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श्रुत सागर, कार्तिक २०५३
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पृष्ठ १ का शेष राष्ट्रसंत की शासन प्रभावना
चित्ताकर्षक सुंदर अंगरचनाएँ की गई. भाग लिया. दीन-दुखी लोगों के भोजन समारंभ में ९ से १० हजार व्यक्तियों | • मुनिश्री निर्मलसागरजी म.सा. एवं मुनिश्री पद्मोदयसागरजी म.सा. ने भाग लिया. सारा ही समारोह खूब उत्साहवर्धक रहा. पूजायात्रा का दृश्य
की निश्रा में गोल (राजस्थान) श्रीसंघ में पर्युषण पर्व की आराधना भी दर्शनीय था. श्री नेमिनाथ जिनमंदिरमें भव्य आंगी, पूजा, कुमारपाल
परिपूर्ण हुई. श्रीसंघ ने उपधान तप कराने का तय किया है. प्रथम महाराजा की आरती का आयोजन भी रखा गया था. पूज्य आचार्यश्री ने कुछ
प्रवेशः मुहूर्त वि.सं.२०५२ आश्विन शुक्ल १४, दिनांक २५.१०.९६; द्वितीय दिनों के लिये श्रीसंघ की विनती पर जीयागंज भी स्थिरता की.
प्रवेश मुहूर्तः संवत् आश्विन कृष्ण १, दिनांक २७.१०.९६. अजीमगंज में विशाल भवन का निर्माण
• प.पू. राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न श्री जैन संघ, अजीमगंज द्वारा अजीमगंज के पनोते पत्र, राष्ट्रसंत. ज्योतिर्विद् गणिवर्य श्री अरुणोदयसागरजी के संयम जीवन के २५ वर्ष आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज की संसारी मातुश्री श्रीमती परिपूर्णता के निमित्त संयम जीवन की अनुमोदनार्थ मार्गशीर्ष शुदि ३, भवानीदेवी की पुण्यस्मृति में विशाल जैन भवन का निर्माण करना तय शुक्रवार, दि १३/१०/९६ के दिन डांगरवाँ (महेसाणा के समीप) किया गया है. इस भवन का नाम श्री भवानी देवी स्मृति हॉल रखा परमात्म-भक्ति स्वरूप महापूजन आदि का आयोजन किया गया है. इस जाएगा. साथ ही मातृ सदन (हॉस्पिटल) व गृह उद्योग भवन भी बनेंगे. प्रसंग पर दूरस्थ बंबई, बैंगलोर, मद्रास, जोधपुर आदि शहरों से एवं
वि. सं. २०५३ कारतक वद दूज के दिन अजीमगंज में राष्ट्रसंतश्री अहमदाबाद आदि समीपस्थ शहरों से भक्ति संपन्न अनेक श्रावकगण की निश्रा में श्रीनेमिनाथजी मंदिर सहित तीन मंदिरो में प्रतिष्ठा महोत्सव सहभागी बनेंगें. मागसर सदि ५. रविवार के दिन श्री संघ के जिनालय मनाया जायगा.
| की वर्षगांठ भी उल्लास पूर्वक मनाई जाएगी. माघ सु. दूज दि. ०९-०२-९७ के दिन कलकत्ता में मुमुक्षु श्री संदीप
|. पू. आचार्य श्रीमद्बुद्धिसागरसूरि की समुदायवर्तिनी संयम-वय स्थवीरा, कुमार रामपुरिया की भागवती दीक्षा व भव्य अंजनशलाका प्रतिष्ठा
| पू. साध्वी महत्तरा श्री कुसुमश्रीजी म. की ३७वीं ओलीजी की पूर्णाहुति महोत्सव भी आयोजित किया गया है.
सुखशाता पूर्वक हुई. आप विशाल शिष्या परिवार सह बुद्धिसागरसूरि भक्ति अगला चातुर्मास दिल्ली में वि.सं.२०५३ में राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज
आराधना भवन, रामनगर साबरमती में चातुर्मास हेतु बिराजमान है. . को दिल्ली में चातुर्मास करने हेतु दिल्ली श्रीसंघ के १५० व्यक्तियों ने | पृष्ठ १ का शेष] आचार्य हीरसूरि... विनती की. जिसे आपश्री ने अत्याग्रहवश स्वीकार किया है.
