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श्रुत सागर, वैशाख २०५२
पृष्ठ १ का शेष] राष्ट्रसंत का विहार... (सम्पादकीय
को ही प्राप्त हुआ है. भगवान महावीर ने जनमानस की भावना को समझा और मान्यवर श्रुतभक्त!
उनकी मातृभाषा 'मागधी' में ही उपदेश दिया. इसी पावापुरी में उन्होंने अपने आपके हाथों में श्रुतसागर का तृतीय अंक प्रस्तुत हैं. इस बीच सामग्री के चयन अंतिम उपदेश में यह भी कहा है कि जीवन मृत्यु का प्रवेश द्वार है और मृत्यु का एवं प्रस्तुतीकरण में यथेष्ट परिवर्तनकर पत्रिका रोचक बनाने का प्रयास किया गया विसर्जन धर्म साधना से ही संभव है. मनुष्य स्वयं को समझने का प्रयास नहीं करता. है. इस बार जैन धर्म के दो मनीषियों शासन प्रभावक, योगनिष्ठ आचार्यश्री | जिस जीवन को प्रकाशमय होना चाहिए आज वह राग, द्वेष, क्रोध आदि का शिकार बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म.सा. तथा उनकी परंपरा में प.पू.गच्छाधिपति आचार्यश्री | हो रहा है. धन-संपत्ति आदि कितनी भी भौतिक उपलब्धियाँ इकट्ठी कर ली जाय कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा.की पुण्य तिथियों (क्रमशः ज्येष्ठ वदि ३ एवं ज्येष्ठ | उनसे संतुष्टि नहीं मिल सकती, शांति नहीं प्राप्त हो सकती. सुदि २) पर उनका संक्षिप्त परिचय देते हुए स्मरणाञ्जलि अर्पित की गई है. | जलमंदिर की पुण्य छाया में पूज्यश्री के अभिनंदन का कार्यक्रम अतिभव्य रहा.
इतिहास के झरोखे से आचार्यश्री हरिभद्रसरिजी का संक्षिप्त परिचय कराया | सभा में ५००० के करीब लोगों की हाजरी थी.आपने प्रवचन में कहा कि भारत गया है। जैन परम्परा में यह मान्यता दृढ़ है कि आपकी कृतियों का अध्ययन किए | को धर्म निरपेक्ष नहीं, बल्कि संप्रदाय निरपेक्ष होना चाहिए. सभी धर्म के लोग । बिना आगमशास्त्रों का रहस्य पाना सम्भव नहीं है...
अपने-अपने धर्म के प्रति वफादार हो जाएँ तो पृथ्वी पर स्वर्ग उतर आएगा. पूज्यश्री आपको यह जानकर परम प्रसन्नता होगी कि प.पू.राष्ट्रसंत आचार्यश्री
ने बड़ी ही मार्मिक वाणी में कहा कि राग और द्वेष रहित व्यक्ति ही महान है. पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा.आदि ठाणा उग्र विहार करते हुए पड़ोसी देश नेपाल
आपश्री ने जनता को दुर्गति से बचने के लिये सप्त व्यसन त्यागने की सलाह दी. की राजधानी काठमाण्डु में पधार चुके हैं। आचार्य श्री भद्रबाहुस्वामी के बाद
उन्होंने कहा कि लोग मुझसे पूछते हैं महाराज आप कौन हैं ? मैं कहता हूँ कि 'मैं
पोस्टमेन हूँ.भगवान महावीर की वाणी-उपदेश एवं दर्शन को जन-जन तक पहुंचाने परम्परागत रीति से विहार कर नेपाल जाने वाले वे ज्ञात प्रथम शासन प्रभावक
आया हूँ. परमात्मा के विचारों और संदेशों को आप तक पहुँचाना मेरा उद्देश्य है. जैनाचार्य हैं. आचार्यश्री ने अभी तक संयम जीवन में ६५,००० मील से ज्यादा
भगवान महावीर ने सम्यक् आचरण को ही मोक्ष माना है. आचार और विचार पदयात्रा की है. आपकी निश्रा में काठमाण्डु में प्रथमबार महावीरालय की शानदार
में जिस दिन एकरूपता आएगी, उसी दिन परमात्मा की प्राप्ति हो जाएगी. उन्होंने प्रतिष्ठा हो रही है. आपश्री की निश्रा में आचार्यश्री कैलासागरसूरि ज्ञान मंदिर,
परमात्मा को अपनी श्रद्धा अर्पित करने के लिए जनता को प्रेरित किया और कोबा अपनी विकास यात्रा के चौथे वर्ष में वैशाख सुदि छठ बुधवार के दिन मंगल
चारित्रिक पतन रोकने की सलाह दी. इस अवसर पर घोषणा की गई कि पावापुरी प्रवेश कर रहा है। ज्ञानमंदिर सहित श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र की प्रगति
में कन्या विद्यालय तथा जलमंदिर तालाब में घाटों का निर्माण किया जाएगा तथा आप सभी के उदार सहयोग का ही परिणाम है.जैन शासन की सेवा के इस महान ।
| चैत्र एवं कार्तिक मास में सूर्य देव को अर्घ्यदान करने दिया जाएगा. कार्य में आपका तन-मन-धन से अनवरत सहयोग मिलता रहा है और मिलता | आपथीकी निश्रा में पावापुरी जैन मन्दिर प्रांगण में श्रीराजेन्द्र सूरिजी की स्मृति रहेगा, ऐसी कामना है. आपके सुझावों एवं प्रतिक्रियाओं को हम सादर आमंत्रित में निर्मित आराधना भवन का उद्घाटन हुआ. यहाँ उपस्थित विशाल जनसमूह करते हैं.
