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________________ गाहा : वण-देवयाओ! तुम्हं सरणम्मि समागयाए मह पुत्तो।। हरिओ, ता किं जुज्जइ एत्थवि वेहा करेउं जे? ।।५।। संस्कृत छाया : वनदेवताः ! युष्माकं शरणे समागताया मम पुत्रः । हृतस्तर्हि किं युज्यतेऽत्रापि वेधाः कर्तुं यद्? ।।५।। गुजराती अनुवाद : हे वनदेवता! तमारा शरणे आवेली ओवी मारो पुत्र अपहरण करायो, तो पछी अहीं विधाता पण शुं की शके? हिन्दी अनुवाद : हे वन देवता! तुम्हारे शरण में आने पर भी मेरे पुत्र का अपहरण हो गया, तो विधाता भी क्या कर सकता है? गाहा : हा पुत्त! कहमरण्णे मुक्का हं सरण-वज्जिया तुमए । हा! कहमुच्छंग-गओ सहसा अइंसणीभूओ? ।।६।। संस्कृत छाया : हा पुत्र ! कथमरण्ये मुक्ताऽहं शरणवर्जिता त्वया । हा कथमुत्सङ्गगतः, सहसाऽदर्शनीभूतः? ।।६।। गुजराती अनुवाद :___ हा! पुत्र! अरण्यमां शरण रहित हुं तारा वडे केस मूकाई? मारा . खोळामां रहेलो तुं एकाएक अदृश्य केम थइ गयो? हिन्दी अनुवाद : हा पुत्र! जंगल में शरणरहित मैं तुम्हारे द्वारा कैसे बनी? मेरी गोद में तुम थे, एकाएक कैसे अदृश्य हो गए? गाहा : नूणं निहर-रूवं सह सोऊण जस्स पडिबुद्धा । तेणं चिय अवहरिओ पिसाय-रूवेण केणावि ।।७।।
SR No.525096
Book TitleSramana 2016 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2016
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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