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श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र का मुखपत्र
श्रूत सागर
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डिनरम
जास-दीप त्याला
तिवस्तवनममम
लियान वाचस्पति
आशीर्वाद : राष्ट्रसंत जैनाचार्य श्रीपद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. प्रधान संपादक : मनोज जैन वर्ष : २, अंक : ५ कार्तिक वि.सं. २०५३ नवम्बर १९९६ संपादक : डॉ. बालाजी गणोरकर
* नूतन वर्ष की शुभकामना ।
भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण कल्याणक से प्रारम्भ होने परम पूज्य आवाज
वाला दीपमालिका पर्व आप सब के अंतरभाव में सम्यक् ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न करने वाला बने। गणधर श्री गौतम स्वामीजी के कैवल्यज्ञान की प्राप्ति का मंगल प्रभात (नूतन वर्ष) आप सब के लिये सुख-शांति समाधि प्रदान करने वाला हो एवं धर्म आराधनामय बर्ने, यही मंगल कामना पूर्वक आशीर्वाद है।
शुभेच्छुक
प अजीमगंज (पं.बंगाल)
अजिमगंज, दि. - १०-११-९६. राष्ट्रसंत आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की निश्रा में ___शानदार शासन प्रभावना
इतिहास के झरोखे से) पूज्य शासन प्रभावक, राष्ट्रसंत,आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. आदि साधुभगवंतों की पुण्य निश्रा में अजीमगंज (मुर्शिदाबाद,प.बंगाल) में चातुर्मास अकबर प्रतिबोधक जगद्गुरु हीरविजयसूरि. की सुंदर आराधना-तपस्यादि चल रही है. पर्युषणा पर्व की आराधना भी तपश्चर्या
मनोज जैन प्रभुभक्ति एवं प्रभावक प्रवचनों द्वारा ठाठ से सम्पन्न हुई है. श्रीसंघ में मासक्षमण,
[पूरे भारतवर्ष में भाद्रपद सुदि ११ के दिन जिनका चतुःशताब्दी महोत्सव १५ उपवास,अट्ठाई,अट्ठम आदि विविध तपश्चर्या भी सराहनीय रही. मुनिश्री |
|सोल्लास मनाया गया, उन जंगम युगप्रधान, जगद्गुरु, जैनाचार्य श्री प्रेमसागरजी म. की अट्ठाई की तपस्या भी सुख शाता पूर्वक सम्पन्न हुई. स्थायी,
| डीरविजयसूरीश्वरजी को आज कौन नहीं जानता. ४00 वर्ष पूर्व जिन्होंने सम्राट साधारण एव अन्यान्य खातों में भी पूज्यश्री की प्रेरणा से अच्छा फंड एकत्र हुआ|| नियोगका अहिंसा परमो धर्मः' का ईका बजाया था इस है. तदुपरांत देव द्रव्य की भी बहुत अनुमोदनीय उपज इस वर्ष में हुई है. बहुत |
ऐतिहासिक घटना को कौन भूल सकता है. तत्कालीन विद्वानों ने अपने ग्रंथों से स्थानीय बंगाली लोगों ने भी आचार्यश्री के प्रवचन परिचय से आहार शुद्धि की||में का सम्मान पर्वक उल्लेख किया है. तब से आज तक संसार भर में प्रतिज्ञा की है.
अकबर के विषय में हो रहे संशोधनों में जगद्गुरु श्री हीरविजयसरिजी को पूज्य आचार्यश्री दीक्षा के पश्चात् प्रथम बार खुद की जन्म भूमि में पधारे हैं. ||
जोड़े बिना परिपूर्णता नहीं होती है. यही उनके महान व्यक्तित्व की पहचान है: अतः श्रीसंघ में एक अपूर्व उत्साह देखने को मिला है.
यह भी स्वभाविक ही है कि इतने बड़े प्रभावी महापुरुष के जीवन चरित्र भादो शुदि एकादशी २३ सितम्बर के शुभ दिन पूज्य आचार्यश्री के ६१ वें जन्म || के विषय में हमें जिज्ञासा उत्पन्न हो. शासन प्रभावकजैनाचार्य की गरिमा और दिन के उपलक्ष में संयम अनुमोदन दिन बड़े समारोह के साथ मनाया गया. इस | | महिमा क्या होती है यह उनके जीवन चरित्र से अवगत होता है. हमने इस लेखांश अवसर पर हजारों की संख्या में मुर्शिदाबाद, कलकत्ता सहित आसपास के जिलों |
| में श्रद्धाञ्जलि के रूप में उनका यत्किञ्चित् परिचय देने का प्रयत्न किया है. तथा अहमदाबाद, मुंबई, चेन्नइ,बेंगलोर, राजस्थान आदि दूरस्थ स्थानों से आए | | यद्यपि लोकोत्तर महर्षियों का संपूर्ण परिचय कराना अशक्य मालूम होता है तथापि गुरुभक्तों ने पूज्य आचार्यश्री के दर्शन, वन्दन कर आशीर्वाद ग्रहण किया.
|स्वपर बोधाय यत्न किया है. अतः पाठकगण इससे अपनी जिज्ञासा को और इस अवसर पर श्री सुंदरलालजी पटवा (पूर्व मुख्यमंत्री-म.प्र.) विशेष रूप | जागरुक करेंगे. साथ ही इन आर्षदृष्टा के विषय में अधिकाधिक जानकारी से उपस्थित थे. पटवाजी ने पूज्य आचार्यश्री के प्रति अपनी श्रद्धा प्रवचन द्वारा | प्राप्त कर प्रचार-प्रसार के द्वारा कल्याण कामी बनेंगे. -संपादक] अभिव्यक्त की. अन्य वक्ताओं ने भी प्रासंगिक उद्बोधन किया. महावीर मंडल || ठीक आज से चार सौ वर्ष पूर्व गुर्जरदेशवर्ती प्रहलादनपुर (पालनपुर) में वि.सं (अजिमगंज) के द्वारा सुंदर गुरुभक्ति गीत प्रस्तुत किये गये. कलकत्ता से आए|| १५८३ मार्गशीर्ष शुक्ला ९ के दिन कुराशाह नामक श्रेष्ठि थे. उनकी श्राविका श्री देवेन्द्र बेंगाणी के गीत ने सबको मुग्ध बना दिया. अनुकंपा के रुप में १०० || नाथीबाई की कुक्षी से पुत्ररत्न का जन्म हुआ.जन्मोत्सव पूर्वक बालक का नाम से अधिक लोगों को जयपुर फुट दिये गये.वर्षों से अपंग, चलने में लाचार व्यक्तियों | हीराचन्द रखा गया. माता ने स्वप्न में हीरे की राशि देखी थी, तदनुरूप सार्थक के चेहरों पर देखने लायक चमक थी. व्हील चेयर एवं वैशाखी आदि| | नाम रखा गया. दिये गये. रक्तदान शिविर में भी लोगों ने उत्साहपूर्वक [शेष पृष्ठ २ पर|| माता-पिता की ममता और लाड़-प्यार में हीराचन्द [शेष पृष्ठ २ पर
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