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/ जानो।
तो
श्रुत सागर, वैशाख २०५२ हिन्दू राष्ट्र नेपाल में प्रथम महावीरालय की
श्रुत सागर प्रतिष्ठा एवं उद्घाटन
प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता -२ काठमाण्डु] परम तारक श्री पञ्चम श्रुतकेवली श्री भद्रबाहुस्वामी की
जानें साधना भूमि हिमालय की गोद में बसे हिन्दू राष्ट्र नेपाल की राजधानी
प्रश्नावलीकाठमाण्डु नगर में सर्व प्रथम भगवान श्रीमहावीर का नयनरम्य भव्य १. इस चौवीसी में चक्रवर्ती कितने हुए? । जिनमंदिर निर्मित किया गया है. इस मंदिर का निर्माण संगमरमर पत्थर
२. श्रीमहावीर प्रभु का शासन कितने वर्षों तक चलेगा? से हुआ है. यहाँ भगवान महावीरस्वामी सहित अन्य जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा
३. श्रीमहावीर प्रभु की प्रमुख साध्वी शिष्या का नाम क्या था? परम शासन प्रभावक राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज
४. श्रीपार्श्वनाथ भगवान के कितने गणधर थे? प्रमुख गणधरों के
नाम बताएं? की पावन निश्रा में २१.४.९६ से २५.४.९६ तक धूमधाम से सम्पन्न होगी.
५. श्रीपार्श्वनाथ भगवान के कितने भव थे? उनके भव की गिनती कहाँ इस अवसर पर कमल पोखरी, काठमाण्डु स्थित 'भगवान महावीर जैन
से होती है? निकेतन' में जिनभक्ति सहित अष्टानिका महोत्सव, धार्मिक अनुष्ठान,
६. अष्टमंगल कौन-कौन से हैं? प्रवचन, जागरण आदि कार्यक्रम आयोजित किए गये हैं. भारत भर से हजारों
७. कल्याणक कितने और कौन-कौन से हैं? की संख्या मे आए जैन श्रेष्ठियों की इस कार्यक्रम में भाग लेने की संभावना |
८. देवताओं के मुख्य लक्षण क्या हैं ?
९. कंदमूल का त्याग क्यों आवश्यक है? एक लंबे अरसे के बाद नेपाल पधारने वाले राष्ट्रसंत आचार्य श्री १०.स्वस्तिक का क्या प्रयोजन है? पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज पहले भगवंत हैं. आपश्री के स्वागत की
||| प्रश्नोत्तरी (क्विज़) प्रतियोगिता में भाग लेने की नियमावलीतैयारियाँ वहाँ हर्षोल्लास सहित जोर-शोर से चल रही है. . १. इस प्रतियोगिता में १४ से २५ वर्ष तक की आयु का युवावर्ग भाग ले सकता
राष्ट्रसंत आचार्यश्री का नेपाल में सम्पर्क सूत्रःभगवान महावीर जैन निकेतन
नेपाल जैन परिषद कमल पोखरी, काठमांडु, नेपाल
फोन- २२११६५, २२१५३६ (0) फोन- ४१४३०२, ४२१३७०,४१४२१५ (R)
फैक्स ९७७ -१-२२१४०३
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के विषय में
उद्गार
* अत्रत्यः संग्रहः महान् वैविध्यानुगतो दुर्लभप्रतिसंपन्नश्च.
___-प्रो. अशोक अकलूजकर, केनाडा. ★ हस्तप्रत सम्वन्धी संरक्षण-व्यवस्था ने अत्यधिक प्रभावित किया।
- राम कृपालु शर्मा, जयपुर. ★ यहाँ सत्यम्, शिवम् और सुन्दरम् का समन्वय एक जगह मिला । यदिहास्ति न चान्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित्.
- प्रा. बिहारीलाल चतुर्वेदी, अहमदावाद. * It was an enchanting experience to visit this complex, which is a living symbol of Jaina generosity as also faith. The planning has been superb with lot of foresight and aesthetic sense. The collection has been such as to be a paradise for researchers.
