SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४ www.kobatirth.org श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र-कोबा संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञान मंदिर के विविध उद्देश्य श्रुत सागर, चैत्र २०५४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन साहित्य व साहित्यकार कोश परियोजना : इस परियोजना के दो मुख्य कार्य रहेंगे (१) समग्र उपलब्ध जैन साहित्य की विस्तृत सूची तैयार करना जिसके तहत (अ) समग्र हस्तलिखित ज़ैन साहित्य की विस्तृत सूची तैयार करना (आ) समग्र मुद्रित जैन साहित्य का विस्तृत सूचीपत्र तैयार करना. (२) प्राचीन अर्वाचीन जैन विद्वानों (श्रमण एवं गृहस्थ दोनों) की परम्परा व उनके व्यक्तित्व कृतित्त्व से सम्बन्धित जानकारी संगृहित करना. प्रकाशनः अप्रकाशित जैन साहित्य की सूची बनाना. अप्रकाशित या अशुद्ध प्रकाशित जैन साहित्य को संशुद्ध कर प्रकाशित करना. वर्तमान देशकाल के अनुरूप श्रुत संवर्धक व बोधदायक विविध साहित्य प्रकाशित करना. सांस्कृतिक विरासत एवं मूल्यों का संरक्षण : हस्तप्रत तथा पुरावस्तु संरक्षण, ग्रंथों का एकत्रीकरण, उपयोग तथा प्राप्त ज्ञान का बहु-उद्देशीय सकारात्मक प्रसार कर लोगों को उनके पूर्वजों की उपलब्धियों का दर्शन तथा उनके गौरवमय अतीत कीं याद दिलाना, प्रशिक्षित करना जिससे उन्हें अपने पूर्वजों के प्रति अनुराग उत्पन्न हो तथा वे जैन धर्म-दर्शन तथा संस्कृति की ओर अपनी जिज्ञासा बढ़ाएँ. पाश्चात्य संस्कृति की ओर उन्मुख बाल- युवा एवं तथाकथित आधुनिक जनमानस की बाह्य सांस्कृतिक आक्रमण से रक्षा करने के लिए चारित्र विकासलक्षी प्रवचन कार्यक्रम, शिविर, गोष्ठी, वार्ता सत्रों आदि का आयोजन करना. श्रुत प्रसारण : जैन अध्ययन एवं अध्यापन की सुविधा उपलब्ध करना. भारत में यत्र-तत्र विचरण कर रहे तथा चातुर्मास के दौरान स्थिरता कर रहे पूज्य साधु-साध्वी भगवन्तों तथा स्व-पर कल्याणक गीतार्थ निश्रित सुयोग्य मुमुक्षुओं को उनके अध्ययन-मनन के लिए सामग्री उपलब्ध कराना. For Private and Personal Use Only ." परमात्मा का ध्यान करने से पहले अपने मन को विषयं वासना और कषायों से मुक्त करना जरुरी है.. . परमात्मा ही हमारा ध्येय है, ध्यान के द्वारा ध्येय तक हमें पहुँचना है. हमारे विचार, आचार, कार्य, व्यवहार सबं ध्येय के अनुकूल होने चाहिए. साधना में सहायक होने चाहिए. स्व पर कल्याण की कामना साधक के रोम-रोम में समाई होनी चाहिए. प्राणिमात्र के लिए उसके हृदय में सहानुभूति होनी चाहिए, जिससे दूसरों . के दुःख समझकर उसे दूर करने का प्रयास कर सकें." -आचार्य श्री पद्मसागरसूरि
SR No.525256
Book TitleShrutsagar Ank 1998 04 006
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai Shah, Balaji Ganorkar
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year1998
Total Pages16
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy