विशेष प्रवृत्ति प्रारम्भ से ही रही है. आपकी शिक्षा सिवाणा नगर में हुई. आपकी धर्मपत्नी अ.सौ. श्रीमती गुलाबदेवी व पुत्र श्री गौतम तथा श्री महावीर का आपके धार्मिक व सामाजिक हर कार्य में सम्पूर्ण सहकार रहा है. + श्री सोहनलालजी व्यवसायार्थ ई. १९४९ में सेलम गए. ई. १९६२ से ई. १९८३ तक वे श्री आदीश्वर मूर्ति पूजक संघ संलम के चेयरमेन रहे. सेलम में पहले ओसवाल एवं पोरवाल के दो ही मंदिर थे. ओसवालों के मंदिर में मात्र श्री शान्तिनाथ भगवान की चौवीसी थी. १९६५ में कोयम्बटूर में प्रतिष्ठा के बाद जब आचार्य श्री पूर्णानन्दसूरि म.सा. सेलम पधारे तब उन्होंने संघ को आदीश्वर भगवान की प्रतिष्ठा के लिए प्रेरणा की. मूलनायक आदीश्वर भगवान सहित मुनिसुव्रतस्वामी तथा श्री शान्तिनाथ भगवान की प्रतिष्ठा हेतु मात्र दो दिनों के बाद ही प्रतिष्ठा हेतु मुहूर्त निकला यह कार्य होना असम्भव जैसा था फिर भी चौधरी साहेब, मे २४ घण्टे में प्रवासन तैयार करवाया कोयम्बटूर से प्रतिमाएँ मंगवा दी, जिससे प्रतिष्ठानिर्विघ्नं सम्पन्न हुई. इस प्रतिष्ठा के बाद संघ में अभूतपूर्व श्री वृद्धि हुई, जबकि इसके पूर्व कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि सेलम में इस प्रकार के कार्य के लिए धन एकत्र हो सकता है! श्री सोहनलालजी को इसी समय से आचार्य श्री पूर्णानन्दसूरि के प्रति प्रगाढ़ भक्ति हुई और वे उनकी प्रेरणा से धार्मिक प्रवृत्तियों में विशेष जागृत हुए. बाद में ई. १९७७ में उनका सम्पर्क प.पू. गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. के साथ हुआ तब उनके जीवन में और भी अधिक धार्मिक पिपासा एवं सेवा भावना उत्पन्न हुई, वे कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति यदि गुरु भगवंत (आचार्य श्री कलाससागरसूरि म.सा.) के पास एक बार गया तो वह हमेशा के लिए उनका भक्त बन जाता था. गुरु भगवंत का व्यक्तित्व चुम्बकीय था. उनके चेहरे पर निखालसता थी. ऐसे विरल व्यक्ति कभी-कभी ही धरती पर पैदा होते हैं. गुरु भगवंत की निश्रा में अनेक जिन मंदिरों की प्रतिष्ठा अनगिनत प्रतिमाओं की अंजनशलाका हुई थी, जिनमें से कुछ के संपादन में श्री सोहनलालजी का भी योगदान रहा है. वे अपने जीवन में उपलब्धियों के लिए गुरु भगवंत सहित आचार्य विक्रमसूरि आचार्य नवीनसूरि आचार्य आनन्दघनसूरि आचार्य हिमाचलसूरि राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरी म सा आदि का बड़ा उपकार मानते हैं. For Private and Personal Use Only राष्ट्रसंत महान शासन प्रभावक, जैनाचार्य श्री पद्मसागरसूरि म.सा. की निश्रा में ई. १९७८ में आम्बावाडी जैन संघ द्वारा वासुपूज्य देरासर की प्रतिष्ठा के समय श्री चौधरीजी ने प्रतिष्ठा में सहभागी बनने का लाभ लिया और वे गुरुदेव के सम्पर्क में आए. बाद में गुरुदेव की निश्रा में ई. १९८७ में जब श्री महावीर जैन
SR No.525256
Book TitleShrutsagar Ank 1998 04 006
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai Shah, Balaji Ganorkar
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year1998
Total Pages16
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size1 MB
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