- Prof. S. B. Deo, Pune. * We are really inpressed for collection and compilation and preservation of ancient manuscripts and we sincerely hope for its faster growth.
- M. C. Bhansali (Advocate), Kota.
२. प्रश्नों के उत्तर सुपाठ्य एवं पृष्ठ के एक ही ओर लिखे होने चाहिए. उत्तरपत्र
के साथ अपना नाम और पूरा पता स्पष्ट लिखें. ३. प्रश्नोत्तर १५-०६-१९९६ तक संपादक, श्रुतसागर, श्री महावीर जैन आराधना
केन्द्र, कोबा, गांधीनगर ३८२००९ को अवश्य प्राप्त हो जाने चाहिये, विलम्ब
से प्राप्त उत्तरों पर विचार नहीं किया जायगा. ४. सही उत्तरपत्रों में से विजेताओं के नाम लॉटरी द्वारा निकाले जायेंगे. प्रथम द्वितीय
एवं तृतीय पुरस्कार प्राप्त विजेताओं को क्रमशः १५०, १०० एवं ७५ रु. मूल्य की धार्मिक पुस्तकें प्रदान की जाएगी. तथा दो अनुमोदन पुरस्कार दिये जायेंगे. विजेताओं का नाम अगले अंक में प्रकाशित किया जाएगा तथा व्यक्तिगत सुचना
भी दी जाएगी. ५. इस प्रतियोगिता में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र से सम्बन्धित कोई भी कार्यकर्ता
या उनके परिवार के सदस्य भाग नहीं ले सकते हैं. ६. सम्पादकों का निर्णय अन्तिम निर्णय माना जायगा.
श्रुत सागर प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता -१ के उत्तर १. राग-द्वेष आदि अन्तरशत्रुओं को जीतने के कारण तीर्थंकरों को जितेन्द्रिय अर्थात जिन कहा जाता है, २. आदीश्वर भगवान की माता मरुदेवी व पिता नाभि राजा थे. ३.वर्ष के अन्दर प्राणिमात्र के प्रति किये गए राग-द्वेष कषायादि सांवत्सरिक प्रतिक्रमण द्वारा क्षमापना करना व क्षमा देना. ४. प्रतिक्रमण करने से दिन व रात में किए गए पापों का नाश होता है, ५. रात में अति सूक्ष्म जीव आकाश मण्डल में व्याप्त रहते हैं. अतः भोजन करते| हुए इन जीवों की भोजन द्वारा हिंसा होती है. इसलिये जैन समाज में रात्रि भोजन का निषेध है| ६. श्री महावीर स्वामी के गणधरों में सर्वधिक आयुष्य १०० वर्ष आर्य सुधर्मास्वामी का था?|| ७. आचार्यश्री मानतुंगसूरीश्वरजी ने धारानरेश भोज के मंत्री मतिसागर के आग्रह पर इस स्तोत्र की रचना की. इसके प्रत्येक श्लोक के प्रभाव से लौह-शृंखला के ४४ बन्धन
खंडित हो गए. ८. ऋजुवालिका तीर्थ विहार के गिरीडीह जिले में सम्मेत शिखर तीर्थ से लगभग १०||
कि. मी. दूर है, भगवान महावीर को यहाँ शालि वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान की | प्राप्ति हुई थी. ९. आचार्य श्रीमद् वुद्धिसागरसूरीश्वरजी १०५ ग्रंथों के प्रणेता थे. इनके प्रमुख ग्रंथ हैं- कर्मयोग, योगदीपक, भजनपदसंग्रह, जैन ऐतिहासिक रासमाला. समाधिशतकम्, १०. भगवती सूत्र आगम का पांचवा अंग है.. टिपणीः कोई भी सही उत्तर प्राप्त न होने के कारण किसी को भी पुरस्कार
नहीं दिये जा रहें हैं. -सम्पादक
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