का शैशव काल गुजर गया. समाज की परम्परा के अनुसार हीराचन्द
भी व्यावहारिक ज्ञान हेतु पाठशाला में भेजे गये. साथ-साथ धार्मिक वृत्तान्त सागर
ज्ञान हेतु संवेगी साधुओं की निश्रा में जाने लगे. पूर्वकृत पुण्य कर्मों के
फलस्वरूप हीराचन्द छोटी उम्र में ही व्यवहारिकता में दक्ष और धार्मिक • परमात्मभक्तिरसिक प.पू. आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी म.सा.. | शिक्षा में प्रवीण हो सर्वजन प्रिय बने. एवं ज्योतिर्विद् गणिवर्य श्रीअरुणोदयसागरजी म.सा. आदि की निश्रा में । एक दिन पालनपुर में जैनाचार्य श्री दानसूरीश्वरजी का शुभागमन विजयनगर जैन संघ, अहमदावाद में पर्व पर्युषण की सुन्दर आराधना | हुआ. प्रौढप्रभावी व्यक्तित्व के धनी आचार्यश्री की अमृत देशना सम्पन्न हुई. पू. गणिवर्यश्री ने ११ उपवास सुखशाता पूर्वक किए थे. पुष्करावर्त के मेघ की तरह बरसने लगी. चतुर बालक हीराचन्द भी • दि. ०३.१२.९६ को श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा में | प्रवचन पान करने लगे. धीरे-धीरे बालमानस में संसार का स्वरूप परमात्मभक्तिरसिक ज्योतिषज्ञ पू.आ. कल्याणसागरसूरीश्वरजी का स्पष्ट होता गया और हीराचन्द वैराग्यवासित होता गया. इसी बीच शुभागमन हुआ. आपके आगमन पर श्री संघ ने भव्य स्वागत एवं | एक दिन प्रवचन श्रवण में मुग्ध हीराचन्द के उपर आचार्यश्री का पवित्र परमात्मभक्ति का आयोजन किया. यहाँ की गतिविधियों को देख | दृष्टिपात हुआ. अपने ज्ञानबल से उन्होंने हीराचन्द मे छिपी महानता आचार्यश्री ने बड़ी प्रसन्नता व्यक्त की और ज्ञानमंदिर सहित इस तीर्थ के को पहचान ली. उन्होंने श्रावक अग्रणियों को बुलाकर कहा कि यह विकास हेतु शुभकामना व्यक्त की.
बालक दीक्षा लेकर महान शासन प्रभावक आचार्य बन सकता है. अतः • आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न पंन्यासश्री | इसके माता-पिता को समझा कर इस बालक को शासन को सौंपा वर्धमानसागरजी म.सा., पू.गणिश्री विनयसागरजी म.सा. आदि मुनिवरों | जाय. श्रीसंघ ने कुराशाह और नाथीबाई को हीराचंद के विषय में एक की निश्रा में जीयागंज जैन संघ में पर्वाधिराज पर्युषण पर्व की आराधना समर्थ विद्वान जैनाचार्य द्वारा की गई भविष्यवाणी से वाकिफ कराया. आध्यात्मिक आनंद उल्लास के साथ सम्पन्न हुई. मासक्षमण, अट्ठाई | परन्तु उनकी ममता ने इस बात का तत्काल अस्वीकार कर दिया. आदि की महान् तपश्चर्या भी उल्लेखनीय रही. मुनिश्री विवेकसागरजी । कुछ समय पश्चात् कुराशाह और नाथीबाई का देहान्त हो गया. म.सा. ने बालक-बालिकाओं को धार्मिक सूत्रों की वाचना देकर छोटे इस दुःखद घटना से हीराचन्द के मन में संसार के प्रति उदासीनता बच्चों मे धार्मिक उत्साह बढ़ाया.
और वैराग्य भावना पुष्ट होने लगी. कुराशाह के और तीन पुत्र एवं • मुनिश्री हेमचन्द्रसागरजी म.सा., मुनिश्री निर्वाणसागरजी म.सा. तीन पुत्रियाँ थी. उनके नाम क्रमशः संघजी, सूरजी, श्रीपाल, रम्भा, मुनिश्री अजयसागरजी म.सा. आदि मुनिवरों की शुभ निश्रा में पंडित राणी और विमला थे. हीराचन्द सबसे छोटी सातवीं संतान थी. अब श्रीवीरविजयजी उपाश्रय, भट्ठी की बारी (अहमदाबाद) जैनसंघ में पर्व हीराचन्द अपनी बहन के घर पाटण में रहने लगे. पर्युषणा की आराधना सोल्लास सम्पन्न हुई. मासक्षमण, १५ उपवास, ____ एक बार संयोगवशात् आचार्य श्री दानसूरिजी का पाटन में अट्ठाई इत्यादि तपों का तांता लगा रहा. तपस्या की अनुमोदनार्थ आगमन हुआ, उनके समक्ष अपनी दृढ़ भावना व्यक्त करते हुए श्रीसंघ ने विविध पूजनों से युक्त प्रभुभक्ति महोत्सव आयोजित किया था. हीराचन्द ने दीक्षा लेने का निर्धार किया. बाद में बहन और उनके श्रीसंघ ने प्रभु भक्ति के महोत्सवपूर्वक तपोनुमोदना की ..
परिवार की अनुमति से सं.१५९६, कार्तिक कृष्ण द्वितीया के दिन • श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र-कोबा (गुजरात) तीर्थ में पर्व पर्युषण
महामहोत्सव पूर्वक प्रावजित हुए. नूतन मुनि का नाम हीरहर्ष के दिनों में प्रभु महावीर से अलंकृत महावीरालय में आठों दिन
| उद्घोषित किया गया. गुरुकृपा से हीरहर्षमुनि अल्पकाल में ही स्व-पर
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