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गाहा :
अह कहवि विहि-वसेणं समागओ तत्थ नह-यरो एक्को। निय-भारिया-समेओ तेण य पुत्तोत्ति सो गहिओ ।।३४।। संस्कृत छाया :
अथ कथमपि विधिवशेन समागतस्तत्र नभश्चर एकः । निजभार्यासमेतस्तेन, च पुत्र इति स गृहीतः ।।३४।। गुजराती अनुवाद :
परंतु कोई भाग्यना योगथी त्यां पोतानी पत्नी सहित एक विद्याधर आव्यो. अने आ कोईनो 'पुत्र' छे सम विचारी ग्रहण कर्यो. हिन्दी अनुवाद :
किन्तु किसी भाग्य के योग से वहाँ अपनी पत्नी सहित एक विद्याधर आ गया, और वह यह किसी का पुत्र है, ऐसे विचार कर उसे ग्रहण कर लिया। गाहा :
खयरस्स तस्स गेहे वुड्डिं जाही सुहेण, तत्तो य ।
संपत्त-जोव्वणो सो मिलिही तुह हत्थिणपुरम्मि ।।३५।। संस्कृत छाया :
खचरस्य तस्य गृहे वृद्धिं यास्यति सुखेन, ततश्च ।
सम्प्राप्तयौवनः स मिलिष्यति तव हस्तिनापुरे ।।३५।। गुजराती अनुवाद :
विद्याधरना घरे सुखपूर्वक ते बालक वृद्धिने पामशे, त्यारबाद यौवन वयने प्राप्त थयेलो तने हस्तिनापुरमा मळशे. हिन्दी अनुवाद :
विद्याधर के घर वह बालक सुखपूर्वक बड़ा होगा और बाद में युवावस्था प्राप्त होने पर हस्तिनापुर में मिलेगा। गाहा :
एवं च तेण भणिए पणट्ठ-सोगा नरिंद! जाया है । फल-मूल-कयाहारा विणय-परा तावसि-जणस्स ।।३६।।