को सम्बोधित करते हुए उन्होंने जैन-दर्शन की महत्ता और व्यापकता पर प्रकाश
डाला. पृष्ठ १ का शेष योगनिष्ठ आचार्य श्री... आचार्यश्री की ज्ञानसाधना आजीवन चलती रही.एक संस्था जितना काम करती है उतना |
दूसरे दिन पावापुरी ग्रामवासियों की ओर से अभिनंदन का कार्यक्रम भी
| उल्लेखनीय रहा. ग्रामवासियों ने पू. आचार्यश्री की प्रेरणा से पावापुरी तीर्थ क्षेत्र काम अकेले आचार्यश्री ने किया है, अपने २४ वर्ष के साधुजीवन में उन्होंने एक सौ आठ से
में मांस-शराब आदि का सेवन बंद कर दिया. होली के प्रसंग पर गांव में एक भी भी अधिक ग्रन्थों की रचना की और प्रकाशित करवाए, जो अपने आप में बहुत बड़ी सिद्धि
पशु-हिंसा नहीं हुई और न ही एक बोतल शराब भी बिका. प्रवचन का चमत्कार है. उनका जीवन ज्ञान एवं ध्यान की साधना में ही व्यस्त रहा . वे अपने पास कागज एवं पेंसिल
ऐसा हुआ कि पूरे गांव के लोगों के हृदय बदल गये. ग्रामवासियों ने तथा ट्रस्टी रखते थे. प्रतिदिन चिन्तन करके उसे लिखने का कार्य करते थे, इतना अधिक लिखते थे कि
लोगों ने एक चातुर्मास पावपुरी में करने की आग्रह पूर्ण विनती भी की. वहाँ से एक दिन में दो-तीन पेंसिलें समाप्त हो जाती थी. उनके ग्रन्थों में आध्यात्मिक, योग, दर्शन एवं
पूज्यश्री राजगिरिजी पधारे, वहां पर भी खूब भव्य स्वागत ट्रस्ट एवं ग्रामवासियों गैद्धान्तिक विषयों की बातें कूट-बूट कर भरी हैं. उन्होंने उच्चकोटि के ग्रन्थों की रचना की है. |
ने किया. श्री जयंतिलाल जैन - मेनेजर की मेहनत, ट्रस्टियों की भावना एवं बिहार साथ ही माथ सामान्य जनोपयोगी साहित्य भी रचा है.
राज्य के भू.पू. शिक्षामंत्री श्री सुरेंद्र कुमारजी 'तरुण' जो कि पूज्य श्री के परमभक्त उस जमाने में शिक्षण प्राप्त करना बहुत कठिन था. गाँव में उच्च शिक्षण की कोई सुविधा | है एवं बिहार में सभी जगह पर उनकी उपस्थिति रही है, उन सबों की सेवा ने नहीं थी और शहर में जाकर पढ़ना सबके वश की बात नहीं थी. अतः कई जैन सामान्य ज्ञान | राजगीरि के कार्यक्रम में अत्यधिक शोभा बढ़ा दी.नागरिक अभिनंदन के दिन सभा . प्राप्त करके ही अध्ययन छोड़ देते थे. समाज की ऐसी परिस्थिति को देखकर उन्होंने पालिताणा, में पूरे नगर के लोग, बौद्ध साधु एवं अन्य संत-महंत-अधिकारी गण की उपस्थिति अहमदावाद और वड़ोदरा में सम्यक् ज्ञान पोषक जैन बोर्डिंगों की स्थापना करवाई. जो आज में खूब शानदार अभिनंदन समारोह का कार्यक्रम संपन्न हुआ. जापान शांतिस्तूप भी अनेक जैन विद्यार्थियों का आश्रय स्थान बने हुए हैं. ऐसे थे आचार्य दीर्घद्रप्टा. के मुख्य बौद्ध आचार्य जो जापान के हैं, उन्होंने पूज्य आचार्य श्री को शांतिस्तूप ___आचार्यश्री का जीवन, उनके कार्य व साधना उच्चकोटि की थी. ऐसे महान आचार्यथी | का प्रतीक (मॉडल) अर्पण किया. पूज्यश्री ने कुंडलपुर के नूतन भव्य जिन मंदिर को कोटि-कोटि वंदन.
की प्रतिष्ठा भी बड़े भव्य रूप से संपन्न की. शेठश्री श्रेणिकभाई कस्तुरभाई आदि
तथा बम्बई-मद्रास-दिल्ली कलकत्ता से जयकुमारसिंहजी-कांतिलालजी श्रीमाल योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी रचित आध्यात्मिक अमर ग्रन्थों
आदि सेंकडों की संख्या में भाविक लोगों की हाजरी प्रतिष्ठा प्रसंग पर थी. का पूरा सेट प्रत्येक परिवार में संग्रहणीय है,ये ग्रन्थ निम्नलिखित पते पर उपलब्ध हैं -
श्रीगौतमस्वामी की जन्मभूमि पर बना यह मंदिर अति सुंदर व कलात्मक है. नालंदा श्री महुडी (मधुपुरी) जैनश्वेताम्बर मूर्तिपूजक ट्रस्ट
पास में होने से अनेक पर्यटक इस मंदिर के दर्शन का लाभ लेंगे. | पोस्ट-महुडी, ता. विजापुर, जि. महेसाणा
पूज्यश्री का बिहारशरीफ में सुचंती परिवार ने खूब सुंदर सामैया किया. फिर ३८२ ८५५ फोनः (०२७६३८४) ६२६, ६२७
आचार्यश्री का आगमन पटना (पाटली पुत्र) में हुआ. पटना सिटी में भी प्रभावक
[शेष पृष्ठ ३ पर
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