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________________ संस्कृत छाया :___ एवं च तेन भणिते, प्रनष्टशोका नरेन्द्र ! जाताऽहम् । फलमूलकृताहारा, विनयपरा तापसीजनस्य ।।३६।। गुजराती अनुवाद : हे राजन्! आ प्रमाणे कुलपतिना कहेवाथी हुं शोक रहित थई. फलफूल नो आहार करती तापसी-समूहना विनयमां रत बनी. हिन्दी अनुवाद : __ हे राजन! कुलपति के इस प्रकार कहने पर मैं शोक रहित हो गयी और फल-फूल खाकर तपस्वी समूह की सेवा में लग गयी। गाहा :_पिय! कइवय-दिवसाइं अच्छामि तहिं तु आसमे जाव । ता अन्न-दिणे कुलवइ मूले धम्मं सुणिंतीए ।। ३७।। संस्कृत छाया :- . प्रिय ! कतिपयदिवसानि, आसे तत्र त्वाश्रमे यावत् । तावदन्यदिने कुलपति-मूले धर्मं शृण्वन्त्याम् ।।३७।। गुजराती अनुवाद : सुरथकुमारनु आगमन हे प्रिय! केटलाक दिवस हुं ते आश्रममां रही, एक वखत बहु तापसीओनी साथे कुलपति पासे धर्म श्रवण करती हती. हिन्दी अनुवाद : सुरथ कुमार का आगमन_हे प्रिय! मैं बहुत दिनों तक उस आश्रम में रही। एक बार बहुत से तपस्वियों के साथ मैं कुलपति के पास धर्म श्रवण कर रही थी। गाहा :बहु-तावसि-सहियाए सहसा आसेण वेग-जुत्तेण । अवहरिओ संपत्तो राय-सुओ तत्थ एगागी ।। ३८।। संस्कृत छाया :बहुतापसीसहितायां सहसाऽश्वेन वेगयुक्तेन । अपहृतः सम्प्राप्तो राजसुतस्तत्रैकाकी ।।३८।। युग्मम् ।।
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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