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________________ हिन्दी अनुवाद : अंदाजन दिन के चार पहर बीत गये थे, पर मैं उस जंगल में अत्यन्त दुःखी होकर अत्यन्त करुण स्वर में रोती हुई इधर-उधर घूमती रही। तपस्वीनी का आगमनगाहा : ताव कमंडलु-हत्था मिउ-वक्कल-वसण-धारिणी तत्थ । परिणय-वया पसन्ना समागया तावसी एगा ।।१४।। संस्कृत छाया : तावत् कमण्डलुहस्ता मृदुवल्कलवसनधारिणी तत्र । परिणतवयाः प्रसन्ना समागता तापस्येका ।।१४।। युग्मम्।। गुजराती अनुदाद : तेटलामां हाथमां कमंडल तथा सुकोमल वल्कलना वस्त्रो ने धारण करेली, वृद्धा छतां प्रसन्न स्वी एक तापसी त्यां आवी! हिन्दी अनुवाद : इतने में हाथ में कमंडल और कोमल वल्कल रूपी वस्त्र को धारण करने वाली एक तपस्विनी आई जो वृद्धा होकर भी प्रसन्न थी। गाहा :दटुं ममं रुयतिं विविह-पलावेहिं तत्थ वण-गहणे । संजाय-गरुय-करुणा समागया मज्झ पासम्मि ।।१५।। संस्कृत छाया: न्ट्वा मां रुदन्ती विविधप्रलापैस्तत्र वनगहने । सञ्जातगुरुकरुणा समागता मम पार्थे ।।१५।। गुजराती अनुवाद : त्यां भयंकर अटवीमा विविध प्रकारना विलापो वडे मने रडती जोइने उत्पन्न थयेली भाटे करुणा वाळी ते मारी पासे आवी. हिन्दी अनुवाद : उस भयंकर जंगल में विभिन्न प्रकार से विलाप करती हुई मुझे देखकर उत्पन्न करुणावाली वह मेरे पास आई।
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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